इन दिनों आपको एक चीज बाजार में बहुत ज्यादा नजर आएगी। शिकंजी के स्टॉल्स! गर्मियों में शिकंजी आपके लिए किसी अमृत से कम नहीं होती। यह शरीर को ठंडक पहुंचाने का काम करकी है और पेट के लिए भी अच्छी होती है। आज इसके अलग-अलग वर्जन आपको देखने को मिलेंगे।
हर रेस्तरां और कैफे में कोल्ड बेवरेज की कैटेगरी में शिकंजी का भी स्थान होता है। मगर आपको बता दें कि इसका इतिहास बड़ा दिलचस्प रहा है। इसे सदियों से बनाया जाता रहा है। ऐसा भी माना जाता है कि शिकंजी का जिक्र सबसे पहले महाभारत में मिला था। जी हां, उसके बाद इसकी रेसिपी पीढ़ी-दर-पीढ़ी बढ़ती रही और आज लोग इसे अलग-अलग तरह से बनाकर पीते हैं। हम इस आर्टिकल में आपको इसके दिलचस्प इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं।
कैसे बनी शिकंजी?
शिकंजी को शिकंजवी नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसकी उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप में हुई थी। कहते हैं कि लोग पहले नींबू को निचोड़ने के लिए लकड़ी के छोटे टूल्स का इस्तेमाल करते थे। आज यह टूल लेमन स्क्वीजर के नाम से जाना जाता है। तब नींबू के रस को चीनी और पानी के साथ मिलाया जाता था। यह मुंह के स्वाद को बदल देता था और पीने में स्वादिष्ट लगता था, इसलिए लोगों ने इसे गर्मियों में एक कूलर की तरह उपयोग करना शुरू किया। शिकंजी नाम 'शिकंजाबीन' से लिया गया है, जिसका अर्थ है इंग्रीडिएंट्स को एक साथ मिलाकर बनाई गई ड्रिंक।
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क्या है महाभारत कनेक्शन?
ऐसा माना जाता है कि शिकंजी का उल्लेख प्राचीन भारतीय महाकाव्य महाभारत में भी मिलता है। पांडवों के निर्वासन काल के दौरान, जब वे प्यास से तिलमिलाते और थके हुए जंगलों में घूम रहे थे, तो पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने उनकी प्यास बुझाने के लिए एक पेय बनाया। जंगल में उन्हें नींबू के पेड़ मिले, तो उससे कुछ नींबू को चुनकर उन्होंने एक बर्तन में उसका रस निकाला। जंगल की जलधाराओं से पानी लिया और उसे नींबू के रस में मिलाया। इसमें शहद के साथ जंगल में उपलब्ध कुछ हर्ब्स भी मिलाए और पांडवों को पीने के लिए दिया। इसे पीते ही, पांडवों को ऊर्जा मिली और उनकी प्याज भी बुझ गई।
वहीं, एक दूसरी कहानी के अनुसार, शाही रसोइए ने इस रेसिपी को तैयार किया था और तब इसे शिकंजी नहीं, बल्कि नलपाक कहा जाता था। रसोइए का नाम नल था, इसलिए इस पेय को भी यही नाम मिल गया। यह पेय जब पांडवों को दिया गया, तो उन्हें बहुत पसंद आया।
समय के साथ बदलते रहे मसाले
सदियों से बनती आ रही शिकंजी ने क्षेत्र के हिसाब से खुद को भी थोड़ा-थोड़ा बदला। इसमें नींबू, पानी,चीनी और नमक स्थिर रहे, लेकिन बाकी सामग्री बदलती रही। कुछ लोग इसमें पुदीना की पत्तियां मिलाने लगे। कुछ लोग भुना हुआ जीरा पाउडर डालकर इसे बनाते। लोगों ने अदरक और हरी मिर्च डालकर भी इसमें एक्सपेरिमेंट किया और फिर पानी की जगह सोडा ने ले ली। एक समय था कि बंटे वाली शिकंजी काफी लोकप्रिय हुआ करती थी। कांच की बोतल में सोडा होता था और नींबू और मसाला डालकर सोडा मिलाया जाता था। अब बंटे वाली बोतलें भी बदल चुकी हैं और जगह-जगह होने वाले एक्सपेरिमेंट से शिकंजी तैयार की जाने लगी।
सिर्फ पेय नहीं शिकंजी रखती है सांस्कृतिक महत्व
अगर आपको लगता है कि यह बस भारत में मिलने वाला एक लोकप्रिय पेय है, तो आप गलत है। शिकंजी का भारतीय समाज में सांस्कृतिक महत्व भी है। यह आतिथ्य और गर्मजोशी का प्रतीक भी है। कई भारतीय घरों में, मेहमानों को शिकंजी का एक गिलास पेश करना स्वागत और आतिथ्य का एक संकेत है। चिलचिलाती गर्मी में जो प्यास बुझाए और ऊर्जा बढ़ाए, यह ऐसा एक खास पेय है।
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लखनऊ की एक दुकान है शिकंजी के लिए फेमस
लखनऊ में स्थित पाटानाला में एक दुकान है मंदू भाई की दुकान, जिसकी शिकंजी बहुत ज्यादा फेमस है। दूर-दूर से लोग मंदू भाई की शिकंजी का मजा लेने आते हैं। यह दुकान इस जगह पर 1935 से स्थित है। इनके दादा ने यह दुकान शुरू की थी और आज भी इस दुकान में मिलने वाली शिकंजी का स्वाद ऑथेंटिक है। इनकी दुकान में शिकंजी के 50 से ज्यादा फ्लेवर होते हैं। हर फ्लेवर की अपनी अलग पहचान है। मंदू भाई की शिकंजी में काली मिर्च, जीरा, सौंफ और अजवाइन जैसे कई मसालों का मिश्रण होता है, जो स्वाद को बेहतर बनाता है।
कैसी लगी आपको शिकंजी बनने की कहानी? आपके शहर या क्षेत्र में भी कोई फेमस शिकंजी की दुकान है, तो उसके बारे में हमें जरूर बताएं। अगर आपको यह लेख पसंद आया, तो इसे लाइक और शेयर करना न भूलें। ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।
Image Credit: Freepik and Shutterstock
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