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डायबिटीज टाइप 1 और टाइप 2 में क्या है फर्क और अपने बच्चे को इससे कैसे रखें सुरक्षित, जानिए

टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज में क्या फर्क है, इस बारे में आपको जागरूक होने की जरूरत है। अगर आपके बच्चे को डायबिटीज है तो भी वह सही देखभाल से स्वस्थ जीवन जी सकता है।
Her Zindagi Editorial
Updated:- 2018-10-24, 17:09 IST

आजकल की जीवनशैली में सुख-सुविधाएं होने और फिजिकल वर्क में कमी आने से लोगों के साथ-साथ बच्चों को भी कई तरह की हेल्थ प्रॉब्लम्स का सामना करना पड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में बच्चों में डायबिटीज के मामलों में तेजी से इजाफा हुआ है और यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। ऐसे में बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए मां को विशेष रूप से इस बात के लिए जागरूक होने की जरूरत है कि डायबिटीज जैसी खतरनाक बीमारी से उन्हें कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है। इस बारे में हमने बात की गाजियाबाद के एंडोक्राइनोलॉजिस्ट स्वप्निल जैन से और उन्होंने हमें कुछ महत्वपूर्ण बातें बताईं-

डायबिटीज टाइप 1 और टाइप 2 में ये है फर्क

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बच्चों में होने वाली टाइप 1 डायबिटीज होने की स्थिति में पेंक्रियाज ग्रंथि ठीक तरह से काम नहीं करती। पेंक्रियाज से कई हार्मोंस निकलते हैं जैसे इंसुलिन और ग्लूकोज। टाइप 1 डायबिटीज होने पर शरीर में इंसुलिन बनना बंद हो जाता है। दरअसल, शरीर के सभी सेल्स को शुगर पहुंचाने में इंसुलिन बहुत मदद करती है, ताकि सेल्स सुचारू रूप से काम कर सकें और सेल्स को लगातार ऊर्जा मिलती रहे। यह बीमारी होने पर शुरुआत से ही इंसुलिन लेने की जरूरत होती है और खानपान में सावधानी रखने की होती है। टाइप 1 डायबिटीज को काबू में रखा जा सकता है, लेकिन इसे पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता। वहीं टाइप 2 डायबिटीज एक लाइफस्टाइल डिजीज है, जो बड़ों की तरह बच्चों में गलत खानपान, अनुवांशिकता या लापरवाही बरतने के कारण हो जाती है। इसमें बच्चों के शरीर में इंसुलिन कम मात्रा में बनती है या ज्यादा असरदार नहीं होती। 

बच्चे को टाइप 1 डायबिटीज होने पर ये करें 

बच्चों में 95 फीसदी मामलों टाइप 1 डायबिटीज होती है और इस स्थिति में पीड़ित बच्चों के लिए इंसुलिन लेना अनिवार्य होता है। इस बीमारी में शरीर में इंसुलिन की कमी होने पर बच्चे की हालत जल्दी नाजुक हो सकती है, क्योंकि इस स्थिति में उसके खून में एसिड बनने लगता है। बच्चों के शुगर की जांच कराना थोड़ा मुश्किल होता है, क्योंकि वे अपनी परेशानी ठीक तरह से बता नहीं पाते। कई बार बच्चे रोने लगते हैं या एग्रेसिव हो जाते हैं। देखने में आता है कि पेरेंट्स ऐसी स्थितियों से परेशान होकर अपने बच्चे को इंसुलिन देना बंद कर देते हैं। ऐसा करना बच्चे के जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है, इसीलिए ऐसा हरगिज ना करें। असामान्य स्थिति दिखे तो फौरन डॉक्टर से संपर्क करें। इस स्थिति में बच्चे को आईसीयू में भर्ती कराया जाता है और उसकी नसों में इंसुलिन दी जाती है। अगर बच्चे का शुगर लेवल नियंत्रण में नहीं रहता, तो 15-20 साल बाद इसका बच्चे की आंखों, किडनी, हार्ट, ब्रेन और नसों पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है, इसीलिए बच्चे को पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन के लिए पूरी तरह सतर्क रहें। 

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टाइप 2 डायबिटीज

छोटे बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज जैसी समस्या कम ही देखने को मिलती है। अगर बच्चा शारीरिक रूप से एक्टिव नहीं है, बाहर फिजिकल एक्टिविटी और खेलकूद में शामिल होने के बजाय अमूनन टीवी या कंप्यूटर से चिपका रहता है तो वह टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित हो सकता है। सक्रियता घटने और दूसरी तरफ कोल्ड ड्रिंक्स, चिप्स और फास्ट फूड के लिए बच्चों की बढ़ती दीवानगी उनकी सेहत के लिए बहुत नुकसानदेह साबित हो सकती है। बच्चों के लिए जरूरी है कि वे रोजाना एक घंटे घर से बाहर खेलें और खाने में पौष्टिक आहार लें। इस बीमारी में शुगर काबू में रखने के लिए दवाएं दी जाती हैं। 

सस्ता इलाज मुमकिन


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बच्चे के डायबिटीज से पीड़ित होने पर पेरेंट्स के लिए नियमित रूप से उसके शुगर लेवल की जांच कराना जरूरी है। आमतौर डॉक्टर के एक बार दवाएं लिख देने के बाद पेरेंट्स लंबे वक्त तक उन्हीं दवाओं को बच्चों को देते रहते हैं, जो गलत है। बच्चे की मौजूदा स्थिति को देखते हुए इलाज के दौरान अलग-अलग तरह की दवाइयां दी जाती हैं। पेरेंट्स के लिए यह जानना भी अहम है कि पहले की दवाओं की अपेक्षा नई दवाओं के साइड इफेक्ट्स कम हैं और ये दवाएं सस्ती भी हैं।

 

अगर गर्भावस्था में हो डायबिटीज

गर्भावस्था में डायबिटीज होने पर मां के साथ बच्चे के लिए भी खतरे की आशंका हो सकती है। इस स्थिति में अनुवांशिक विकृतियों के कारण बच्चे की किडनी और रीड की हड्डी बनने, लंग्स की मैच्योरेशन की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। बच्चे के शारीरिक अंगों का विकास न होने पाने के कारण गर्भाशय में उसकी मृत्यु की आशंका भी हो सकती है। ऐसे मामलों में मां के ऑपरेशन के जरिए डिलिवरी की आशंका बढ़ जाती है। भारत सहित अन्य देशों में प्रेगनेंसी के दौरान इंसुलिन के अलावा किसी अन्य कोई दवा देने की स्वीकृति नहीं है, क्योंकि इंसुलिन मां और बच्चे के लिए दोनों के लिए सुरक्षित रहता है। गर्भावस्था के दौरान मां के डायबिटिक होने पर भविष्य में बच्चे को भी डायबिटीज हो जाने की आशंका बनी रहती है। 

डायबिटीज के साथ भी बच्चे जी सकते हैं स्वस्थ जीवन

डायबिटीज से पीड़ित बच्चों को इंसुलिन दिए जाने की जरूरत होती है, लेकिन इसके अलावा वे शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ होते हैं। यह भी देखने में आता है कि डायबिटीज से पीड़ित बच्चों के बड़े होने पर उनकी लिए शादी में समस्याएं आती हैं, क्योंकि बहुत से परिवार डायबिटिक मरीज से अपना नाता जोड़ने के लिए तैयार नहीं होते। ऐसे में इस बीमारी को लेकर अगर जागरूकता आए तो डायबिटीज से पीड़ित युवाओं की शादी बिना किसी रुकावट के हो सकती है।

 

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