क्या आप जानते हैं कहां से हुई थी चाय की शुरुआत और किसने दिया था इसे ये नाम

चाय की तलब के बारे में तो शायद आपको पता होगा, लेकिन क्या आपको चाय के इतिहास के बारे में पता है? आखिर ये हमारे घरों की जरूरत कैसे बन गई? 

how the name of tea got popular

सर्दी हो या गर्मी चाय के बिना हमारा दिन शुरू नहीं होता। चाय हमारी रोज़ाना की जरूरत का एक बड़ा हिस्सा लगती है और बिना इसके कुछ खाली-खाली लगता है। चाहे घर पर चाय बनानी हो या फिर टपरी वाली चाय पीनी हो भारतीयों का चाय से लगाव देखकर ऐसा लगता है जैसे ये भारत के इतिहास का बहुत अहम हिस्सा रही है, लेकिन ऐसा नहीं है। भारत नहीं चाय की शुरुआत आज से 5000 साल पहले चीन में हुई थी।

चाय को लेकर अक्सर ब्रिटेन को याद किया जाता है, लेकिन जो बात आपको नहीं पता वो ये कि ब्रिटेन ने चाय की दीवानगी में कई देशों से दुश्मनी मोल ले ली थी। पहले के समय में कारोबार इतना आसान नहीं था और चाय की ललक ने अंग्रेजों से कई पापड़ बिलवाए थे। तो चलिए चाय की बात करते हुए चीन, ब्रिटेन की यात्रा करते हुए भारत की ओर आते हैं।

चाय का आविष्कार और इसका नामकरण

चाय का इतिहास चीन से जुड़ा हुआ है और वहीं इसका आविष्कार माना जाता है। प्रचलित कहानी के अनुसार 2732 BC में चीन के शासक शेंग नुंग ने चाय का आविष्कार किया था। ये भी गलती से ही हो गया था क्योंकि एक जंगली पौधे की पत्तियां उनके उबलते हुए पानी के बर्तन में जा गिरी थीं। जब पत्तियां पानी में गिरी तो उसमें से बहुत अच्छी खुशबू आने लगी और उसका रंग बदलने लगा। कौतूहल वश शेंग नुंग ने इसे पी लिया। कहानी ये भी कहती है कि शासक को इसे पीकर इतना अच्छा लगा था जैसे उनके पूरे शरीर में ताजगी आ गई हो और उन्हें खुशी का अहसास हुआ हो। उन्हें लगा जैसे ये लिक्विड उनके शरीर के हर हिस्से को खोज रहा है।

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उस दौरान शेंग नुंग ने चाय का नाम चा.आ रखा था। ये चीनी अक्षर हैं जिनका मतलब है परखना या फिर खोजना। हालांकि, 200 BC में चीन के ही एक और शासक ने इसके लिखने के तरीके में परिवर्तन किया, लेकिन इसका नाम चा.आ ही रखा।

तो इस तरह दुनिया को मिली चाय जिसे आज तक पसंद किया जाता है। हालांकि, चाय के आविष्कार से जुड़ी अन्य कहानियां भी देखी गई हैं, लेकिन सबसे प्रचलित यही है।

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चाय के इतिहास से जुड़े अन्य देश

चीन ने चाय की सबसे पहली झलक तिब्बत को दिखाई थी। ये 9वीं सदी की बात है जब याक के जरिए तिब्बत में चीन से चाय आयात की जाती थी।

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इसके बाद जापान में भी इसी तरह से चाय को लाया गया। चीन में व्यापार के लिए आने वाले जापानी ग्राहकों ने चाय का जायका चखा और फिर एक बौद्ध भिक्षु डेंग्यो डैशी चाय के बीज अपने साथ जापान ले गए और फिर जापानी भिक्षुओं के ध्यान का अहम हिस्सा चाय बन गई थी।

1618 में चीन से रूस के शासक के लिए तोहफे में चाय की पत्तियां आई थी। जिस तरह तिब्बत में याक की मदद से चाय आयात की जाती थी वैसे ही रशिया में चाय ऊंट के जरिए पूरे देश में पहुंचाई जाती थी। रशिया से धीरे-धीरे चाय यूरोप तक पहुंच गई। 1600 की सदी में ही यूरोप में पुर्तगाल और डेनमार्क में सबसे पहले चाय आयात हुई थी।

चाय का नाम 'टी' कैसे पड़ा?

अब बात करते हैं उस देश की जिसने चाय को चीन से निकाल कर ग्लोबल कर दिया और इसके लिए युद्ध तक कर लिए।

1658 में ब्रिटेन के अखबार में पहली बार चाय का विज्ञापन छपा। तब तक कुछ चीनी और पुर्तगाली व्यापारी इसे ब्रिटिश बाजारों तक पहुंचा चुके थे। इस दौरान इसका नाम 'टे' था। विज्ञापन में भी इसी शब्द का इस्तेमाल किया गया और उसके बाद आगे बढ़ते-बढ़ते ये टी बन गया। हालांकि, इसका प्रचलन एक शाही शादी की वजह से बढ़ा।

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पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरीन ऑफ ब्रिगेंजा की शादी 1662 में इंग्लैंड के राजा किंग चार्ल्स II से हुई थी। वो अपने साथ दहेज में चाय की पत्तियां लेकर आई थीं। दरअसल, कैथरीन के पास हमेशा चाय की पत्तियां होती थीं और उन्हें ये बहुत पसंद थी।

इस दौरान ब्रिटिश रॉयल परिवार का परिचय चाय से हुआ। ब्रिटेन की नई रानी अपने दोस्तों को भी चाय पिलाने लगी। ब्रिटिश गलियारों में ये बात तेज़ी से फैल गई कि एक रॉयल ड्रिंक है जो सिर्फ रानी के पास ही होती है। जिसने भी ये पी थी उसने इसे दोबारा पीने की इच्छा जाहिर की और कुछ ऐसे शुरू हुआ ब्रिटेन में चाय का आयात।

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ब्रिटेन और चाय की ऐतिहासिक दीवानगी

ब्रिटेन में ऊंचे तबके के परिवार इसे पीने लगे और 'आफ्टरनून टी' का प्रचलन चलने लगा। 'आफ्टरनून टी' और 'हाई टी' पार्टीज का प्रचलन चलने लगा। आफ्टरनून टी हल्के नाश्ते और शाम के खाने के बीच के समय दी जाती थी। हाई टी का समय 6 बजे रखा जाने लगा जहां इसके साथ भरपूर खाने-पीने की चीजें मौजूद होती थी।

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इससे पहले यूरोप में डेनमार्क ही चाय का व्यापार होता था, लेकिन जैसे ही ब्रिटेन के राज परिवार में इसका चस्का बढ़ा उन्होंने अपना वर्चस्व बढ़ा लिया।

चांदी और अफीम के बदले चाय

एक लत इंसान से कुछ भी करवा सकती है और चाय की लत तो कितनी जटिल हो सकती है ये आप जानते ही होंगे। भारत में चाय की दीवानगी भी पड़ोसी चीन के जरिए नहीं बल्कि अंग्रेजों के जरिए बढ़ी थी। भारत के जितने विदेशी शासक रहे वो अपने साथ कोई न कोई सौगात लेकर आए और उसमें से एक चाय भी थी।

जब ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी पूरी दुनिया में फैलने लगी तब चाय की ललक भी बढ़ गई और यही कंपनी चाय के ग्लोबलाइजेशन की अहम कड़ी बन गई। 1833 में तो ट्रेड कॉम्पटीशन शुरू हो गया और सभी ग्लोबल इकोनॉमी चाय की दीवानी होने लगीं।

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अब तक ब्रिटेन का वर्चस्व चाय पर जमने लगा था तो भला इसका आविष्कारक चीन कैसे चुप बैठता। दुनिया भर में चाय की मांग बढ़ने लगी और ब्रिटेन ये पूरा नहीं कर पा रहा था। उस दौरान एक हाथ दे और एक हाथ ले वाला रूल चलता था। ब्रिटेन भारत से कपास लेकर निर्यात करता था, लेकिन उस समय चीन चांदी में ज्यादा दिलचस्पी लेता था।

अब चांदी तो कपास की तरह उगाई नहीं जा सकती थी तो ब्रितानियों ने दिमाग लगाकर भारत में अफीम उगानी शुरू कर दी। ये अफीम भारत के किसान उगाते थे और अंग्रेज जहाजों में भरकर इसे और जगहों पर भेजते थे। चीन में ये स्कीम काम आ गई। अफीम का कारोबार ऐसा था कि जितनी मंगवाओ उतनी ही इसकी खपत बढ़ती थी। ये निर्यात भी भारतीय बॉर्डर से होने लगा और ऐसे में चीन को ये समझने में कुछ समय लग गया कि अफीम उनकी आवाम के साथ क्या कर रही है।

भारत और चाय

चीन का ये कारोबार 1839 तक चला, लेकिन इसके बाद चीन ने विरोध किया और 20000 अफीम के बक्से पानी में डुबा दिए। इसके एक साल बाद ब्रिटेन ने चीन के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया और बदले में चीन ने चाय के निर्यात में ही रोक लगा दी थी। ये वो दौर था जब चीन को समझ आया कि उनका देश अलग होकर भी अपना कारोबार कर सकता है।

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तब तक भारत की उपजाऊ जमीन का पता ब्रिटेन को लग गया था और थोड़ी सी मेहनत से ब्रिटिश चाय के बागान भारत में लगाए गए। ये थी भारत के पहले चाय के बागानों की कहानी जो दुनिया भर से होते हुए यहां आई। आप देखेंगे कि दार्जिलिंग और असम में उगाए जाने वाली चाय का इतिहास कहीं न कहीं अंग्रेजों तक जुड़ता है। वैसे तो इसकी शुरुआत 1823 से ही होने लगी थी, लेकिन चीन के निर्यात को रोकने के बाद ये तेज़ हो गई।

चाय उगने तो लगी, लेकिन इसकी प्रोसेसिंग की जानकारी अभी भी नहीं थी जिसके लिए रॉबर्ट फॉर्च्यून (स्कॉटिश बॉटनिस्ट) ने चीन के ये सीक्रेट्स निकाले और फिर भारत में जो चाय बनी वो वर्ल्ड क्लास बन गई।

भारतीय चाय असम टी, दार्जिलिंग टी अभी पूरी दुनिया में निर्यात की जाती है। हां, चाय के इतिहास में अंग्रेजी मिसेज ब्रुक (ब्रुक बॉन्ड टी की रचियता), टाटा टी कंपनी (भारत की पहली फ्रेश चाय) आदि का नाम भी जुड़ता गया, लेकिन उनके बारे में फिर कभी बात करेंगे। अब आने वाले समय में इसके बारे में भी हम आपको बताएंगे तो जुड़े रहिएगा हरजिंदगी के साथ चाय से जुड़े इस रोचक सफर के बारे में जानने के लिए।

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Image Credit And Fact Source: Tea History india, coffeeteawarehouse.com, Freepik

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