डायबिटीज एक गंभीर रोग है। इसे बोलचाल की भाषा में शुगर का जाता है। डायबिटीज सब होता है जब आपका शरीर पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता है या शरीर इसका उपयोग नहीं कर पाता है। डायबिटीज का कोई परमानेंट इलाज नहीं है। इसे आप सही जीवन शैली और दवाई लेकर करके कंट्रोल में कर सकते हैं। वहीं कुछ कंडीशन में मरीज को इंसुलिन भी दिया जाता है। आइए जानते हैं डायबिटीज में इंसुलिन लेने की जरूरत कब पड़ती है इस बारे में हमने हेल्थ एक्सपर्ट से बात कीDr. Sajad Ul Islam Mir - Endocrinologist इस बारे में जानकारी दे रहे हैं।
डायबिटीज में इंसुलिन लेने की जरूरत कब पड़ती है?
डायबिटीज दो प्रकार की होती है। एक टाइप 1 डायबिटीज है और दूसरा टाइप 2
टाइप 1 डायबिटीज एक ऐसी स्थिति है जब शरीर इंसुलिन का उत्पादन करना पूरी तरह से बंद कर देता है। टाइप 1 डायबिटीज में इंसुलिन लेने की जरूरत होती है, क्योंकि शरीर में नेचुरल रूप से इंसुलिन का निर्माण नहीं हो पता है। यह आमतौर पर बच्चों या युवा लोगों में होता है। बता दे की इंसुलिन एक हार्मोन है जो शरीर में ग्लूकोज यानी कि शुगर के स्तर को नियंत्रित करता है।अगर टाइप 2 डायबिटीज में डायबिटीज कंट्रोल नहीं हो पाता है तब भी इंसुलिन दिया जाता है।
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इंसुलि थेरेपी को आमतौर पर तब शुरू किया जाता है जब प्रारंभिक फास्टिंग प्लाजमा ग्लूकोज 250 से अधिक हो या HbA1c 10% से अधिक हो।
इंसुलिन आमतौर पर तब आवश्यकता होती है जब रक्त शर्करा का स्तर 200 से ऊपर हो। हालांकि यह निर्णय डॉक्टर पर निर्भर करता है कि इंसुलिन कब शुरू करना है। डॉक्टर आपके रक्त शर्करा के स्तर,लक्षणों और अन्य स्वास्थ्य कारकों को ध्यान में रखते हुए इंसुलिन थेरेपी शुरू करने का निर्णय लेते हैं।
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