सेना को करियर चुनने वाली लड़कियों के लिए अच्छी खबर है। सरकार ने देश के पांच और सैनिक स्कूलों में लड़कियों के लिए एडमिशन की राह खोल दी है। अगले साल से इन स्कूलों में एडमिशन खुल जाएंगे। जिन लड़कियों का मन देश की शान पर मर मिटने को करता है, जो देश की सेना में शामिल होना चाहती हैं, जिनमें सेना में जाने का जज्बा हो उनके लिए अब डगर कुछ आसान हो गयी है।
इन स्कूलों में आवेदन के लिए आपको सैनिक स्कूल सोसाइटी की बैवसाइट पर जाकर आवेदन करना होगा। www.sainikschooladmission.in पर जाकर आपको ऑनलाइन फॉर्म भरना होगा। सैनिक स्कूल में कक्षा छह से कक्षा नौ तक पढ़ने वाली लड़कियों को ही एडमिशन मिलेगा। घोड़ाखाल (उत्तराखंड), बीजापुर (कर्नाटक), चंद्रपुर (महाराष्ट्र), कालीकिरी (आंध्रप्रदेश) और कोडागू (कर्नाटक) में अब लड़कियों को दाखिला मिल सकेगा। आवेदन करने के बाद जनवरी 2020 में लिखित प्रवेश परीक्षा होगी।
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पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए पिछले साल पहली बार सैनिक स्कूल में लड़कियों को एडमिशन दिया गया। मिजोरम का छिंगछिप सैनिक स्कूल पहला ऐसा सैनिक स्कूल है जिसमें 2018 में पहली बार से लड़कियों को एडमिशन मिला। सैनिक स्कूल में एडमिशन मिलने से लड़कियों का सैनिक, पायलट बनने का सपना पूरा हो सकेगा।
स्कूल का डेली रुटीन
स्कूल में डेली रुटीन में सुबह पांच बजे उठना होता है। इसके बाद पीटी होती है जिसके बाद ब्रेक फास्ट दिया जाता है। इसके बाद स्कूल प्रार्थना के साथ स्कूल शुरु होता है। ऐसा आपने किसी स्कूल में नहीं सुना होगा कि चाय ब्रेक मिलता हो, लेकिन यहां चाय ब्रेक भी मिलता है। इसके बाद ब्रेक होता है, फिर लंच और गेम्स। शाम के समय में जूस ब्रेक होता है। अंत में रात का खाना मिलता है। किसी भी हालात में रात को साढ़े नौ बजे लाइट बंद कर दी जाती है।
सैनिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को कैडेट कहा जाता है। यहां प्री-कमीशन मिलिट्री एकेडमी में एक तरह की ट्रेनिंग दी जाती है। देश में अभी 26 सैनिक स्कूल हैं. इन स्कूलों में इंग्लिश, हिंदी, जनरल साइंस, सोशल साइंस, गणित, कंप्यूटर एजुकेशन प्रमुख विषय होते हैं। स्कूलों में कई तरह की एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटीज होती है।
मसलन फोटोग्राफी क्लब, म्यूजिक क्लब, इंग्लिश क्लब, मैथ क्लब, हिंदी क्लब आदि. इसके अलावा कई तरह की स्पोर्ट्स एक्टिविटी भी होती है। इतना ही नहीं एनसीसी (नेशनल क्रेडिट कोर) में सभी छात्रों का भाग लेना जरुरी होता है। मोटिवेशनल टूर पर छात्रों को धूमने के लिए भेजा जाता है।
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पेरेंट्स यहां बच्चों से बात करने के लिए फोन नहीं कर सकते। किसी खास परिस्थिति में ही स्कूल को पेरेंट्स फोन कर सकते हैं। स्कूलों में हर साल 70 दिन की छुट्टी होती है। छात्रों को परिसर से बाहर नहीं जा सकते क्योंकि जाने के लिए उन्हें कोई पास या कार्ड नहीं दिया जाता है।
जब महिलाएं देश के हर काम में आगे बढ़ रही हैं तो उन्हें सैनिक स्कूल में पढ़ने से रोकना ठीक नहीं होगा। यही सरकार का मानना है। सरकार का कहना है कि जेंडर इक्वलिटी को प्रोत्साहन देने के मकसद से ऐसा किया गया है।
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