भारत में सेक्स एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर खुल कर बात करना तो दूर की बात है, सोचने तक को गलत समझा जाता है। ऐसे में सेक्स के विषय में जरूरी नॉलेज आज भी कई लोगों को नहीं है। खासतौर पर महिलाओं और बच्चों को सेक्स के विषय में बहुत कम जानकारी है और जो है भी उस पर वह बात करने से कतराते हैं।
इस स्थिति में एक महिला का सेक्स पर खुल कर बात करना और बच्चों को इस विषय से संबंधित जरूरी जानकारी देना बेहद अनोखा और काबिल-ए-तारीफ काम लगता है और यही काम कर रही हैं अंजू किश। अंजू किश सेक्स एजुकेशन कंपनी UnTaboo की फाउंडर हैं और वह बच्चों एवं टीन्स को सेक्स एजुकेशन देने और इस विषय पर उनमें जागरूकता फैलाने के लिए अवेयरनेस प्रोग्राम्स बनाती हैं।
अंजू किश पेशे से पत्रकार भी रह चुकी हैं। लॉ और मास मीडिया में डबल ग्रेजुएट रह चुकीं अंजू किश ने हरजिंदगी से खास बातचीत में अपने सफर के बारे में कई रोचक बातें बताई।
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कैसे हुई सफर की शुरुआत?
लोगों को सेक्स एजुकेशन के बारे में उचित जानकारी देना कोई सरल काम नहीं है क्योंकि आज भी यह विषय एक टैबू है। मगर अंजू ने यह ठान लिया कि वह अपने तरीके से लोगों को इस वषिय पर जरूरी जानकारी देंगी और इसकी शुरुआत उन्होंने अपने ही घर से की।वर्किंग वुमन होने के साथ-साथ अंजू एक बेटे की मां भी हैं। जब अंजू का बेटा बड़ा होने लगा तो उन्होंने उसे अपनी तरह सेक्स से जुड़ी जरूरी बातों और पहलुओं पर जानकारी देना शुरू कर दिया। वह कहती हैं, 'मैंने कभी भी अपने बेटे को एडल्ट कंटेंट देखने, पढ़ने या उससे जुड़ी कोई भी बात पूछने से मना नहीं किया बल्कि मैने अपने बेटे को खुद ही इस विषय से जुड़ी जरूरी बातें समझाई।'
अंजू आगे बताती हैं, 'मेरा बेटा जब 6-7 वर्ष का था तब उसने मेरे से पूछना शुरू कर दिया था कि बच्चा पेट में कैसे आता है? ऐसा हर बच्चे के दिमाग में आता है, जब वह बड़ा होने लग जाता है। मेरे साथ भी ऐसा होता था, मगर तब इन विषयों पर खुल कर बात करना सही नहीं समझा जाता था। लेकिन मैनें अपने बेटे को इन विषयों पर अपने तरह से समझाया।'
हैरानी की बात तो यह है कि आज भी बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने के नाम पर बुक स्टॉल पर आपको एक अच्छी किताब तक नहीं मिलेगी। ऐसा ही हुआ था अंजू के साथ, जब वह किताब की तलाश में बुक स्टोर जा पहुंची थीं। वह बताती हैं, ' मुझे कई विदेशी किताबें मिली थी, जिनके द्वारा बच्चों को सेक्स एजुकेशन दी जा सकती थी। मगर भारत में ऐसी एक भी किताब मौजूद नहीं थी, जिसे देख मुझे बच्चों के लिए सेक्स एजुकेशन पर किताब लिखने का ख्याल आया। '
अपने ख्याल को वास्तविक रूप देने के लिए अंजू ने केवल अवॉर्ड विनिंग किताब 'How I Got My Belly Button' लिखी, जिसके द्वारा बच्चों को सेक्स से जुड़ी जरूरी जानकारी दी जा सकती हैं, बल्कि अपनी कॉपी राइटर की जॉब छोड़ कर सेक्स एजुकेशन के क्षेत्र में काम भी शुरू किया और वर्ष 2011 में UnTaboo की नीव रखी गई।
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बच्चों के लिए सेक्स एजुकेशन क्यों हैं जरूरी ?
बीते कुछ समय से देश में बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने पर बातें हो रही हैं। मगर इस मुद्दे पर ठोस कदम न तो अब तक माता-पिता ने उठाए और न ही स्कूल वालों की ज्यादा कोशिशे नजर आईं। मगर अंजू किश का मानना है, 'माता-पिता बच्चों के पहले टीचर होते हैं और उन्हें अपने बच्चों को छोटी उम्र से ही मानवीय शरीर के बारे में जरूरी जानकारी देना शुरू कर देना चाहिए। जाहिर है, कि छोटे बच्चों को यह बातें बताना और समझाना मुश्किल है, मगर बहुत सारे तरीके ऐसे हैं, जिन्हें आजमा कर आप बच्चों को पीरियड्स, सेक्स और गुड टच-बैड टच के बारे में बता सकते हैं।'
आजकल टीवी में पीरियड्स और सेनेटरी पैड्स के कई विज्ञापन आते हैं, जिन्हें देख कर बच्चे के मन में यह प्रश्न उठना कि यह सब क्या होता है? जायज है। ऐसे में आप अपने बच्चों को कई तरह से इस बारे में समझा सकते हैं। अंजू कहती हैं, 'बच्चा जब 5 साल का होजाता है तो उसके मन में बहुत सारे प्रश्न उठते हैं। वह बहुत सारी बातों के बारे में जानना चाहता है और सेनेटरी पैड्स क्या होते ? यह सवाल उनमें से एक है। ऐसे में आप अपने बच्चे को बता सकते हैं कि महिलाओं के अंदर एक बेबी बैग होता है और इस बेबी बैग को हर मंथ साफ करना जरूरी होता है और सेनेटरी पैड्स का इस्तेमाल इसी क्लीनिंग के लिए किया जाता है।'
सेक्स एजुकेशन क्या?
सेक्स एजुकेशन एक ऐसा विषय है, जिसे लेकर आज भी लोग यही सोचते हैं कि बच्चों और बढ़ती उम्र के बच्चों से इस पर बात नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से वह अपने मार्ग से भटक जाएंगे, मगर ऐसा कुछ भी नहीं है और इस विषय को समझना उतना ही जरूरी है, जितना की अन्य विषयों पर बात करना महत्वपूर्ण है। अंजू कहती हैं, 'यह एक बड़ा विषय है न कि केवल पीरियड्स तक सीमित है। जब हम सेक्स के बारे में बात करते हैं तो इसमे प्यूबर्टी, रिप्रोडक्टिव हेल्थ और सेफ्टी जैसे मुद्दों पर चर्चा करना भी जरूरी होता है।'
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