बीते सालों में महिला खिलाड़ियों अलग-अलग प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन किया है। कुश्ती से लेकर निशानेबाजी समेत हर क्षेत्र में महिलाएं बेहतर प्रदर्शन करती आई हैं। इस लीक की शुरुआत करने वाली मिहलाओं में अंजलि भागवत वेदपाठक का नाम शामिल है। बता दें कि अंजलि भारत शुटर हैं, जिन्होंने 3 ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व किया है। इसके अलावा वो देश की एक मात्र ऐसी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने चैंपियंस ऑफ चैंपियंस का खिताब अपने नाम किया है।
आज के इस लेख में हम आपको अंजली भागवत की इंस्पायरिंग कहानी के बारे में बताएंगे कि आखिरकार कैसे अंजलि कैसे युवा शूटर्स के लिए प्रेरणा का श्रोत बनीं।
राइफल शूटिंग की हुई शुरुआत
अंजलि हमेशा से शूटिंग नहीं करना चाहती थीं। एक बार कॉलेज के दौरान अंजलि के कॉलेज में एनसीसी की इंटर कॉलेज शूटिंग प्रतियोगिता चल रही थी। प्रतियोगिता में उनकी एक साथी कैडेट हिस्सा लेने वाली थी मगर वो अचानक बीमार पड़ गई, जिस वजह से अजलि को भाग लेने के लिए कहा गया। अंजलि जूडो-कराटे में ग्रीन बेल्ट और पर्वतारोहण करने की वजह से काफी एक्टिव थीं। इस वजह से पहली बार उनका समाना एयर राइफल शूटिंग से हुआ।
मुकाबले की शुरुआत में अंजलि ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया लेकिन कई प्रयासों के बाद वो निशाना लगाने सक्षम रहीं। इसी दौरान अंजलि का सेलेक्शन महाराष्ट्र की महिला शूटिंग टीम में शामिल हुई। साल 1988 में राष्ट्रीय निशानेबाजी प्रतियोगिता में रजत पदक जीता। इसी के साथ उन्होंने अलग-अलग लेवल की प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया।
इसे भी पढ़ें-मिलिए देश की पहली महिला IAS अन्ना राजम मल्होत्रा से, 1951 में ऐसे किया था संघर्ष
नाना पाटेकर से गिफ्ट में मिली थी राइफल
साल 1993 में फिल्म एक्टर नाना पाटेकर ने अंजलि को पहली बार राइफल गिफ्ट की थी। इसके बाद 1995 में उन्होंने गेम्स में अंतराष्ट्रीय मेडल जीता था। चार साल बाद अंजलि ने कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में तीन गोल्ड और एक सिल्वर मेडल जीता। इस समय उन्होंने हंगरी के कोच लाजलो सजूसाक के साथ ट्रेनिंग करना शुरू किया और फिर एशियन चैपिंयनशिम में सिल्वर मेडल जीता। खेल में बेहतर प्रदर्शन के कारण उन्हें सिडनी ओलंपिक में जगह मिली। जहां पहले ही ओलंपिक में वो फाइनल तक पहुंची।
साल 2000 में अंजलि भागवत ओलंपिक में वाइल्ड कार्ड के जरिए पहुंची। वह इवेंट में पहुंचने वाली पहली खिलाड़ी थीं। सिडनी पहुंचने पर उनके पास शूटिंग राइफल भी नहीं थी। तब कोच से बात करके उन्होंने शूटिंग इक्वपमेंट का इंतजाम किया। अपनी राइफल ना होने के बावजूद भी उन्होंने खेल में शानदार प्रदर्शन किया।
इसे भी पढे़ें-बचपन में शारीरिक रूप से कमजोर रही Karnam Malleswari आगे चलकर बनीं भारत की पहली महिला ओलंपिक विजेता
साल 2002 में जीता म्यूनिख वर्ल्ड कप का खिताब
2002 में अंजलि ने म्यूनिख में खेले गए वर्ल्ड कप में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था। अंजलि को इस खास मैच में बारे में कुछ भी नहीं पता था, मैच से 5 मिनट पहले ही खेल के नियम बताए गए। इसके बावजूद उन्होंने फाइनल में जगह बनाई। इस मुकाबले में 3 शॉट्स में उन्हें मात देकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया। अपने करियर में अंजलि ने अंतरराष्ट्रीय करियर में उन्होंने कुल 31 स्वर्ण, 23 सिल्वर और रजत और सात कांस्य पदक अपने नाम किया।कॉमनवेल्थ खेलों में अंजलि ने 12 गोल्ड अपने नाम किए हैं। अपने शानदार खेल प्रदर्शन के लिए के लिए उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया गया।
तो ये थी अंजलि की इंस्पायरिंग जर्नी, आपको हमारा यह आर्टिकल अगर पसंद आया हो तो इसे लाइक और शेयर करें, साथ ही ऐसी जानकारियों के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों