22 जुलाई 2022 को राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम सामने आए। इसी के साथ भारत को उसकी दूसरी महिला राष्ट्रपति मिल गई। द्रौपदी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली ‘ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन’ की प्रत्याशी थीं, वहीं उनके विपक्ष यशवंत सिन्हा थे। भरपूर वोटों के साथ जीतते हुए द्रौपदी मुर्मू ने इतिहास रच दिया। इस विजय घोष के साथ द्रौपदी देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बन गईं। लेकिन द्रौपदी के लिए यह सफर इतना आसान भी नहीं था। उन्होंने आजीवन कई दुख झेले और उन दुखों से बिना हार माने यहां तक पहुंची। आज के इस लेख में जानते हैं द्रौपदी मुर्मू की कहानी।
द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 में ओडिशा के मयूरभंज जिले के संताली आदिवासी परिवार में हुआ। द्रौपदी के पिता और दादा दोनों ही अपने गांव के सरपंच रहे थे, जिस कारण गांव उनका परिवार काफी प्रभावशाली था। लेकिन इसके बावजूद भी गांव में ऐसी कई समस्याएं थीं, जिनसे वहां के लोगों को जुझना पड़ता था। ऐसे में किसी पिछड़े गांव से निकलकर राष्ट्रपति बनने का सफर बेहद दिलचस्प था।
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राजनीति में करियर की शुरुआत से पहले द्रौपदी ने शिक्षक के रूप में काम किया। उन्होंने अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च रायरंगपुर से मानद सहायक शिक्षक के रूप में कार्य किया। इसके अलावा द्रौपदी कुछ समय तक सिंचाई विभाग में कार्यरत रहीं।
राष्ट्रपति बनने से पहले द्रौपदी 6 साल के लिए झारखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं। उन्हें झारखंड की पहली महिला राज्यपाल होने का गौरव प्राप्त है।
द्रौपदी मुर्मू का राजनीतिक सफर साल 1997 में शुरू हुआ था। जहां उन्होंने पार्षद के रूप में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया। इसके बाद कुछ समय तक वो बतौर उपाध्यक्ष भी कार्यरत रहीं। द्रौपदी मुर्मू के राजनीतिक सफर में बड़ा मुकाम तब आया जब उन्हें विधायक के रूप में चुना गया। साल
2000-2004 के बीच द्रौपदी मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री रहीं। इस बीच उन्हें वाणिज्य और परिवहन का स्वतंत्र प्रभार भी संभाला था। साल 2004 के बाद दोबारा विधायक बनीं। अपने बेहतरीन प्रदर्शन के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ अवार्ड से भी सम्मानित किया गया।
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साल 2001 के दौरान द्रौपदी मुर्मू की शादी श्यामाचरण मुर्मू नाम के बैंकर से हुई थी। दोनों ने 3 बच्चों को जन्म दिया और सुखी-सुखी जीवन जीने लगे। साल 2010 में द्रौपदी का जीवन पूरी तरह बदल गया। साल 2010 में उनके पहले बेटे की कार एक्सीडेंट में मौत हो गई। इसके बाद साल 2013 में उनके दूसरे बेटे का भी एक्सीडेंट हो गया। बेटों की मौत ने पिता श्याम चरण को भी प्रभावित किया, जिसके चलते कार्डियक अरेस्ट की वजह से साल 2014 में उनका भी निधन हो गया। इतनी मुश्किलों के बाद भी द्रौपदी ने कभी हार नहीं मानी और राष्ट्रपति का पद हासिल किया।
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