ये हैं देश की खोई-बिसरी डिशेज, अपनी ऑथेंटिसिटी और स्वाद के लिए थीं फेमस

हमारे देश में 50-100 नहीं बल्कि हजार फ्लेवर्स मिलते हैं। हर शहर का, हर जिले की अपनी डिशेज हैं, व्यंजन और मिठाइयां हैं। मगर कुछ ऐसी चीजें भी हैं जो मॉर्डन इंडियन किचन का हिस्सा बनने से पीछे रह गईं। कभी लोगों के जुबान पर रहने वाली चीजें अब कहीं खो गई हैं।
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भारतीय व्यंजन अपनी समृद्धि, विविधता और प्राचीन इतिहास के लिए मशहूर है। यही कारण है कि भारत के सुगंधित मसालों के अंग्रेज यहां आए और लंबे समय तक भारत में राज किया। उनके आने का यही कारण था कि यहां एक-आधा नहीं बल्कि तमाम फ्लेवर्स लुभाते हैं।

हालांकि, फ्लेवर्स में बदलाव भी आया। मॉर्डन इंग्रीडिएंट्स और वेस्टर्न खाने की इच्छा ने भारतीय किचन में अपनी जगह बना ली। इसके साथ लेकिन कई पारंपरिक व्यंजन धीरे-धीरे विलुप्त होते गए। कई ऐसी लोकल डिशेज हैं जो सदियों पहले लोगों की जुबान पर रहती थी, लेकिन आज यह गुम हो गई हैं। आइए जानते हैं कुछ ऐसी खोई-बिसरी डिशेज के बारे में, जो कभी भारत के अलग-अलग हिस्सों में मशहूर थीं।

1. तुजी चिकन (Tuji Chicken)

tuji chicken

तुजी चिकन कश्मीर का एक लोकप्रिय व्यंजन हुआ करता था, जिसे पारंपरिक रूप से तांबे के तुजी (स्क्यूर) पर भुना जाता था। यह डिश मुगलकाल से लोगों को अपना दीवाना बना रही है। इसे मसालों के खास मिश्रण के साथ तैयार किया जाता था। इस डिश को आज कश्मीर के चुनिंदा गांव में ज्यादा बनाया जाता है। चिकन को दही, लाल मिर्च, अदरक-लहसुन पेस्ट, धनिया पाउडर और केसर के साथ मैरीनेट किया जाता है। फिर इसे तांबे के तुजी पर रखकर धीमी आंच पर भुना जाता है, जिससे इसमें धुएं का बेहतरीन स्वाद आ जाता है। इसे खासतौर पर नान या कश्मीरी रोटी के साथ परोसा जाता था।

2. मांड़ भात (Maand Bhaat)

मांड भात बिहार और झारखंड की पारंपरिक और पोषण से भरपूर डिश है, जिसे खासकर ग्रामीण इलाकों में खूब पसंद किया जाता था। यह भोजन साधारण लेकिन सेहतमंद होता है, जिसे चावल पकाने के दौरान निकलने वाले स्टार्चयुक्त पानी (मांड) के साथ बनाया जाता है। चावल को उबालने के बाद जो स्टार्च निकलता था, उसे स्वादिष्ट मसालों और कभी-कभी पकी हुई सब्जियों के साथ पकाया जाता था। इसे देसी घी और अचार के साथ खाया जाता था।

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3. लहाबी कबाब (Lahabi Kebab)

lahabi kebab

लहाबी कबाब एक पारंपरिक कश्मीरी डिश है, जिसे शाही अंदाज में तैयार किया जाता था। यह अपनी नरम बनावट और मसालेदार स्वाद के लिए प्रसिद्ध है। खासतौर पर मटन कीमा से बनाए जाने वाले इन कबाबों को दही और कश्मीरी मसालों के साथ मैरीनेट किया जाता है, जिससे इनमें गहरा स्वाद आता है। इन्हें धीमी आंच पर पकाया जाता है, जिससे यह अंदर से रसदार और बाहर से हल्का कुरकुरा रहता है। लहाबी कबाब आमतौर पर यखनी ग्रेवी में परोसे जाते हैं, जिससे इनका स्वाद और भी लाजवाब हो जाता है। इसे नान या तंदूरी रोटी के साथ परोसा जाता है।

4. सत्तू पराठा (Dhaba Style Sattu Paratha)

बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की एक बेहद प्रसिद्ध और पारंपरिक डिश है, जिसे खासतौर पर देसी घी में सेंककर परोसा जाता था। यह पराठा अपने खास भरावन के कारण अलग पहचान रखता है। भरावन के लिए भुने हुए चने के सत्तू में प्याज, अदरक, लहसुन, हरी मिर्च, धनिया पत्ती, अचार का मसाला, नींबू का रस और सरसों का तेल मिलाया जाता है, जिससे इसका स्वाद तीखा और लाजवाब बनता है। इस मिश्रण को गूंथे हुए आटे में भरकर बेलकर तवे पर घी में कुरकुरा सेंका जाता है।

ढाबा स्टाइल सत्तू पराठा को आमतौर पर ताजे दही, चटनी, आम का सूखा अचार और प्याज के लच्छों के साथ परोसा जाता है। यह स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पौष्टिक भी होता है, क्योंकि सत्तू प्रोटीन और फाइबर से भरपूर होता है। यह डिश न केवल गांवों में बल्कि शहरों में भी बड़े चाव से खाई जाती है।

5. कलमी साग (Kalami Saag)

कलमी साग एक लोकप्रिय हरी पत्तेदार सब्जी है, जो बंगाल और ओडिशा की पारंपरिक डिशों में शामिल रही है। यह पानी के पास उगने वाली सब्जी होती है, जिसे आमतौर पर सरसों के तेल में हल्के मसालों के साथ पकाया जाता है। इसकी कोमल पत्तियां स्वाद में हल्की और पौष्टिक होती हैं, जो आयरन, कैल्शियम और फाइबर से भरपूर होती हैं।

बंगाल में इसे लहसुन, सूखी लाल मिर्च और पंचफोरन के साथ सादी भाजी के रूप में बनाया जाता है, जबकि ओडिशा में इसे दाल या झोल के साथ मिलाकर पकाया जाता है। इसमें बेसन या मूंग दाल भी मिलाई जाती थी, जिससे इसका स्वाद और पोषण बढ़ जाता है।
यह शरीर को ठंडक देने वाली सब्जी मानी जाती है और गर्मियों में विशेष रूप से खाई जाती है। इसे गरम-गरम चावल और दाल के साथ परोसना एक पारंपरिक तरीका है, जो स्वाद के साथ सेहत का भी ध्यान रखता है।

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6. लहसुन की खीर (Garlic Kheer)

garlic kheer

लहसुन की खीर एक पारंपरिक और अनोखी मिठाई थी, जिसे उत्तर भारत में खासतौर पर सर्दियों में बनाया जाता था। यह खीर न केवल स्वाद में लाजवाब होती थी बल्कि इसे आयुर्वेदिक गुणों के लिए भी जाना जाता था। लहसुन, जो अपनी गर्म तासीर और औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है, इस खीर को पोषण से भरपूर बनाता था।

इस खीर को बनाने के लिए लहसुन की कलियों को दूध में अच्छी तरह उबाला जाता था, जिससे उसकी तीखी गंध कम हो जाती थी और मिठास बढ़ जाती थी। इसके बाद इसमें घी, गुड़ या चीनी, इलायची और सूखे मेवे मिलाए जाते थे, जिससे इसका स्वाद और पौष्टिकता दोनों बढ़ जाते थे। यह खीर शरीर को गर्मी देने, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और पाचन को दुरुस्त रखने में मदद करती थी, इसलिए इसे सर्दियों में विशेष रूप से बनाया जाता था।

समय के साथ ये व्यंजन हमारी थालियों से गायब होते जा रहे हैं, लेकिन इन्हें दोबारा अपनाकर हम अपने समृद्ध खानपान की विरासत को फिर से जीवंत कर सकते हैं। यदि आप असली भारतीय स्वाद का आनंद लेना चाहते हैं, तो इन व्यंजनों को जरूर आजमाएं!

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Image Credit: Freepik

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