6 यार्ड का कपड़ा नहीं, बल्कि भारत के सदियों पुराने इतिहास की कहानी है 'पैठणी साड़ी'

औरंगाबाद के छोटे से नगर में बनी पैठणी साड़ी आज दुनिया भर में लोकप्रिय है। आइए आज इसके बारे में विस्तार से जानें।

origin of paithani saree

हम भारतीयों की दीवानगी साड़ियों के प्रति सदियों-सदियों से चली आ रही है और यह परंपरा हमारी मांओं से पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में हमें मिली है। जब हम साड़ी की बात करते हैं तो उसकी बुनाई बहुत मायने रखती है। आज जिस बुनाई के बारे में हम बात कर रहे हैं वो कुछ समय पहले गायकवाड़ की महारानी राधिका राजे ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर शेयर की थी।

यह लोकप्रिय बुनाई और साड़ी 100 साल से भी अधिक का इतिहास खुद में समेटे हुए है। यह सिर्फ एक 6 यार्ड के कपड़े की कहानी नहीं, बल्कि उसकी जरी, सुंदरता और भव्यता की अद्भुत कहानी है। महाराष्ट्र स्थित औरंगाबाद के पैठण नगर में पैठणी साड़ी का निर्माण किया गया। चलिए आज आपको इस खूबसूरत वीव के दिलचस्प किस्से के बारे में थोड़ा विस्तार से बताएं।

क्या कहता है 2000 वर्षों का इतिहास?

paithani saree history

पैठणी साड़ी की उत्पत्ति सातवाहन राजवंश में हुई थी जो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से अस्तित्व में थी। ऐसा माना जाता है कि इस साड़ी को बनाने में चीन के बेहतरीन रेशम के धागों और शुद्ध ज़री का उपयोग करके बनाया जाता था, जिसे स्थानीय स्तर पर काता जाता था। हालांकि ऐसा वक्त भी आया जब इस साड़ी को बनाने में ब्रेक लग गया। मगर 17वीं शताब्दी पेशवा के राज में इसे फिर से शुरू किया गया और इसने बड़ी लोकप्रियता हासिल की।

आखिरकार, पेशवाओं ने पैठाणी के बुनकरों को येओला में बसाया, जो वर्तमान में इस साड़ी का मुख्य उत्पादन केंद्र भी है। रेशम और सोने के धागे से बुनी गई यह साड़ी किसी कविता से कम नहीं है।

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बाद के वर्षों में हुआ यह बड़ा बदलाव?

पारंपरिक गोल्ड और सिल्क से बनी पैठणी साड़ियां तैयार करने में कम से कम 18 से 24 महीने लगते हैं। उसके बाद के वर्षों में इसमें कॉटन के बेस की जगह सिल्क का बेस इस्तेमाल होने लगा। डिजाइन की इंट्रिकेसी के साथ पारंपरिक कॉम्प्लेक्स पैटर्न हुआ और छोटे बॉर्डर की जगह बड़े बॉर्डरों ने जगह ली। कंटेम्पररी पैठणी साड़ी के कलर पैलेट में भी प्रयोग किए गए। इस कपड़े की बुनाई एक आविष्कारशील यात्रा रही है।

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क्या है इस साड़ी का महत्व?

पैठणी साड़ियां महाराष्ट्रीयन संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। जिस तरह से साड़ियों की रानी मानी जाने वाली कांचीपुरम साड़ी को पसंद किया जाता है, उसी तरह से पैठणी को दर्जा मिला है। एक पैठणी बुनाई गारा कढ़ाई की तरह है, जिसमें कोई धागा लटका नहीं रह सकता है। मॉर्डन ब्राइड्स के लिए इसे कंटेम्पररी टच दिया गया। परंपरागत रूप से उपयोग किए जाने वाले रंग जैसे गहरा पीला (पोफली) हल्दी की जड़ से प्राप्त किया जाता था और हल्का पीला गेंदे के फूल की पंखुड़ियों से प्राप्त किया जाता था।

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पैठणी के डिजाइन पहले से तय रहते हैं और प्रत्येक डिजाइनर बुनाई में एलिमेंट्स को जोड़ता है। बुनकर डिजाइन बना सकते हैं या विशिष्ट पारंपरिक पैटर्न का उपयोग कर सकते हैं। लेकिन बुनाई करते समय धागों की गिनती हमेशा समान रहती है।

हमें उम्मीद है पैठणी साड़ी के बारे में यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। इसे लाइक और शेयर करें और इसी तरह अन्य बुनाई के बारे में जानने के लिए पढ़ते रहें हरजिंदगी।

Image Credit : Instagram@radhikaraje, google searches

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