कश्मीर की यह महिला कवि कभी नहीं गई स्कूल, कविता लिखने के लिए अविष्कार की खुद की वर्णमाला

कश्मीर की रहने वाली 65 वर्षीय ज़रीफ़ा जान ने अपनी रचनाओं को संरक्षित करने के लिए नायाब तरीका निकाला है, जिसे देखने बाद लोग उनकी काबिलियत की तारीफ कर रहे हैं।

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कश्मीर की रहने वाली ज़रीफ़ा जान ने कुछ ऐसा कर दिखाया है, जिसे जानने के बाद हर तरफ उनकी चर्चा शुरू हो गई है। उत्तर कश्मीर के बांदीपोरा जिले की रहने वाली 65 वर्षीय ज़रीफ़ा जान एक सूफी कवयित्री हैं, लेकिन असल जिंदगी में वह कभी स्कूल नहीं गईं। वह अपनी मूल भाषा कश्मीरी को बोल सकती हैं, लेकिन इसे पढ़ और लिख नहीं सकती। कुछ साल पहले से ज़रीफ़ा ने खूबसूरत ग़ज़लें बनानी शुरू की, लेकिन इसे संग्रह कैसे किया जाए, इसका का कोई तरीका समझ नहीं पा रही थी।

अपनी ग़ज़लों को एक जगह संग्रह करने में ज़रीफ़ा को काफी दिक्कतें आ रही थी। शुरुआत में उनका बड़ा बेटा उनकी गजलों को टेप में रिकॉर्ड करता था और उनकी बड़ी बेटी उसे कश्मीरी भाषा में लिखने की कोशिश करती थी, लेकिन ज़रीफ़ा इन दोनों तरीकों से नाखुश थी। इसके बादज़रीफ़ा ने एक ऐसा तरीका निकाला, जिसे देखनेके बाद लोग उनकी काबिलियत की तारीफ करने से रोक नहीं पा रहे हैं।

ज़रीफ़ा ने इस तरह बनाई अपनी वर्णमाला

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वाइस इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, ज़रीफ़ा ने बताया कि ''वह अपने बच्चों को हर जगह साथ लेकर जाती हैं और उनसे मेरी खुद की पंक्तियों को मेरे कान में फुसफुसाने के लिए कहती हैं ताकि वो उन्हें दूसरों के लिए जोर से कह सकें। ज़रीफ़ा ने आगे बताया कि, वह अपने बच्चे हर बार अपने साथ नहीं ले जा सकती। इसलिए वो इसे टेप या फिर कागज पर रिकॉर्ड करना चाहती थी। इसके लिए काफी एक्सपेरिमेंट करने के बाद उन्होंने कुछ तकनीक निकाला। दरअसल ज़रीफ़ा ने सर्कल से खुद की वर्णमाला तैयार की। जिसमें कुछ बड़े, तो कुछ छोटे सर्कल या फिर अन्य तरह के सर्कल बनाई गई हैं। इस तरह से ज़रीफ़ा द्वारा कई वर्णमाला बनाई गई है। ज़रीफ़ा के अनुसार, यह उनकी भाषा है, जिसका नाम है ''सर्कल की भाषा''(language of circle)। ज़रीफ़ा ने यह भाषा सालों में विकसित किया है। इसके जरिए लिखी गई कविताओं को केवल वह ही पढ़ सकती हैं।'' (समाज की बंदिशों को तोड़ती संयुक्ता बनर्जी)

शादी के बाद ली थी कविता में दीक्षा

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वाइस इंडिया को ज़रीफ़ा ने बताया कविता में उनकी दीक्षा शादी के कुछ साल बाद शुरू हुई थी। उस वक्त वह 30 साल की थीं। उनके अनुसार एक बार वह पास के एक नाले से पानी लेने गई थी, तब उन्हें एहसास हुआ कि वह अपने आसपास की दुनिया की सारी समझ खो दी है और एक तरह की समाधि में चली गई हैं। जब वह वापस आईं, तो उन्होंने अपना घड़ा खो दिया था, लेकिन उसके बाद उन्होंने खुद को एक अलग व्यक्ति की तरह महसूस किया। जब उन्हें होश आया तो उनके मुंह से एक ग़ज़ल निकली।

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लिख चुकी हैं सैकड़ों कविताएं और गजलें

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ज़रीफ़ा के अनुसार, ''ग़ज़ल एक कविता है जो अरबी में उत्पन्न हुई है, और अक्सर प्यार, लालसा जैसे विषयों से संबंधित होती है। "तब तक, मुझे नहीं पता था कि कविता क्या है क्योंकि मैंने इसे कभी नहीं पढ़ा था। लेकिन तब से लेकर अब तक सैकड़ों कविताएं और गजलें लिख चुकी हूं''। ज़रीफ़ा ने बताया कि जब उनके बच्चे स्कूल में थे, तब उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें कविताओं का शौक है। वहीं उनके बच्चे अंग्रेजी और उर्दू में पढ़ना-लिखना सीख रहे थे, लेकिन उनकी कविताएं कश्मीरी भाषा में उनके पास आती है, यह एक उपेक्षित भाषा है, जिसका उपयोग कम हो रहा है, यहां तक कि कश्मीर में भी।

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