22 अप्रैल को हर साल वर्ल्ड अर्थ डे मनाया जाता है। इस दिन पर्यावरण और पृथ्वी के बारे में सोचा जाता है, इस समय पृथ्वी पर जितनी भी समस्याएं हैं उनमें से एक सबसे बड़ी समस्या है वायु प्रदूषण, लगभग हर देश इससे परेशान है। कोरोना लॉकडाउन के कारण भले ही अभी वायु प्रदूषण कम हो, लेकिन जितना भी है ये नुकसानदेह साबित हो सकता है। वैसे आम तौर पर देखा जाए तो लॉकडाउन से पहले प्रदूषण बहुत ज्यादा ही बढ़ गया था, दिल्ली, मुंबई कोलकता ही नहीं बल्कि कानपुर, भोपाल, जयपुर जैसे शहरों में अब भी लोग इससे परेशान हैं। ये कम जरूर हुआ है, लेकिन सेहत के लिए अभी भी हानिकारक है। जी हां प्रदूषण से लिपटी इन गहरी हवाओं के कारण सांस लेना मुश्किल हो गया है और इन हवाओं का असर सेहत पूरी तरह से पड़ रहा है। प्रदूषण को सबसे ज्यादा असर फेफड़ों पर पड़ता है। जिससे सांस लेने में परेशानी होती है। यह बात तो हम सभी जानती हैं लेकिन अगर आप सोचती हैं कि वायु प्रदूषण से केवल फेफड़े या श्वसन तंत्र प्रभावित होते हैं, तो एक बार दोबारा विचार करें! क्योंकि मेडिकल एक्सपर्ट का कहना है कि खराब वायु गुणवत्ता से आंखों में कई समस्याएं भी हो सकती हैं, जिसमें कॉर्निया को होने वाली क्षति भी शामिल है।
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के ऑप्थामोलोजिस्ट डॉक्टर राजेश सिन्हा ने बताया, "नाक और मुंह की तरह आंखों को ढकना काफी मुश्किल है। इससे फेफड़ों की तरह ही आंखों पर भी वायू प्रदूषण का बुरा असर पड़ता है।"
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उन्होंने बताया कि आंख की ओकुलर सतह वातावरण के सीधे संपर्क आती है, इसलिए यह वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित होती है। सर गंगा राम हॉस्पिटल, दिल्ली के ऑप्थामोलोजिस्ट डॉक्टर टिंकू बाली राजदान ने बताया, "कई सालों तक प्रदूषण के संपर्क में रहने के कारण कॉर्निया को क्षति पहुंचती है, यह तुरंत नहीं होता है। अगर ड्राई आई की समस्या लंबे समय तक रहती है, तो यह भी कॉर्निया को क्षतिग्रस्त कर सकती है, जिससे लंबे समय में दृष्टि प्रभावित होती है। खुजली होने पर आंखों को रगड़ने से भी कॉर्निया पर असर पड़ता है।"
डॉक्टर राजदान ने कहा, "वायु प्रदूषण के संपर्क से ड्राई आई की समस्या या आंखों के पानी की गुणवत्ता खराब हो जाती है. इससे आंखों में खुजली, परेशानी और लाल होने की समस्याएं होने लगती है।"
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सिन्हा का कहना है, "जो लोग कांटैक्ट लेंस पहनती हैं, उन्हें जोखिम और बढ़ जाता है, क्योंकि उनकी आंखें पहले से ही ड्राई होती है।" ऑप्थामोलोजिस्ट्स का कहना है कि प्रदूषण बढ़ने से ओपीडी में एलर्जी के इलाज के लिए आने वाले मरीजों की संख्या बढ़ी है।
मैक्स हेल्थकेयर के आंख विभाग के डायरेक्टर और प्रमुख डॉक्टर संजय धवन का कहना है, "आंखों में खुजली, परेशानी और नजर कमजोर होने की समस्या से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ी है तथा इम्युनिटी कम होने के कारण ड्राई आई और अन्य संक्रमण बढ़े हैं।"
यकीनन प्रदूषण बढ़ने का असर हमारे ऊपर हो रहा है, लेकिन प्रदूषण बढ़ने का कारण भी हम ही हैं। हमारी पृथ्वी को हम ही नहीं बचा पा रहे हैं। बड़ी गाड़ियों का ज्यादा इस्तेमाल, फैक्ट्रियों का धुआं, नदियों में गंदा पानी आदि ऐसा बहुत कुछ है जो ठीक करना चाहिए। लॉकडाउन के समय प्रदूषण कम होने का एक ही मतलब है कि हम कुछ सही नहीं कर रहे। क्यों न इस वर्ल्ड अर्थ डे के दिन हम अपने ये प्रण लें कि धरती पर प्रदूषण कम करने के लिए जितनी हो सके उतनी कोशिश करेंगे और उतना ही हम ध्यान रखेंगे।
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