ये है वो वजह जिस कारण शिशु को 6 महीने तक पिलाना चाहिए मां का दूध

शिशु के जन्म के 6 महीने तक उसे मां का दूध पिलाना चाहिए ये लाइन आपने कई बार सुनी होगी लेकिन क्या आपको पता है ऐसा क्यों कहा जाता है? 

breastfeeding week mother milk

ब्रेस्टफीडिंग 21वीं शताब्दी में अपने निचले स्तर पर पहुंच गया है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, ज्यादातर देशों में पहले छह महीने में केवल स्तनपान कराने की दर 50 प्रतिशत से भी नीचे है जो वर्ल्ड हेल्थ असेंबली का 2025 का लक्ष्य है। इस स्थिति की गंभीरता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि अब हम जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 1 अगस्त से 8 अगस्त तक स्तनपान सप्ताह मनाते हैं। इस प्रमाण आधारित अनुसंधान से एक बार फिर से स्तनपान का महत्व सामने आया है।

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आईवीएच सीनियर केयर में वरिष्ठ न्यूट्रिशन एडवाइज़र डॉक्टर मंजरी चंद्रा ने कहा, 'गर्भधारण से शुरू होकर दूसरे जन्मदिन तक जीवन के प्रथम हजार दिनों में पोषण की आपूर्ति से दीर्घकालीन स्वास्थ्य की नीव पड़ती है। ब्रेस्टफीडिंग इस प्रारंभिक पोषण का एक आवश्यक हिस्सा है क्योंकि मां का दूध पोषक तत्वों और बायोएक्टिव निर्माण कारकों का एक बहुआयामी मिश्रण है जोकि जीवन के शुरुआती 6 महीनों में एक नवजात शिशु के लिए आवश्यक हैं।' जीवन की शुरुआत में पोषक तत्वों की कमी का लंबे समय में असर दिख सकता है जो कई पीढ़ियों तक रह सकता है।

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6 महीने के लिए केवल मां का दूध

मां का दूध मैक्रोन्यूट्रिएंट्स, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स, बायोएक्टिव घटकों, वृद्धि के कारकों और रोग प्रतिरोधक घटकों का एक मिश्रण होता है। यह मिश्रण एक जैविक द्रव पदार्थ है जिससे आदर्श शारीरिक और मानसिक वृद्धि में मदद मिलती है और बाद के समय में शिशु को मेटाबॉलिज्म से जुड़ी बीमारी की आशंका खत्म हो जाती है।

जिन बच्चों को केवल मां का दूध नहीं दिया जाता है उन्हें संक्रमण होने का खतरा होता है और उनका आईक्यू भी कम रह सकता है। उनकी सीखने की क्षमता कम होती है और स्कूल में उन बच्चों के मुकाबले उनका प्रदर्शन कमजोर रहता है जिन्हें पहले छह महीने सिर्फ मां का दूध मिला है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक, हर साल दो करोड़ से अधिक शिशुओं का वज़न जन्म के समय 2.5 किलो से कम रहता है और दुर्भाग्य से इनमें से 96 प्रतिशत विकासशील देशों में हैं। बचपन में इन शिशुओं में सामान्य विकास में कमी, संक्रामक बीमारी, धीमी वृद्धि और मृत्यु होने का जोखिम अधिक होता है। ऐसे पर्याप्त प्रमाण मिले हैं जिनसे इन शिशुओं में जीवन के प्रथम 24 घंटों में स्तनपान का महत्व उजागर होता है। जिन शिशुओं को जन्म के 24 घंटे के भीतर स्तनपान कराया जाता है उनमें उन बच्चों के मुकाबले मृत्यु दर कम देखने को मिली है जिन्हें 24 घंटे बाद स्तनपान कराया जाता है।

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वरिष्ठ शिशु चिकित्सक और ब्रेस्टफीडिंग प्रमोशन नेटवर्क ऑफ इंडिया (बीपीएनआई) के संयोजक डॉक्टर अरुण गुप्ता के मुताबिक, श्स्तनपान बच्चे के स्वास्थ्य, उसके जीवित रहने और विकास के लिए आवश्यक है, इसके बावजूद भारत में हर 5 में से 3 महिलाएं जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान शुरू करने में समर्थ नहीं हैं। केवल एक या दो महिलाएं ही प्रथम छह महीने तक अपने बच्चे को केवल अपना दूध पिलाती हैं। इसकी वजह यह है कि महिलाओं को घर, दफ्तर और अस्पतालों में स्तनपान कराने के लिए विभिन्न अड़चनों का निरंतर सामना करना पड़ता है। इन अड़चनों को दूर करनें से ही सफलता मिल सकती है और यह काम सरकारी एवं निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं द्वारा किया जा सकता है।

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