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Interesting Facts:जयपुरी लहरिया साड़ी की ठाठ आज से नहीं सदियों पुरानी है, जानें इसका स्वर्णिम इतिहास

लहरिया प्रिंट की साड़ी अगर आपको भी बहुत लुभाती है, तो एक बार इस प्रिंट के पीछे छुपी रोचक कहानी भी जान लीजिए। इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें और लहरिया प्रिंट का इतिहास जानें। 
Editorial
Updated:- 2024-04-04, 15:42 IST

जब हम राजपूतों की ठाठ की बात करते हैं, तो उनके पहनावे की झलक हमारी नजरों में सबसे पहले उभरती है। राजस्थान की कला और परंपरा में सबसे ज्यादा बांधनी और लहरिया  को महत्व दिया गया है। कोई तीज-त्‍योहार हो या पूजा पाठ का काम हो। शादी हो या फिर किसी का जन्‍मोत्‍सव हो। इन दोनों ही कपड़ों को हर अवसर पर राजस्थानी ठाठ से पहनते हैं। अब तो बांधनी और लहरिया प्रिंट को पूरे देश में पसंद किया जा रहा है। खासतौर पर गर्मियों के आते ही लहरिया को हर कोई बहुत पसंद करता है। इस प्रिंट में आपको एथनिक से लेकर वेस्टर्न आउटफिट्स तक मिल जाएंगे। यह प्रिंट कैजुअल भी और ट्रेडिशनल भी। 

मगर क्‍या आप लहरिया प्रिंट से जुड़े इतिहास के बारे में जानती हैं। यदि नहीं तो आज हम आपको इसके इतिहास से जुड़ी कुछ बेहद रोचक बातें बताएंगे। 

jaipuri lehariya print fashion

कहां से आया लहरिया प्रिंट? 

लहरिया प्रिंट का फैशन आज से नहीं बल्कि 18वीं सदी से है। राजस्थान में पगड़ी पहनना रिवाज है और यह आज से नहीं बल्कि सदियों से देखा जा रहा है। पहले के समय में केवल राजपूत लोगों को सिर पगड़ी बांधने का अधिकार था। कॉटन के कपड़े से यह पगड़ी तैयार होती थी और इसे ट्विस्‍ट करके पहना जाता था। पगड़ी में अच्छी मरोड़ आए इसके लिए कपड़े को बांध कर रखा जाता था, इसलिए बाद में इसका नाम बंधेज पड़ गया। पगड़ी अच्छी और खूबसूरत लगे, इसलिए उसमें टाई एंड डाई के जरिए तिरछी रेखाएं बनाई जाने लगी। पहले ये रेखाएं सफेद रंग की होती थीं और अब यह रेखाएं अलग-अलग रंग भी होने लगी हैं। 

तो इस तरह से लहरिया अस्तित्व में आया और पुरुषों की पगड़ी से यह महिलाओं की साड़ी तक पहुंच गया है। लहरिया प्रिंट को राजस्थान में पारंपरिक माना जाता है और तीज-त्योहार या पूजा पाठ के अवसर पर महिलाएं यही साड़ी पहनती हैं। 

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कहां से प्रेरित है लहरिया प्रिंट? 

राजस्थान में इतनी गर्मी पड़ती है कि हर ओर सूखा-सूखा नजर आता है, ऐसे में रंग-बिरंगे कपड़े आंखों को ठंडक पहुंचाते हैं। वहीं लहरिया प्रिंट राजस्थान के थार रेगिस्तान से प्रेरित है। जिस तरह से रेत में लहरें बनती हैं उसी तरह से कपड़े में जो लकीरें बनाई जाती हैं, वह लहरों की तरह होती हैं और दिखने में बहुत अच्छी लगती हैं। 

वर्तमान में लहरिया का फैशन 

लहरिया एक ट्रेडिशनल प्रिंट है, मगर अब यह फैशन का हिस्सा बन चुका है। कॉटन फैब्रिक के स्‍थान पर लहरिया प्रिंट आपको सिल्क, शिफॉन और जॉर्जेट में भी दिख जाएगा। साथ ही आपको अब लहरिया में एंब्रॉयडरी और गोटा पट्टी का काम मिल जाएगा। साथ ही आपको इसमें डिजाइनर गोटा वर्क भी मिल जाएगा। 

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अब आपको लहरिया में पगड़ी ही नहीं बल्कि लहंगा, साड़ी, कुर्ती और वेस्‍टर्न ड्रेसेस भी मिल जाएंगी। आप अपनी वॉर्डरोब में लहरिया के बहुत सारे विकल्‍पों को शामिल कर सकती हैं। अब लहरिया में अन्‍य प्रिंट भी देखे जा रहे हैं। साथ ही चिकनकारी एंब्रॉयडरी भी लहरिया प्रिंट वाले फैब्रिक पर की जा रही है। 

पहले तो टाई एंड डाई का काम वेजिटेबल कलर्स से किया जाता था, मगर अब मशीनरी रंगों से लहरिया प्रिंटिंग की जाती है। टाई एंड डाई वाले कपड़े जहां बहुत महंगे आते हैं, वहीं मशीनी प्रिंट वाले कपड़े आपको सस्ता मिल जाएंगे।

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