जन्म के बाद बच्चा 6 महीने तक मां के दूध पर निर्भर होता है। मगर नई मांओं को ब्रेस्टफीडिंग के समय कई प्रॉब्लम्स आती है क्योंकि उन्हें इससे जुड़ी कई बातों के बारे में सही जानकारी नहीं होती है। अगर आप भी अभी-अभी मां बनी हैं और ब्रेस्टफीडिंग से जुड़ी बातों से आप भी अनजान है और आपके मन में ब्रेस्टफीडिंग से जुड़े कई सवाल हैं तो आज हम आपको ब्रेस्टफीडिंग से जुड़े कुछ सवालों के जवाब देने जा रहे हैं, जो अक्सर नई मम्मियों यानि की आपके दिमाग में आते हैं। तो देर किस बात की चलिए ब्रेस्टफीडिंग से जुड़ी कुछ जरूरी बातों के बारे में जानते हैं।
ब्रेस्टफीडिंग क्यों जरूरी होती है?
मां के दूध में ऐसे कई फायदे हैं, जो किसी भी फॉर्मूले से बने बाजारी दूध में नहीं मिल सकते है। मां के दूध से न सिर्फ बच्चे का विकास अच्छी तरह से होता है बल्कि यह उन्हें कई बीमारियों से भी बचाता है इसलिए शिशु को ब्रेस्टफीडिंग करवाना बहुत जरूरी होता है। इसके अलावा ब्रेस्टफीडिंग बच्चे के साथ-साथ मां की हेल्थ के लिए भी बहुत अच्छी होती है। ब्रेस्टफीडिंग कराने से मां को गर्भावस्था के बाद होने वाली शिकायतों से मुक्ति मिल जाती है। इससे तनाव कम होता है और प्रसव के बाद होने वाले ब्लीडिंग पर कंट्रोल पाया जा सकता है। खून की कमी से होने वाले रोग एनिमिया का खतरा कम होता है।
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मां को कब तक ब्रेस्टफीडिंग करानी चाहिए?
मां को तभी दूध पिलाना चाहिए जब बच्चे को जरूरत हो। शुरुआती हफ्तों में बच्चे को हर दिन एक से दो घंटे ब्रेस्टफीडिंग करवाएं। धीरे-धीरे शिशु को तीन घंटे बाद दूध पिलाना शुरू कर दें। जी हां ब्रेस्टफीडिंग विशेषत: जन्म के बाद 6 महीने तक कराना जारी रखा जाना चाहिए। फिर इसे अन्य पूरक आहार के साथ 2 वर्ष की अवस्था तक या उससे अधिक तक जारी रखा जाना चाहिए।
क्या डिलीवरी के तुरंत बाद दूध पिलाना सही है?
मां के पहला दूध पीला और गाढ़ा होता है इसलिए महिलाओं को लगता है कि जन्म के तुरंत बाद शिशु को ब्रेस्टफीडिंग नहीं करानी चाहिए। लेकिन हम आपको बता दें कि मां का पहला दूध शिशु के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है। इसमें मौजूद कोलोस्ट्रम नामक तत्व शिशु के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। जी हां कोलोस्ट्रम को पहला दूध भी कहते हैं। मां बनने के बाद कुछ दिनों तक कोलोस्ट्रम ही प्रोड्यूस होता है। कोलोस्ट्रम गाढ़ा, चिपचिपा और पीलापन लिए हुए होता है। कोलोस्ट्रम कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, एंटी-बॉडीज़ का खजाना होता है। इसमें फैट बहुत कम होता है, इस लिहाज़ से बच्चा इसे आसानी से पचा भी लेता है। बच्चे के पहले स्टूल (मेकोनियम) के लिए भी ये ज़रूरी है।
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ब्रेस्टफीडिंग पर दवाओं का साइड इफेक्ट
कुछ महिलाओं को लगता हैं कि सिजेरियन डिलीवरी के बाद दी जाने वाली दवाओं के साइड इफेक्ट से दूध बनने की प्रक्रिया रुक जाती है। यह धारणा बिलकुल गलत है क्योंकि सिजेरियन डिलिवरी का लैक्टेशन से कोई संबंध नहीं है। बस आपको अपनी डाइट का ख्याल रखना चाहिए।
ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने के लिए क्या करें?
ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने के लिए सबसे पहले तो आपको प्रोपर आराम करना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं और नॉर्मल डाइट लें। इसके अलावा बच्चे को थोड़े-थोड़े समय पर फीड कराते रहें क्योंकि ब्रेस्ट जितना ज्यादा खाली होगा उतना ज्यादा ब्रेस्टमिल्क बनेगा।
जब आप लाइफ में कुछ पहली बार करती हैं, तब आपके मन में कई तरह के सवाल होते है जैसे क्या होगा, कब होगा, कैसे होगा, और क्यों होगा। ऐसे की कुछ सवालों के जवाब शिशु के जन्म से लेकर, ब्रेस्टफीडिंग करवाने तक, सभी नई मां के मन में चलते रहते हैं। लेकिन इस आर्टिकल को पढ़कर आपके मन में उठने वाले कई सवालों का जवाब आपको मिल गया होगा। अगर आपको हमारा आर्टिकल पसंद आया तो इसे 1 दिल जरूर दें।
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