मासिक धर्म की बात करें तो भारत जैसे देश में इस शब्द पर एक नहीं बल्कि कई घंटों तक बातचीत हो सकती है। एक तरह से भारत के लगभग हर राज्य-शहर और गांव में आज भी मासिक धर्म को लेकर कई लड़ाई लड़नी पड़ती है। मासिक धर्म वाली महिलाओं के साथ भेदभाव करना या सैनिटरी पैड को लेकर वाद-विवाद होना आज एक आम बात हो चली है और महिलाओं के लिए कई चुनौतियां भी रहती हैं।
हालांकि, आज देश में ऐसे बहुत सारे ब्रांड है जो पीरियड से सम्बंधित प्रोडक्ट्स बनाते हैं और वो भी पर्यावरण को ध्यान में रखकर। मासिक धर्म से सम्बंधित प्रोडक्ट्स बनाने वाली एक ऐसी ही कंपनी है जिसका नाम है कार्मेसी।
टिकाऊ और सभी प्राकृतिक उत्पादों की पेश करने वाला एक वेलनेस ब्रांड, कार्मेसी का उद्देश्य मासिक धर्म और स्वास्थ्य के बारे में महिलाओं के साथ-साथ आम लोगों की मानसिकता को बदलना है। हाल में ही हरजिंदगी की टीम ने कार्मेसी की संस्थापक तन्वी जौहरी के साथ खास बातचीत की थी। ऐसे में अगर आप उस वीडियो को नहीं देखा है, तो कुछ सवालों का जवाब यहां इस लेख में आपको ज़रूर मिल जाएगा।
सेनेटरी पैड डिस्पोजल के बारे में
भारत में सेनेटरी पैड का निस्तारण करना एक बड़ी चुनौती से कम नहीं है। क्योंकि, ज्यादातर महिलाओं को यह मालूम ही नहीं इसका कैसे इस्तेमाल करना है और इस्तेमाल से दौरान किन-किन बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत है। इसके अलावा ये भी एक परेशानी है कि कई महिलाओं के पास बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी नैपकिन पहुंचते ही नहीं है। तन्वी जौहरी कहती हैं कि 'सैनिटरी नैपकिन के बारे में कुछ महिलाओं को बुनियादी समझ का ज्ञान भी नहीं है। जब सैनिटरी नैपकिन को किसी ऐसे अखबार या पैकेट में लपेटकर फेंकते हैं, जिस पर सील नहीं होती है। वे पैड कूड़ा बीनने वालों को खुली अवस्था में मिलते हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान हो सकता है"।
आगे वो कहती हैं कि "जमीनी स्तर पर कचरे को अलग करने वाले श्रमिक जब पीरियड वेस्ट के संपर्क में आते हैं, जो कि पीरियड्स के दौरान खून से निकलने वाले हानिकारक बैक्टीरिया के संपर्क में आते ही बीमार पड़ जाते हैं।"
आज के समय में बहुत सारे नैपकिन ब्रांड है जो सुनिश्चित करने के लिए सैनिटरी नैपकिन को पैक करके पेश कर रहे हैं। हालांकि, हर किसी के पास इसकी पहुंच नहीं है। अभी भी आगे जाने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है।
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पीरियड्स के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण
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जब हम पीरियड्स की बात करते हैं, तो अधिकांश लोगों का दृष्टिकोण बहुत नकारात्मक होता है। तन्वी जौहरी कहती हैं कि, "हम पीरियड्स के बारे में बात नहीं कर रहे हैं, हालांकि यह एक नेचुरल प्रक्रिया है। हम बातचीत से कतराते हैं क्योंकि, हमें लगता है कि महिलाएं अपवित्र हैं।"(हेल्दी लाइफस्टाइल के टिप्स)
आगे वो कहती हैं कि, "भारतीय परिवार पीरियड्स के बारे में खुलकर बात नहीं करते हैं और यही एक कारण है कि ज्यादातर महिलाओं से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का पता नहीं चल पाता है। उदाहरण के लिए, पीसीओएस सबसे अहम मुद्दों में से एक है, लेकिन दुर्भाग्य से कोई भी महिला इसके बारे में खुलकर घरवालों से भी बात नहीं करती है।"
PMS का इस्तेमाल सेक्सिस्ट स्टीरियोटाइप के रूप में
पीएमएस एक वास्तविक चीज है, लेकिन इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने महिलाओं के खिलाफ एक सेक्सिस्ट स्टीरियोटाइप के रूप में किया जाता है। तन्वी कहती हैं कि "यह शिक्षा की कमी है। हर व्यक्ति को दोष नहीं देना चाहिए क्योंकि, Pms के बारे में पर्याप्त जागरूकता नहीं है। बहुत सी महिलाएं अभी भी पीएमएस को एक मिथक समझती हैं। अगर महिलाएं खुद नहीं जानती हैं कि क्या यह वास्तविक है, तो हम और आप अन्य लोगों से यह कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे समझें कि महिलाएं वास्तव में क्या महसूस कर रही हैं।"(पावरफुल महिला CEOs के बारे में )
आगे वो कहती हैं कि 'पुरुषों और महिलाओं दोनों को सिखाया जाना चाहिए कि पीएमएस बहुत वास्तविक है और इसके कारण क्या है। इसके अलावा हो कहती हैं कि सभी लक्षणों के साथ और इससे जुड़ी प्रक्रिया को भी बताना बहुत ज़रूरी है'।
कार्मेसी की संस्थापक तन्वी जौहरी ने मासिक धर्म की चुनौतियों और उन्हें ठीक करने के तरीकों के बारे में क्या कहती हैं, आइए जानते हैं।
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महिलाओं को पीरियड लीव का अधिकार
पीरियड लीव कोई विकल्प नहीं है। इसका रस्ता यह है कि किसी भी संगठन को यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि जब पीरियड्स की बात आती है तो महिलाओं की विशेष रूप से छूट देना चाहिए।
सिर्फ पीरियड लीव देना ही काफी नहीं है। बल्कि, संगठन के सभी महिला कर्मचारियों के लिए पीरियड्स और उनकी चुनौतियों के बारे में पैड, रेस्ट रूम और शिक्षा देने की ज़रूरत है।
तन्वी जौहरी आगे कहती हैं कि 'पीरियड्स के बारे में बात करते समय अपनी आवाज कम करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि, व्यवहारिक रूप हम सभी को मिलकर इस चीज को बदलने की ज़रूरत है। मौजूदा समय में महिला और पुरुष किसी से कम नहीं और सभी को इस मुद्दे पर खुलकर विचार करने की ज़रूरत है।
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Image Credit:(@businessworld.in,hz)
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