हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। हमारे देश में संविधान की तरफ से हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार मिला हुआ है, लेकिन अपने इसी अधिकार का इस्तेमाल करने वाली गौरी लंकेश, जिन्होंने समाज की बुराइयों को अपने अखबार 'लंकेश पत्रिके' के ज़रिए सामने लाने का बीड़ा उठाया था, का 5 सितंबर 2017 को बेरहमी के साथ कत्ल कर दिया गया था। कलम की ताकत को तलवार से भी तेज माना गया है, लेकिन कलम की सिपाही गौरी ने पत्रकारिता में अपने मूल्यों के साथ खड़े होने की भारी कीमत चुकाई। आज गौरी का जन्मदिन है। सच और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए संघर्ष करने वाली गौरी लंकेश की भूमिका हमारे समाज को आगे ले जाने और महिला सशक्तीकरण की दिशा में अहम रही है।
गौरी लंकेश चाहती थीं कि समाज के भीतर की बुराइयों को खत्म किया जाए। उनका अखबार इस मायने में विशेष था कि वह विज्ञापन नहीं लेता था। गौरी हर उस मुद्दे पर लिखती थीं, जिसका सरोकार लोगों की जिंदगी से था और जो उन्हें गहराई से प्रभावित करता था।
गौरी लंकेश के मन में किसी तरह का डर नहीं था। वह हर कीमत पर सच लोगों के सामने लाने में यकीन रखती थीं और इसके लिए उन्होंने अपनी जान की बाजी लगा दी। गौरी दलितों और आदिवासियों के मुद्दों पर लिखती थीं। भूमाफ़िया, जो आदिवासियों की ज़मीन हड़प लेते थे, उनके ख़िलाफ़ भी गौरी ने काफी कुछ लिखा। सांप्रदायिकता पर गौरी बहुत बेबाकी से लिखती थीं। सांप्रदायिक राजनीति और हिंदू-मुस्लिम तुष्टीकरण की आलोचना करने में गौरी हमेशा मुखर रहीं। गौरी डॉ. भीमराव अंबेडरकर के विचारों से भी प्रभावित थीं, दलितों के साथ होने वाली ज्यादति पर भी गौरी ने निर्भीक होकर लिखा था।
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गौरी को लगातार मारने की धमकिया मिलती रहती थीं। उन्होंने यह स्वीकार किया था कि उनकी जिंदगी को ख़तरा है। उनके घर में दोहरे दरवाज़े लगवाए गए थे और बाहर सीसीटीवी भी लगवाया गया था। लेकिन इन स्थितियों के बावजूद गौरी अपने काम से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं थीं। गौरी ने साफ कर दिया था कि वह लिखना जारी रखेंगी। निर्भीक पत्रकारिता के कारण निशाने पर आईं गौरी लंकेश को अपराधियों ने उनके घर में घुसकर मार दिया गया। साफ है कि सच की राह पर चलना आसान नहीं, लेकिन गौरी जैसे लोगों की स्मृति महिलाओं में अपनी बातें मजबूती से रखने का साहस देती है।
पत्रकारिता के लिए अपनी अमूल्य सेवाएं देने वाली गौरी लंकेश को Anna Politkovskaya Award से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान उन्हें यूके स्थित Reach All Women in War की तरफ से दक्षिणपंथी हिंदू अतिवादिता, महिला अधिकारों के लिए आवाज उठाने और जातिगत भेदभाव के खिलाफ लिखने के लिए दिया गया था। गौरी लंकेश की हत्या के लगभग डेढ़ साल बाद आज इस बात की चर्चा है कि extremism यानी अतिवादिता किस तरह से देश को अपना शिकार बना रही है। गौरतलब है कि प्रेस फ्रीडम इंडेक्स भी अपने आंकड़ों में यह जाहिर कर चुका है कि भारत की स्थितियां पत्रकारों के लिए काफी दयनीय है और उनके जीवन पर काफी खतरा है। लेकिन गौरी लंकेश की लेखनी की धार आज भी इस बात का सबूत है कि सच की ताकत में जो धार है, वह किसी हथियार में नहीं।
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