थैलेसीमिया एक गंभीर रोग है। इसका खतरा सबसे ज्यादा बच्चों में होता है। इस बीमारी में शरीर में खून की कमी होने लगती है। इसके कारण रोगी को बार-बार खून की आवश्यकता पड़ती है। आइए जानते हैं इस बीमारी के बारे में विस्तार से हेल्थ एक्सपर्ट से। Dr. Sweta Lunkad Consultant - Hemat Oncologist Jupiter Hospital, Pune इस बारे में जानकारी दे रही हैं।
क्या है थैलेसीमिया?
थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से जेनेटिक्स तौर पर मिलने वाला एक ब्लड डिसऑर्डर है। इस रोग के होने पर शरीर में हीमोग्लोबिन बनने की प्रक्रिया बाधित होती है। इसकी पहचान 3 महीने की आयु के बाद ही होती है थैलेसीमिया दो प्रकार का होता है। अगर पैदा होने वाले बच्चों के माता-पिता दोनों के जींस में थोड़े बहुत थैलेसीमिया होते हैं, तो बच्चे को मेजर थैलेसीमिया होता है जो की काफी गंभीर हो सकता है। लेकिन माता-पिता में से किसी एक में माइनर थैलेसीमिया हो तो बच्चे को कोई खतरा नहीं रहता है।
एक्सपर्ट बताते हैं कि हीमोग्लोबिन दो तरह के प्रोटीन से बनता है अल्फा और बीटा ग्लोबिन। थैलेसीमिया में इन प्रोटीन ग्लोबिन निर्माण की प्रक्रिया में खराबी होने लगती है। जिसके कारण रेड ब्लड सेल्स तेजी से खत्म हो जाते हैं। बार-बार खून चढ़ाने से शरीरमें आयरन जमा होने लगता जो दिल,लिवर और फेफड़ों में पहुंचकर गंभीर नुकसान पहुंचाता है।
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एक्सपर्ट के मुताबिक बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए थैलेसीमिया का इलाज किया जा सकता है। ट्रीटमेंट के लिए एक टेस्ट किया जाता है जिसे एचएलए के नाम से जाना जाता है। अगर मरीज का भाई बहन का एचएलए मैच हो जाता है तो यह डोनर बनते हैं अगर डोनर नहीं मिल पाता है तो ऐसे मरीज को खून चढ़ाया जाता है और यह प्रक्रिया चलता रहता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है इस बीमारी में कई तरह की समस्याएं होने लगती है। बच्चे का विकास सही नहीं होता है। उसका वजन गिरने लगता है और चेहरा नाखून जब भी पीला पड़ने लगता है।
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थैलेसीमिया के लक्षण
- नाखून और जीभ का पीला पड़ना
- चेहरे का पीला पड़ना
- बच्चे का विकास सही नहीं होना
- वजन न बढ़ना
- सांस लेने में तकलीफ
थैलेसीमिया से बचाव
- शादी से पहले महिला और पुरुष इसकी जांच कराएं।
- गर्भावस्था के दौरान इसकी जांच हो।
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