स्ट्रेन्थ ट्रेनिंग और रेसिस्टेंस ट्रेनिंग में क्या होता है अंतर, जानिए यहां

स्ट्रेन्थ ट्रेनिंग और रेसिस्टेंस ट्रेनिंग दोनों लगभग एक तरह की एक्सरसाइज हैं, जो आपकी ओवर ऑल फिटनेस का ख्याल रखती हैं। लेकिन फिर भी उन्हें करने का तरीका और गोल्स दोनों में काफी अंतर है। 

 
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आज के समय में लोग अपनी फिटनेस को लेकर अधिक जागरुक हो गए हैं और इसलिए एक हेल्दी लाइफस्टाइल जीने के लिए वे हर दिन वर्कआउट करना पसंद करते हैं। वर्कआउट रूटीन में अमूमन स्ट्रेन्थ ट्रेनिंग और रेसिस्टेंस ट्रेनिंग को शामिल किया जाता है। इन दोनों में ही लगभग एक तरह की एक्सरसाइज की जाती है। हालांकि, दोनों का गोल काफी अलग होता है।

कुछ समय पहले तक लोग सिर्फ यही मानते थे कि एक्सरसाइज करने का मतलब होता है वजन कम करना। जबकि यह उससे कहीं अधिक है। वर्कआउट से ना केवल आपका वजन बैलेंस होता है, बल्कि मसल्स भी टोन होती है। आपकी बॉडी की स्ट्रेन्थ और फ्लेक्सिबिलिटी इंप्रूव होती है। इससे आपकी ओवर ऑल हेल्थ पर ही पॉजिटिव असर पड़ता है। फिटनेस फ्रीक लोग जिम जाकर स्ट्रेन्थ ट्रेनिंग करना पसंद करते हैं। जो लोग ऐसा नहीं कर सकते, वे रेसिस्टेंस ट्रेनिंग करना पसंद करते हैं। अब सवाल यह उठता है कि इन दोनों के बीच क्या अंतर है। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको स्ट्रेन्थ ट्रेनिंग और रेसिस्टेंस ट्रेनिंग के बीच के अंतर के बारे में बता रहे हैं-

स्ट्रेन्थ ट्रेनिंग क्या है?

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स्ट्रेन्थ ट्रेनिंग एक तरह की फिजिकल एक्सरसाइज है, जिसमें मुख्य रूप से मसल्स स्ट्रेन्थ और मसल्स बिल्डिंग पर फोकस किया जाता है। इसमें कई तरह की वेट ट्रेनिंग एक्सरसाइज की जाती है। जिसके लिए मशीनों, फ्री वेट या बॉडीवेट का इस्तेमाल किया जाता है। इससे आपकी मसल्स की ताकत काफी बढ़ती है।

रेसिस्टेंस ट्रेनिंग क्या है?

रेसिस्टेंस ट्रेनिंग एक अधिक व्यापक शब्द है जिसमें किसी भी उस एक्सरसाइज को शामिल किया जाता है, जो रेसिस्टेंस की मदद से मसल्स पर फोकस करता है। इसमें स्ट्रेन्थ ट्रेनिंग को तो शामिल किया ही जाता है, लेकिन साथ ही साथ इसमें रेसिस्टेंस की मदद से अन्य तरह की ट्रेनिंग को भी शामिल किया जाता है। इसलिए, बॉडीवेट एक्सरसाइज, रेसिस्टेंस बैंड की मदद से की जाने वाली एक्ससाइज को भी रेसिस्टेंस ट्रेनिंग में शामिल किया जाता है। रेसिस्टेंस ट्रेनिंग की मदद से आपकी बॉडी स्ट्रेन्थ के साथ-साथ मसल्स टोनिंग भी होती है।

गोल्स होते हैं अलग

  • यूं तो किसी भी एक्सरसाइज का सबसे पहला गोल खुद को फिट करना ही होता है, लेकिन फिर भी स्ट्रेन्थ ट्रेनिंग और रेसिस्टेंस ट्रेनिंग में काफी अंतर होता है। मसलन-
  • स्ट्रेन्थ ट्रेनिंग का मुख्य गोल मसल्स साइज और स्ट्रेन्थ को बढ़ाना होता है। अक्सर एथलीट और बॉडीबिल्डर स्ट्रेन्थ ट्रेनिंग करना काफी पसंद करते हैं।
  • जबकि रेसिस्टेंस ट्रेनिंग का मुख्य गोल मसल्स फिटनेस के साथ-साथ एंडुरेंस, फंक्शनल स्ट्रेन्थ को भी बेहतर बनाना होता है। यह बिगनर से लेकर एडवांस एथलीट्स या फिटनेस फ्रीक के लिए सही है।

इक्विपमेंट्स में होता है अंतर

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स्ट्रेन्थ ट्रेनिंग करते हुए आमतौर पर बारबेल और डंबल जैसे फ्री वेट के साथ-साथ रेसिस्टेंस मशीनों का उपयोग भी किया जाता है। वहीं, रेसिस्टेंस ट्रेनिंग के दौरान फ्री वेट, मशीन, रेसिस्टेंस बैंड और बॉडी वेट एक्सरसाइज सहित कई तरह के इक्विपमेंट्स का इस्तेमाल किया जाता है।

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इंटेसिटी में होता है अंतर

स्ट्रेन्थ ट्रेनिंग और रेसिस्टेंस ट्रेनिंग की इंटेसिटी में भी अंतर होता है। जहां स्ट्रेन्थ ट्रेनिंग के दौरान हैवी वेट अधिक हाई इंटेसिटी के साथ उठाया जाता है। जिससे स्ट्रेन्थ मैक्सिमम बढ़ सके। जबकि रेसिस्टेंस ट्रेनिंग को अपेक्षाकृत हल्के वजन के साथ मॉडरेट इंटेसिटी में किया जाता है। रेसिस्टेंस ट्रेनिंग के दौरान मसल्स एंडुरेंस और टोनिंग पर अधिक फोकस किया जाता है।

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Image Credit- freepik

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