सालों पहले पहचाना जा सकता है अल्जाइमर का खतरा, यह तकनीक बदल सकती है खेल

अल्जाइमर एक गंभीर रोग है,जिसमें व्यक्ति की याददाशत, सोचने समझने की शक्ती लगभग खत्म हो जाती है। लेकिन कुछ ऐसी नई तकनीक आई है, जो अल्जाइमर की पहचान इसके लक्षण दिखने से पहले ही कर लेती है।
  • Aiman Khan
  • Editorial
  • Updated - 2025-07-30, 13:43 IST
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अल्जाइमर बुढ़ापे में होने वाली न्यूरोडीजनरेटिव बीमारी है, जो मस्तिष्क को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचती है। जिससे याददाश्त, सोचने समझने की शक्ति और व्यवहार में दिक्कतें आने लगती है। लेकिन आपको बता दें कि यह असर अचानक नहीं होता है। ब्रेन में बदलाव लक्षणों के दिखाने से कई साल पहले यहां तक की दशकों पहले शुरू हो जाते है। सवाल है कि क्या हम इन बदलाव को समय रहते पकड़ सकते हैं ? तो हां नई तकनीक और शोध कहती है कि अब यह संभव है। हमने इस बारे में एक्सपर्ट से जाने की कोशिश की। डॉक्टर विनय गोयल अध्यक्ष न्यूरोलॉजी न्यूरोसाइंस मेदांता गुरुग्राम इस बारे में जानकारी दे रहे हैं।

अल्जाइमर मस्तिष्क में कैसे विकसित होता है?

डॉ विनय की माने तो अल्जाइमर मुख्य रूप से दो खतरनाक प्रोटीन की वजह से होता है।

  • एमिलॉयड प्लाक्स
  • टाउ टैंगल्स

यह दोनों प्रोटीन मस्तिष्क में जमा होकर न्यूरॉन्स के बीच की संचार प्रणाली को बाधित करते हैं और धीरे-धीरे मस्तिष्क की कोशिकाओं की मौत का कारण बनते हैं। शोध यह बताता है कि इन प्रोटीन का जमाव लक्षण दिखने से कई साल पहले शुरू हो जाता है, बिना किसी चेतावनी के।

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कैसे होती है अल्जाइमर की पहचान

एक्सपर्ट बताते हैं कि पॉजिट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी ( PET) स्कैन, खासकर के एमिलॉयड और टाउपेट, दिमाग में मौजूद हानिकारक प्रोटीन जमाव को जिंदा व्यक्ति के मस्तिष्क में भी दिखा सकते हैं। वह भी कई साल पहले, जब कोई भी क्लिनिकल लक्षण नहीं दिखाई देता है।

पेट स्कैन तो बहुत अच्छा है, लेकिन इसकी लागत अधिक और पहुंच सीमित है। इसलिए अब ब्लड बेस्ड बायो मार्कर टेस्ट अल्जाइमर की पहचान में क्रांतिकारी बदलाव लाने जा रहे हैं। भारत में कुछ ऐसी कंपनियां हैं, जो रक्त परीक्षण शुरू कर सकती हैं यह टेस्ट आम क्लीनिक और लैब में भी उपलब्ध होंगे।

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अल्जाइमर की शुरुआती पहचान क्यों जरूरी है?

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  • भारत में डिमेंशिया और अल्जाइमर एक बढ़ता हुआ स्वास्थ्य संकट है। इसकी समय पर पहचान होने से लाइफस्टाइल और डाइट में बदलाव करके इसके प्रगति को धीमा किया जा सकता है।
  • रोगियों को क्लिनिकल ट्रायल्स में शामिल होने का अवसर मिलता है।
  • व्यक्ति ज्यादा समय तक स्वतंत्र और सम्मान पूर्वक जीवन जी सकता है।

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Image Credit:Freepik

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