गर्भधारण के पहले और प्रेग्नेंसी के दौरान की जाने वाली जेनेटिक काउंसलिंग में आपके परिवार के चिकित्सा इतिहास का अध्ययन करना शामिल है। इससे ये पता चलता है कि किस तरह की आनुवांशिक स्थितियां आपको विरासत में मिली हैं, और जरूरत पड़ने पर हर तरह की परेशानी से निपटने के लिए आपको सही परामर्श और समर्थन मिलता है।
बच्चे के जन्मपूर्व जेनेटिक काउंसलिंग करना उन दंपतियों के बीच लोकप्रिय हो रहा है, जो गर्भधारण के लिए या गर्भधारण से पहले भी आनुवांशिक बीमारियों की जांच करवाना चाहते हैं।
जेनेटिक काउंसिलर प्रोफेशनल्स होते हैं जिनके पास जिनेटिक्स और काउंसिलिंग के विषय का उन्नत ज्ञान होता है।
वो जो प्रेग्नेंट हैं या फिर गर्भधारण की योजना बना रहे हैं वो जेनेटिक काउंसिलर्स से सलाह ले सकते हैं और परिवार की मेडिकल हिस्ट्री और अन्य जरूरी कारकों का अध्ययन कर नवजात को होने वाली संभावित जन्मजात विकलांगता (जन्म से ही असमानताओं का मौजूद होना) के बारे में जानकारी ले सकते हैं।
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काउंसिलर्स उस स्थिति के बारे में पूरी जानकारी लेने में, उससे जुड़े खतरों के बारे में और स्क्रीनिंग और टेस्टिंग से जुड़े अन्य उपलब्ध विकल्पों को जानने में आपकी मदद करेंगे। कुछ मामलों में काउंसिलर्स किसी अन्य इलाज जैसे असिस्टेड रिप्रोडक्शन तकनीकों उदाहरण पीजीटी (प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग) और एग या स्पर्म डोनेशन की सलाह भी दे सकते हैं, अगर स्थिति बहुत गंभीर है और जीवन के अनुकूल नहीं है तो जरूरत पड़ने पर काउंसिलर्स प्रेग्नेंसी को खत्म करने की सलाह भी दे सकते हैं।
कुछ तरह के कैंसर, हार्ट डिफेक्ट्स, मेटाबॉलिक कंडीशन्स और मिरगी जैसी समस्याएं भी वंशानुगत हो सकती हैं।
अमनियोटिक फ्लूइड और कोरियोनिक विलस टिशू पर जन्म से पूर्व जेनेटिक टेस्ट्स इसी तरह के कुछ खतरों का पता लगाने के लिए किए जाते हैं।
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जेनेटिक डिसऑर्डर्स किसी के जीन में परिवर्तन के कारण होते हैं जिससे रूपांतर /जीन्स का स्वरूप बदल जाता है। ऐसी स्थितियां या तो डेनोवो (विरासत में नहीं मिलने वाली) या फिर वंशानुगत होती हैं, या तो किसी एक (डॉमिनेंट या संक्रमित) या फिर दोनों (रिसेसिव या फिर कैरियर) माता-पिता के कारण होती हैं।
जिनके परिवार में किसी को जेनेटिक डिसऑर्डर्स होते हैं या फिर उन्हें खुद ये होता है वो आमतौर पर गर्भधारण से इस डर से बचते हैं कि कहीं ये बीमारी उनके बच्चों को न मिल जाए। जेनेटिक काउंसिलिंग से ये पता लगाया जा सकता है कि क्या आपके बच्चे को किसी जेनेटिक समस्या के साथ पैदा होने का खतरा है और इससे आपको विशेष जरूरतों वाले बच्चे के जन्म की तैयारी करने में मदद भी मिल सकती है।
आप प्रेग्नेंसी के दौरान या फिर गर्भधारण से पहले जेनेटिक काउंसिलर्स से सलाह ले सकते हैं।
जेनेटिक कंडीशन्स जैसे डाउन सिंड्रोम, सिकल सेल डिजीज, सिस्टिक फाइब्रोसिस, क्लेफ्ट पैलेट और दिल की समस्याएं सभी के बारे में प्रेग्नेंसी के शुरुआती दौर में पता लगाया जा सकता है। प्रारंभिक दौर में पता लगाने से उचित इलाज के बारे में पता करने और थेरेपी के लिए सही नीतियों को बनाने की गुंजाइश ज्यादा बेहतर हो जाती है।
प्रेग्नेंसी से जुड़े खतरों के बारे में पता लगाने के अलावा जेनेटिक काउंसिलिंग से आप अपने स्वास्थ्य संबंधित जोखिमों के बारे में भी जान सकते हैं।
खास जेनेटिक टेस्ट्स से ये पता लगाया जा सकता है कि मां को दिल की बीमारी या किसी खास तरह के कैंसर का खतरा तो नहीं है।
- अगर आपकी उम्र 35 साल से ज्यादा है और आप प्रेग्नेंट होने की कोशिश कर रही हैं।
- अगर आपको, पार्टनर को या किसी ब्लड रिलेटिव को कोई बीमारी विरासत में मिली हो।
- अगर ब्लड और अल्ट्रासाउंड जैसे प्रीनेटल टेस्ट रिजल्ट असमान्य हों।
- अगर आपको पहले जेनेटिक, क्रोमोसोमल और मेटाबॉलिक डिसऑर्डर, जन्मजात विसंगति, मानसिक दुर्बलता, हेमोग्लोबिनोपैथी की समस्याओं के साथ कोई बच्चा हुआ हो।
- आपको दो या दो से अधिक बार गर्भपात हुआ हो या बच्चे को खोया हो।
गर्भधारण के पहले या प्रेग्नेंसी के दौरान स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास जाना सबसे आसान तरीका है। हालांकि, अधिक उन्नत परामर्श और संदेह के स्पष्टीकरण के लिए आपको जेनेटिक काउंसिलर्स से सलाह लेनी होगी।
कंसल्टेंट इंफर्टिलिटी एंड फीटल मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉक्टर प्रग्या मिश्रा चौधरी (एमआरसीओजी, पीएचडी, डीएफएफपी, एफआरसीओजी, डिप्लोमा इन गायनी एंडोस्कोपी) को उनकी एक्सपर्ट सलाह के लिए धन्यवाद।
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