भारत में अब भी LGBTQAI+ कम्युनिटी के लोगों को लंबी जंग लड़नी पड़ती है। उन्हें रोजाना ना जाने कितने सवालों का सामना करना पड़ता है। इंसानी नेचर बहुत ही अजीब होता है जहां अपने से अलग किसी दूसरे इंसान को हमेशा शक की निगाहों से देखा जाता है। अजनबियों से ही नहीं कई बार तो अपनों से ही लड़ना पड़ता है। ऐसे कई किस्से सामने आए हैं जहां घर वालों ने ही अपने बच्चों को घर से बाहर निकाल दिया है। ऐसे में अगर कोई कहानी आपके सामने आए जो दिल को छू जाए, तो अच्छा ही लगेगा। ऐसी ही एक कहानी है नीलाक्षी और कोनोनिका रॉय की।
कोनिनिका बायसेक्सुअल हैं और उनकी मां नीलाक्षी के लिए यह किसी शॉक से कम नहीं था, लेकिन जिस तरह से उन्होंने अपनी बेटी का साथ दिया वो तारीफ के काबिल है। नीलाक्षी, उनके पति सुबोर्तो और कोनिनिका तीनों ही अब प्राइड मूवमेंट से जुड़े हुए हैं। अपनी खास सीरीज Living With Pride के तहत आज हम आपको बताने जा रहे हैं इनकी छोटी, लेकिन प्रेरित कर देने वाली कहानी।
आगे है नीलाक्षी से हमारी बातचीत के कुछ अंश...
सवाल: अपनी और अपनी बेटी की कहानी के बारे में बताएं
जवाब: मेरी बेटी खुद को बायसेक्सुअल कहकर आइडेंटिफाई करती है। उसके बारे में मुझे 2012-13 के दौरान पता चला। मुझे लगा कि मेरी बेटी की दोस्ती किसी एक लड़की से बहुत ज्यादा बढ़ रही है। हालांकि, मैं और मेरे पति उससे बात कर पाते उससे पहले वह पढ़ाई के लिए विदेश चली गई। पर वहां जाकर हमें पता चला कि वह बहुत तनाव में है। वह हमसे बात नहीं करती थी, ईमेल, स्काइप कॉल, फोन आदि सब बंद कर दिया था। हमें लगने लगा कि कुछ तो है जिसे वह हमसे छुपा रही है। हमने भी उसे थोड़ी स्पेस देने की कोशिश की। पर हमें लगा कि कभी तो बात करनी जरूरी है।
हमने एक दिन स्काइप पर उससे बात की और उसकी समस्या के बारे में पूछा। उसने हमें बताया कि वह बायसेक्सुअल है। हमने उससे पूछा कि क्या वह अपने तनाव के लिए काउंसलिंग लेना चाहती है, तो उसने मना कर दिया। मेरे लिए कोनिनिका की बात शॉकिंग थी, लेकिन मैंने इसे कभी गलत नहीं समझा। मैं आपको यह बताना चाहती हूं कि जब बच्चे खुद ही उधेड़बुन में रहते हैं, तब वो बहुत अकेले हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि यह मेरे साथ ही क्यों हो रहा है। ऐसे समय पर उनसे बात करें। उन्हें समझें और एक्सेप्ट करें। मैं कॉलेज में इंग्लिश लिटरेचर पढ़ाती हूं और मैंने ऐसे कई ऑथर्स के बारे में सुना है जो बायसेक्सुअल हैं। इसलिए मुझे लगा नहीं कि इसमें कुछ गलत है, लेकिन अगर आपको यह गलत भी लग रहा है, तो भी बच्चों के सामने एकदम से बहुत बड़ा रिएक्शन ना दें।
आपके बच्चे की आइडेंटिटी कभी गलत नहीं हो सकती। वह आपका बच्चा ही है। उसे आप जितना समझेंगी उतना अच्छा होगा।
इसके बाद 2017 में मैं स्वीकार रेनबो पेरेंट्स ग्रुप से जुड़ गई और तब से ही मैं खुद को और दूसरों को इस बारे में एजुकेट कर रही हूं।
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सवाल: आपकी बेटी से जुड़ा ऐसा कोई किस्सा जिससे आपकी जिंदगी में बहुत बड़ा बदलाव आया है?
जवाब: हां मैं ऐसे दो किस्से बताती हूं। जब वह हमसफर ट्रस्ट में काम करती थी तब उसका उठना बैठना हमेशा LGBT कम्युनिटी के लोगों के साथ ही होता था। कोनिनिका ने पूछा कि क्या मैं होली पर अपने दोस्तों को ले आऊं। उस होली पर हमारे घर कम्युनिटी के 8-10 बच्चे आए। किसी के बाल अलग रंग के थे, किसी ने अलग तरह से ड्रेस अप किया हुआ था। पहली बार हमारा घर इतना रंगीन हुआ था। हमें थोड़ा आश्चर्य था, लेकिन देखकर खुशी भी थी कि ये बच्चे इतने खुश हैं। उस दिन एक ही झटके में हमारी लड़की ने हमें इतना अपनापन महसूस करवाया कि हमारे लिए कम्युनिटी की परिभाषा ही बदल गई। किसका क्या जेंडर है, किसकी क्या सेक्सुएलिटी है, कौन खुद को कैसे आइडेंटिफाई करता है इसके परे ये बच्चे सिर्फ अपने लगे। उस किस्से ने हमारी सोच को खोल दिया। मैंने और मेरे पति ने उनके लिए खाना बनाया।
दूसरे किस्से में कोनिनिका ने मुझे 'एक माधव बाग' नाटक देखने बुलाया। उस एक्ट में एक मां का बच्चा उसे बहुत बड़ा होकर बताता है कि वह गे है। यह नाटक बहुत ही रिवीलिंग था और मुझे रोना आ गया। उसमें मां की कहानी थी कि उसने कैसे अपने बच्चे को एक्सेप्ट किया। उस दिन कम्युनिटी के बच्चों ने मुझे इतना प्यार दिया कि मुझे लगा कि शायद मैं बहुत छोटी थी अभी तक और मुझे लगा कि मैंने खुद के दायरे से निकल कर इनको कभी समझने की कोशिश ही नहीं की।
सवाल: आपकी बेटी को किस तरह के स्ट्रगल्स से जूझना पड़ता है?
जवाब: इसके लिए कोई लिस्ट नहीं बताई जा सकती, लेकिन यह एक परमानेंट फीलिंग है कि समाज उसे एक्सेप्ट नहीं कर रहा है। जब शादियां होती हैं, तो वह और उसकी पार्टनर ऐसे ही कपल के तौर पर नहीं जा सकते हैं। सोसाइटी में भी सबको पता है कि उसकी पार्टनर कौन है, लेकिन सब उन्हें दोस्त ही कहते हैं। एक खालीपन इससे आ ही जाता है। हां, हम एक मेट्रो सिटी में रहते हैं और बॉम्बे जैसे शहर में घर लेना, नौकरी करना आदि में इतना स्ट्रगल नहीं हुआ। यह शहर काफी एक्सेप्टिंग है, लेकिन अंदरूनी सफरिंग को नहीं बदला जा सकता है।
सवाल: बतौर मां आप अपने रिश्ते को और बेहतर बनाने के लिए क्या करती हैं?
जवाब: जब से मुझे ऐसा लगा कि वह शायद लेस्बियन है तब से मैं काउंसिलर से बात करने लगी थी। इसमें कहीं हमारी गलती तो नहीं है, हम कुछ कर सकते हैं या ऐसे ही कई सवाल मैं पूछना चाहती थी। तभी से मैं अपनी सोच का दायरा बढ़ाने लगी। मुझे लगता है कि हमारे रिश्ते को बढ़ाने के लिए यह बहुत जरूरी था। मुझे यह समझ आया कि मेरी बेटी तो बदल रही है, लेकिन हमारे लिए तो वह हमारा बच्चा ही है।
मेरे पति को भी इन चीजों को एक्सेप्ट करने में थोड़ा समय लग रहा था। उसकी जिंदगी बदल रही है, उसका पार्टनर बदल रहा है, उसका काम बदल रहा है यह सब एक्सेप्ट करने में उन्हें समय तो लगा, लेकिन उन्होंने दोबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा। ऐसे में स्वीकार से जुड़ना मेरे पति और मेरे लिए बहुत अच्छा रहा। वहां LGBT कम्युनिटी के लिए एक कोर्स होता है हमने वह कोर्स किया और अपनी सोच को और बढ़ाया। तब हमें बहुत कुछ पता चला जो शायद पहले नहीं था।
सवाल: क्या कभी आपको ऐसा लगा कि आपके करीबियों का व्यवहार आपके प्रति बदल गया?
जवाब: हां पहले-पहले लगता था। हमारे करीबियों का व्यवहार बदल गया है। यह शायद जायज भी था क्योंकि इसके पहले किसी के बच्चे को लेकर इस तरह की बातें हमने सुनी नहीं। हर चीज में पहली बार का एक एक्सपीरियंस तो अनोखा होगा ही। हमारे रिश्तेदार, दोस्त, कलीग्स, पड़ोसियों सबके व्यवहार में अंतर दिखा, लेकिन जब उन्होंने हमें अपनी बेटी को एक्सेप्ट करने लगे हैं, तो धीरे-धीरे सबके व्यवहार में एक्सेप्टेंस आने लगा।
हां, कुछ लोग अलग तरह से व्यवहार करते हैं, लेकिन मैंने इसके बारे में सोचना बिल्कुल ही छोड़ दिया है। कोई क्या सोचता है इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता।
सवाल: आपके और आपकी बेटी की जिंदगी का एक आम दिन कैसा बीतता है?
जवाब: मेरी बेटी का दिन वाकई बहुत अच्छा बीतता है। वह अपनी पार्टनर के साथ रहती है और उनके पास एक बिल्ली है जो उनके बच्चे जैसी है। सुबह उठते ही मेरे पास तस्वीरें भी आ जाती हैं और मैं खुश होती हूं। मेरे घर में बेटी की पार्टनर और उनकी मां भी आती है। साथ ही उनकी बिल्ली भी जिसे मेरे घर के सभी लोग बहुत प्यार करते हैं। अगर आपके घर का माहौल अच्छा है, तब आपका दिन अच्छा ही जाएगा।
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सवाल: आपके हिसाब से LGBTQ+ एक्सेप्टेंस बढ़ाने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
जवाब: अगर मैं इसके बारे में बोलना चाहूं तो पूरा लेक्चर हो जाएगा। एक्सेप्टेंस बढ़ाने के लिए पुलिस, डॉक्टर्स, टीचर्स, स्टूडेंट्स, आस-पड़ोस वाले सभी के लिए नॉलेज बहुत जरूरी है। किसी ने अगर सिखाया ही नहीं है, तो हमें कैसे पता चलेगा इनके बारे में। हमसे जो अलग है उसके बारे में पता होगा तो किसी भी तरह का डर या शंका मन में नहीं रहेगी। हालांकि, अभी इसके लिए लंबी लड़ाई जरूरी है। सब चीजें एजुकेशन से जुड़ी हैं। किताबों में जब बच्चा फैमिली के बारे में पढ़ता है, तो हमेशा पुरुष पिता, स्त्री मां और बच्चा इसी तरह से पढ़ता है, लेकिन इतने जेंडर्स हैं, तो फैमिली की यही एक परिभाषा तो नहीं हो सकती ना।
नीलाक्षी और कोनिनिका हमेशा से ही खुद को और दूसरों को एजुकेट करते रहते हैं। वो जिस तरह से लोगों को एजुकेट करते हैं, यह वाकई मोटिवेटिंग हैं।
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