पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले में मौजूद बिष्णुपुर एक बेहद ही खूबसूरत जगह है। दरअसल, यहां पर कई मंदिर हैं, जिन्हें देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां पर मौजूद मंदिरों की खास बात यह है कि यहां पर अधिकतर मंदिर टेराकोटा से बने हैं। इन टेरारकोटा मंदिरों का आर्किटेक्चर बस देखते ही बनता है। साथ ही, इनका अपना ऐतिहासिक महत्व भी है। यहां पर मौजूद अधिकतर मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित हैं और 17वीं और 18वीं शताब्दी के दौरान मल्ल राजाओं द्वारा बनाए गए थे।
जब आप इन मंदिरों में जाते हैं तो आपको एक अलग ही अनुभव करते हैं। दरअसल, बंगाल में पत्थर की आपूर्ति कम होने के कारण आर्किटेक्चर ने एक नया तरीका निकाला, जिसे टेराकोटा के नाम से जाना जाता है। मल्ल और उनके वंशजों ने टेराकोटा और स्टोन आर्ट से बने कई मंदिर बनवाए। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको बिष्णुपुर में मौजूद कुछ मंदिरों के बारे में बता रहे हैं-
यह बिष्णुपुर में ईंटों से बना सबसे पुराना मंदिर है, जिसे 1600 ई. में राजा हम्बीर द्वारा स्थापित किया गया था। यह पूरे बंगाल के साथ-साथ देश में भी अपनी तरह का अनूठा मंदिर है। यह एक अनोखी संरचना है जिसका उपयोग रास उत्सव मनाने के लिए किया जाता था। यह स्थान भगवान कृष्ण को समर्पित है।
मृणमयी मंदिर बिष्णुपुर का सबसे पुराना मंदिर है, जिसे 997 ईस्वी में राजा जगत मल्ल द्वारा स्थापित किया गया था। ऐसा माना जाता है कि मां मृणमयी ने राजा को सपने में मंदिर बनाने का आदेश दिया था। यहां देवी दुर्गा को मां मृणमयी के रूप में पूजा जाता है। अगर आप यहां पर हैं, तो बंगाल की सबसे पुरानी दुर्गा पूजा और पूजा के दौरान आध्यात्मिक भावना का अनुभव करें।
जोरबंगला मंदिर की स्थापना 1655 में मल्ल राजा रघुनाथ सिंह ने की थी। यह मंदिर पश्चिम बंगाल की टेराकोटा कला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है। इसे केष्टा रॉय मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इसकी विशेषता इसकी घुमावदार छतें हैं, जो पारंपरिक बंगाल की झोपड़ी के आकार से मिलती जुलती हैं। इस मंदिर की दीवारों पर महाभारत, रामायण, कृष्ण के बचपन के कई दृश्यों को चित्रित करने वाली टेराकोटा की विस्तृत मूर्तियां देखने का मौका मिलेगा।
श्याम राय मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित एक मंदिर है। यह मंदिर अपने खूबसूरत डिजाइन वाले टेराकोटा पैनलों के लिए जाना जाता है, जो कृष्ण के जीवन के प्रसंगों को दर्शाते हैं। यह मंदिर 1643 में राजा रघुनाथ सिंह द्वारा बनवाया गया था। इसे पंच-चूरा मंदिर के रूप में जाना जाता है क्योंकि इसमें पांच शिखर हैं। इस मंदिर का एक आकर्षण एक विशाल रासचक्र है जो गोपियों के बीच राधा-कृष्ण लीला के विभिन्न रूपों को दर्शाता है।
यह बिष्णुपुर के पुराने मंदिरों में से एक है, जिसकी स्थापना मल्ल राजा दुर्जन सिंह देव ने 1694 में भगवान मदन मोहन के नाम पर की थी। यह रामायण और महाभारत के दृश्यों को चित्रित करने वाले अपने सुंदर टेराकोटा पैनलों के लिए जाना जाता है। जब आप बिष्णुपुर में हैं तो ऐसे में आपको इस मंदिर को अवश्य देखना चाहिए।
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Image Credit- wikipedia
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