पॉलसिस्टिक ओवरियन सिंड्रोम महिलाओं में बहुत ही आम बीमारी है। इसे पीसीओएस और पीसीओडी के नाम से भी जाना जाता है। पीसीओडी की समस्या टीनेज लड़कियों में और युवा महिलाओं में अलग-अलग अवस्था में पाई जाती है। टीनेज में पीसीओडी की समस्या को पहचानने से लेकर उसके उपचार तक के लिए एक अलग दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होती है।
टीनेज लड़कियों में रिप्रोडक्टिव लाइफ (प्रजनन जीवन) का प्रारंभिक चरण होता है। इस अवस्था में यदि पीसीओडी हो जाए तो उसे शीघ्र पता लगाने और शीघ्र उपचार शुरू करना अती आवश्यक हो जता है ताकि इस समस्या की जड़ में पहुंच कर इसे खत्म किया जा सके। इस बीमारी से जुड़े लंबे समय तक होने वाले कॉम्प्लिकेशन और जोखिमों को दूर करने के लिए बहुत जरूर है कि लड़कियों द्ववारा रइस बीमारी को पहचान कर उसे रोकने के लिए सही उपचार और चिकित्सीय उपायों को अपनाया जाए।
युवा महिलाओं की ही तरह टीनेज लड़कियों में भी पीसीओडी को पहचानने का एक तरीका होता है। टीनेजर्स में पीसीओडी ओव्यूलेटरी मेकैनिजम और एंड्रोजन हार्मोंस की गणना पर निर्भर करता है। ओवुलेटरी डिसफंक्शन की गणना उन विशिष्ट लक्षणों के आधार पर की जा सकती है जिन्हें लड़कियां अनुभव कर सकतीी हैं।
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इसी तरह शरीर में अत्यधिक एंड्रोजन हार्मोन होने से भी शरीर में कुछ बदलाव महसूस किए जा सकते हैं।
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यदि आपको उपर बताए गए कोई भी लक्षण हैं तो आपको तुरंत ही स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह से पीसीओडी का ट्रीटमेंट तुरंत ही शुरू कर देना चाहिए। अगर आपको ऐसे कोई लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं तब भी आपको सतर्क रहना चाहिए और लक्षणों के दिखते ही शीघ्र इसका उपचार शुरू करवा देना चाहिए। इससे आप भविष्य में होने वाली किसी भी बड़ी समस्या या कॉम्प्लीकेशन से खुद को बचा पाएंगी।
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पीसीओडी की बीमारी मेटाबॉलिक (चयापचय), शारीरिक, हार्मोनल और मनोवैज्ञानिक पिरवर्तनों का एक कॉम्बीनेशन है। पीसीओडी के लक्षण शरीर में उम्र के बढ़ने के साथ होने वाले बदलावों के साथ ओवरलैप करते हैं। इसलिए किशोरावस्था में पीसीओडी को डाइग्नॉज करने का तरीका अलग होता है। यदि जीवनशैली में बदलाव और वजन पर नियंत्रण कर लिया जाए तो शरीर में हार्मोन लेवल को नॉर्मल रखा जा सकता है। अगर आप व्यायाम करती हैं तो पीसीओडी के लक्षणों को कम गंभीर बनाया जा सकता है। व्यायाम शरीर में बनने वाले इंसुलिन की संवेदनशीलता को भी कम करता है। किसी भी तरह की दवा और एंटीड्रोग्रंस की जाने वाली मेडिकल थेरिपी हो सकता है केवल कुछ ही मामलों में जरूरी हो। अगर आपको सही परामर्श और ट्रीटमेंट मिल जाता है तो आप अवसाद से भी बच सकती हैं। इसलिए हमेशा ध्यान रखें कि प्रारंभिक उपचार एक स्वस्थ और बेहतर जीवन को सुनिश्चित करता है।
एक्सपर्ट सलाह के लिए डॉ. प्रज्ञा चेंजडे [एम.बी.बी.एस., एम.एस. (प्रसूति और स्त्री रोग), विशेषज्ञ की सलाह के लिए C.P.S, D.G.O, F.C.P.S, F.I.C.O.G, I.B.C.L.C.] को विशेष धन्यवाद ।
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