कोरोना के कहर से दुनिया अभी उभरी भी नहीं है कि एक और महामारी की दस्तक ने दुनिया को डरा दिया है। बता दें कि मेडिकल वर्ल्ड में इन दिनों एक खतरनाक वायरस के सक्रीय होने की खबरों से खलबली मच चुकी है। असल में यह कोई नया वायरस नहीं है बल्कि सदियों से बर्फ में पड़े वायरस हैं, जिनके दोबोरा से सक्रीय होने का खतरा जताया जा रहा है। वैज्ञानिकों ने इन वायरस के जरिए कोरोना से भी बड़ी महामारी फैलने की चेतावनी तक दे दी है।
जी हां, कोरोना के भयानक कहर से जुझ रही दुनिया के लिए वैज्ञानिको की यह चेतावनी भी बेहद चिंताजनक है। देखा जाए तो लोगों के जेहन से अभी तक कोरोना के भयानक दौरे की यादें बाहर निकली भी नहीं है कि एक और बड़ी महामारी की दस्तक ने लोगों को डरा दिया है। चूंकि हमारा उद्देश्य हमेशा से अपने रीडर्स को सेहत और उससे जुड़ी हर खबर की सही जानकारी पहुंचाना है, इसीलिए हम यह आर्टिकल आपके लिए लेकर आए हैं। इसमें हम इस वायरस और उससे होने संभावित खतरे के बारे में बताने का प्रयास कर रहे हैं।
दरअसल, ब्रिटिश अखबार द गार्जियन की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, आर्कटिक बर्फ के नीचें दबे हजारों साल पुराने वायरस सक्रीय हो सकते हैं। यह रिपोर्ट वैज्ञानिक के उस शोध पर आधारित है जिसमें बताया गया है कि दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग के लगातार बढ़ने रहे के कारण आर्कटिक की जमी हुई बर्फ पिघलने लगी है। ऐसे में बर्फ के नीचें दबे कुछ सालों पुराने वायरस सक्रीय होकर बाहर निकल सकते हैं और यह भयावह महामारी फैला सकते हैं।
कितने खतरनाक है ये जॉम्बी वायरस?
मेडिकल दुनिया में इस वायरस को 'जॉम्बी वायरस'के नाम से जाना जा रहा है, क्योंकि रिपोर्ट की माने तो ये वारयस हजारों साल पुराने हैं। वहीं हजारों साल पुराना होने के बावजूद ये वायरस दुनिया में महामारी का खतरा फैला सकते हैं। असल में, रिपोर्ट में बताया गया है कि ये वायरस आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट से बाहर निकल कर सेहत के लिए बेहद गंभीर स्थिति बना सकते हैं।
बात करें पर्माफ्रॉस्ट की तो आपको बता दें कि धरती की सतह पर जमे या उसके नीचे जमे स्थायी परत को पर्माफ्रॉस्ट कहते हैं, जो कि मिट्टी, बजरी और रेत के साथ ही बर्फ से बनी होती है। इसी पर्माफ्रॉस्ट सतह में जॉम्बी वायरस के छिपे होने की आशंका जताई जा रही है।
बर्फ में हजारों साल से दबे हैं वायरस
असल में बीते साल इस दिशा में पहला शोध किया गया था, जिसमें साइबेरियाई पर्माफ्रॉस्ट से लिए गए नमूनों का अध्ययन किया गया। इस शोध को करने वाले वैज्ञानिक ने नमूने से निकले वायरस को सक्रीय किया तो पाया कि इनमें से एक वायरस लगभग 48,500 साल पुराना था। वहीं इस शोध का यह निष्कर्ष निकला कि हजारों साल पुराना होने के बावजूद ये वायरस वापस से सक्रीय होकर उतना ही प्रभावी हो सकते हैं। इसलिए शोध के आधार पर वैज्ञानिकों ने इस वायरस के जरिए महामारी फैलेन की आशंका जताई।
ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ा वायरस का खतरा
इस वायरस के जरिए महामारी फैलने के खतरे के पीछे असल में ग्लोबल वार्मिंग जिम्मेदार बताई जा रही है। इस बारे में वैज्ञानिको का कहना है कि मानवीय हस्तक्षेप और औद्योगिक गतिविधियों के कारण जिस रफ्तार से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ी है, आर्कटिक समुद्री बर्फ भी उसी तेजी से पिघल रहे हैं। इनके पिघलने के साथ ही इसमें जमे हुए वायरस के बाहर निकलने की आशंका भी बढ़ती जा रही है।
औद्योगिक विकास बन सकती है महामारी की वजह
असल में, आर्कटिक समुद्री बर्फ के पिघलने की वजह वहां होने वाले औद्योगिक विकास से जुड़ी गतिविधियां है। मीडिया में आई रिपोर्ट की माने तो साइबेरिया से तेल और दूसरे अयस्कों को बाहर निकालने के लिए काफी बड़े पैमाने पर खनन की योजना तैयार की जा चुकी है। इसके लिए पर्माफ्रॉस्ट में छेद किए जा रहे हैं। ऐसे में इस ऑपरेशन के दौरान वाले खनन प्रकिया से वायरस के फैलने की आशंका जताई जा रही है।
माना जा रहा है कि इस खनन कार्य से बड़ी मात्रा में यह वायरस बाहर निकल सकते हैं और ऐसे में खनन कार्य करने वाले लोग इन वायरस की चपेट में आ सकते है। इस तरह से आर्कटिक में हजारों सालों से दबे वायरस बाहर निकलकर दुनिया में तबाही मचा सकते हैं।
बता दें कि फिलहाल इस पर शोध जारी है, वैज्ञानिकों की टीम लगातार कार्य कर रही है। इस बारे में हम भी आपको समय-समय पर अपडेट देते रहेंगे, इसलिए बेवजह परेशान मत होइए। हमारी यही सलाह है कि अपना और अपने परिजनों की सेहत का पूरा ख्याल रखें। उम्मीद करते हैं कि सेहत से जुड़ी यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी और अगर यह जानकारी आपको अच्छी लगी हो तो इसे अपने दोस्तों और परिचितों के साथ शेयर करना न भूलें। साथ ही अपनी राय हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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