हमारा देश कई विविधताओं से भरा है और हर एक जगह का अलग इतिहास है। जहां एक तरफ भारत के सभी स्थानों की अलग कहानी है वहीं देश की नदियों की भी अपनी अलग दास्तां है। सदियां गुजरती गईं और समय ने कई बार करवटें बदलीं, लेकिन भारत की नदियां अपने जल से लोगों की आवश्यकताएं पूरी करती गईं। नदियों ने न कभी अपना रुख बदला और न ही अपने जल को खुद में समेटे रखा। कुछ ऐसी ही कहानी है भारत की पवित्र नदियों की जो निरंतर अपनी दिशा में बहती जा रही हैं।
भारत की कई पवित्र नदियां आज भी पूजी जाती हैं और आगे भी उनकी पूजा करके लोग सुख समृद्धि के दावेदार बनेंगे। गंगा, यमुना, नर्मदा, शिप्रा नदी की पवित्रता के साथ भारत की एक और पवित्र नदी है कावेरी नदी। कावेरी नदी प्राचीन काल से बहती चली आ रही है और इसका इतिहास बेहद दिलचस्प है। आइए जानें कावेरी नदी के इतिहास और उद्गम की कहानी और इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में।
कावेरी नदी का उद्गम कोडागु में ब्रह्मगिरी पहाड़ियों में तालकावेरी नामक स्थान से होता है। यह नदी अपनी यात्रा छोटे तालाब से शुरू करती है जिसे कुंडिके तालाब कहा जाता है, बाद में कनके और सुज्योति नामक दो सहायक नदियां कावेरी से आकर इसमें मिलती हैं। ये तीनों नदियां भागमंडल नामक बिंदु पर मिलती हैं। यह 1350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और आमतौर पर दक्षिण से पूर्व दिशा में बहती है। नदी लगभग 760 किमी लंबी है। यह कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य में बहती है और बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है। कावेरी नदी की प्रमुख सहायक नदियों में शिमशा नदी, हेमवती नदी, अर्कावती नदी, होन्नुहोल नदी, लक्ष्मण तीर्थ नदी काबिनी नदी, भवानी नदी, लोकपावनी नदी और अमरावती नदी शामिल हैं।
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कावेरी नदी जिसे तमिल में 'पोन्नी' के नाम से जाना जाता है, दक्षिण भारत की चौथी सबसे बड़ी नदी है। कर्नाटक के कोडागू जिले के तालकावेरी में पश्चिमी घाट से उत्पन्न, यह तमिलनाडु से होकर गुजरती है। यह नदी राज्य को उत्तर और दक्षिण में विभाजित करती है और अंत में पूम्पुहार में बंगाल की खाड़ी तक पहुंचती है, जिसे तमिलनाडु में कावेरी पूमपट्टिनम के नाम से भी जाना जाता है। कावेरी बेसिन कर्नाटक 34,273 वर्ग किमी, तमिलनाडु 43,856 वर्ग किमी और केरल 2,866 वर्ग किमी और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी 160 वर्ग किमी में 81,155 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। कावेरी की प्रमुख सहायक नदियां काबिनी और मोयर, तमिलनाडु के सेलम जिले के मेट्टूर में स्टेनली जलाशय तक पहुंचने से पहले इसमें शामिल हो जाती हैं। इसके स्रोत से मुहाने तक नदी की कुल लंबाई 802 किलोमीटर है। प्राचीन काल से वर्तमान युग तक, नदी दक्षिण भारत के प्राचीन राज्यों और शहरों की जीवन रेखा रही है। नदी की प्रचुर प्रकृति के कारण, कावेरी डेल्टा को हाल तक भारत में सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक माना जाता था।(गोदावरी नदी का इतिहास)
कावेरी नदी के जन्म के पीछे कई अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं। उनमें से एक कहानी के अनुसार प्राचीन काल में क्षेत्र में भीषण सूखे के कारण दक्षिण भारत की स्थिति बदतर होती जा रही थी। यह देखकर ऋषि अगस्त्य को बहुत दुख हुआ और उन्होंने भगवान ब्रह्मा से मानव जाति को इस स्थिति से बाहर निकलने में मदद करने की प्रार्थना की। ब्रह्मा ने कहा कि यदि आप उस स्थान पर जाते हैं जहां भगवान शिव रहते हैं और कुछ बर्फ का पानी इकट्ठा करते हैं जो कभी खत्म नहीं होता है, तो आप एक नई नदी शुरू करने में सक्षम होंगे। ऋषि अगस्त्य कैलाश पर्वत पर गए और अपने घड़े को बर्फ के पानी से भरकर वापस चले गए। उन्होंने पहाड़ी कूर्ग क्षेत्र में नदी शुरू करने के लिए अच्छी जगह की तलाश शुरू कर दी। वह सही जगह की तलाश में थक गया और उसने अपना बर्तन उस छोटे लड़के को सौंप दिया जो वहां खेल रहा था। वह छोटा लड़का वास्तव में भगवान गणेश थे जिन्होंने नदी शुरू करने के लिए जगह चुनी और ऋषि अगस्त्य ने कावेरी नदी को हिमालय पहुंचाया।
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कावेरी नदी भारत की पवित्र नदी है और इसका धार्मिक महत्व अन्य नदियों की ही तरह है। भारत में लोग गंगा और यमुना की ही तरह कावेरी नदी को देवी मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं। उन्हें देवी कावेरी अम्मा के रूप में संदर्भित किया गया है। किदवंतियों की मानें तो कावेरी नदी हमारे कर्मों को शुद्ध करती है और हमारे सभी कष्टों को धो देती है। यह नदी मां के रूप में पूजी जाती है और हमें शांति प्रदान करती हैं।(जानें शिप्रा नदी की कहानी)
कावेरी नदी बड़ी मात्रा में वन्यजीवों का समर्थन करती रही है। दक्षिण भारत में लाखों लोग विशेष रूप से आदिवासी आबादी के लोग कावेरी नदी के पानी पर बहुत अधिक निर्भर हैं। इसका पानी व्यापक रूप से सिंचाई और बिजली आपूर्ति के लिए उपयोग किया जाता है।
वास्तव में कावेरी नदी का इतिहास काफी दिलचस्प है और ये नदी भारत में पूजी जाने वाली पवित्र नदियों में से एक है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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