गर्भावस्था महिलाओं के लिए एक सुखद और अनमोल अनुभव होता है, लेकिन इसमें कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती है। कुछ महिलाओं में प्रेग्नेंसी के वक्त इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ जाता है। दरअसल यह जेस्टेशनल डायबिटीज के कारण होता है। यह स्थिति तब पैदा होती है,जब शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता है, जिससे रक्त शर्करा का स्तर अनियंत्रित हो जाता है। आमतौर पर यह समस्या गर्भावस्था के अंतिम चरण में देखने को मिलती है और कई महिलाओं को प्रभावित करती है। इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए हमने हेल्थ एक्सपर्ट से बात की है। Dr. Mukti Harne Paithankar, Consultant - OBGY, Infertility Specialist and Laproscopic Surgeon, Manipal Hospital Gurugram इस बारे में विस्तार से जानकारी दे रही हैं।
गर्भावस्था में इंसुलिन रेजिस्टेंस क्यों बढ़ जाता है?
प्रेग्नेंसी के दौरान शरीर में कुछ हार्मोन अधिक मात्रा में बनने लगते हैं, जैसे, प्लेसेंटल लैक्टोजेन, एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन, कोर्टिसोल।
ये हार्मोन गर्भ में पल रहे शिशु के लिए जरूरी होते हैं, लेकिन वे इंसुलिन के प्रभाव को कमजोर कर सकते हैं। इससे शरीर को अधिक मात्रा में इंसुलिन बनाने की जरूरत होती है, लेकिन जब पैंक्रियाज पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता है, तो इससे इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ जाता है और रक्त शर्करा का स्तर बढ़ने लगता है।
किन महिलाओं को होता है जेस्टेशनल डायबिटीज का खतरा
- अधिक वजन
- परिवार में मधुमेह का इतिहास
- 30 साल से अधिक वर्ष में गर्भधारण
- पीसीओएस का इतिहास
- पहले कभी जीडीएम हो चुका हो
आपको बता दें की गर्भकालीन मधुमेह का निदान आमतौर पर ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट द्वारा किया जाता है, जो गर्भावस्था के 24 से 28 सप्ताह के बीच किया जाता है। इस परीक्षण के तरत, रातभर के उपवास के बाद रक्त शर्करा का स्तर मापा जाता है, फिर ग्लूकोज घोल पीने के बाद 1 और 2 घंटे बाद दोबारा शुगर की जांच की जाती है।
क्या होता है इसका जोखिम?
- अगर जीडीएम को सही तरीके से प्रबंधित नहीं किया जाता है, तो यह कई समस्याओं का कारण बन सकता है, जैसे
- मैक्रोसोमिया- यानी शिशु का अधिक वजन बढ़ जाना, जिससे नॉर्मल डिलीवरी में कठिनाई हो सकती है।
- सी सेक्शन का जोखिम- बड़े आकार के बच्चे के कारण सर्जिकल डिलीवरी की संभावना बढ़ जाती है।
- प्रीमैच्योर डिलीवरी और प्रीक्लेम्पसिया-उच्च रक्तचाप की समस्या, जो मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकती है।
यह भी पढ़ें-क्या 7 दिनों से ज्यादा पीरियड होना नॉर्मल है? एक्सपर्ट से जानें
गर्भकालीन मधुमेह शिशु को कैसे प्रभावित कर सकता है?
हाइपोग्लाइसीमिया-जन्म के बाद शिशु के शुगर लेवल में गिरावट
टाइप 2 डायबिटीज का खतरा। यही वजह है कि गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से ब्लड शुगर लेवल की निगरानी करना जरूरी होता है,ताकि इन जटिलताओं से बचा जा सके।
गर्भकालीन मधुमेह को नियंत्रित करने के तरीके
- संतुलित आहार
- नियमित व्यायाम
- ब्लड शुगर की निगरानी
- जरूरत पड़ने पर दवा या इंसुलिन
यह भी पढ़ें-क्या बेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाएं रमजान का रोजा रख सकती हैं?
अगर आपको स्वास्थ्य से जुड़ी कोई समस्या है,तो हमें आर्टिकल के नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम अपने आर्टिकल्स के जरिए आपकी समस्या को हल करने की कोशिश करेंगे।
अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है,तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हर जिंदगी से।
Image Credit:Freepik
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों