अरूणाचल प्रदेश में इन Tibetan monastery को नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा

यूं तो अरूणाचल प्रदेश में बहुत कुछ देखने को है, लेकिन वहां पर मौजूद इन Tibetan monastery की बात ही अलग है।

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हर वक्त काम की भागदौड़ के बीच एक वक्त ऐसा भी आता है, जब व्यक्ति इन सबसे दूर प्रकृति की वादियों में खो जाना चाहता है। वैसे इसके लिए जरूरी नहीं है कि दूर-दराज की यात्रा की जाए। भारत में ही आपको ऐसे कई पर्यटन स्थल मिल जाएंगे, जो यकीनन एक अविस्मरणीय अनुभव देते हैं। इनमें से एक है अरूणाचल प्रदेश। यहां पर मौजूद खिलखिलाते फूल, बर्फ की सफेद चादर से ढंकी पहाड़िया और खूबसूरत वादियां यकीनन हर किसी को अपनी ओर खींचती हैं। इन सबके अतिरिक्त यहां पर कई तिब्बती मठ हैं, जो कभी तिब्बत का हिस्सा हुआ करते थे। यूं तो यहां पर कई तिब्बती मठ हैं, लेकिन इनमें भी कुछ मठ ऐसे हैं, जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं जैसे तवांग, बोमडिला और उरगेलिंग। तो चलिए आज हम आपको अरूणाचल प्रदेश में मौजूद इन तिब्बती मठों के बारे में आपको बता रहे हैं-

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तवांग मठ

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इस मठ की स्थापना 1860 में की गई थी। यह भारत का सबसे बड़ा मठ है और एशिया में दूसरा सबसे बड़ा। इसे गेल्डेन नाम्गी ल्हात्से भी कहा जाता है और इसे 5 वें दलाई लामा की इच्छा के अनुसार स्थापित किया गया था। अरूणाचल प्रदेश में यह ऐसी जगह है, जिसे हर किसी को देखना चाहिए यहां पर आप सबौद्ध धर्म और इस धर्म से जुड़ी कई बातों को आसानी से सीख सकती हैं। इतना ही नहीं, यहां जाकर कैंडल जलाना और प्रार्थना करने का अपना एक महत्व है।

बोमडिला मठ

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बोमडिला मठ को Gentse Gaden Rabgyel Lling के रूप में भी जाना जाता है। यहां पर लोगों द्वारा महायान बौद्ध धर्म अपनाया जाता है, जिन्हें मोनपा कहा जाता है। यह 1965 में बनाया गया था। त्योहारों के समय यहां पर रेत द्वारा बनाए गए मंडलों को देखना काफी अच्छा लगता है। यह समुद्र तल से 8500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और दक्षिण तिब्बत में एक मठ की रेप्लिका है।

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उरगेलिंग मठ

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यह दलाई लामा 6 वें का जन्मस्थान है। यह तवांग से सिर्फ 5 किमी दक्षिण में है। यह 15 वीं शताब्दी जितना पुराना है 1700 के दशक में, यहां पर तोड़फोड़ व चोरी की घटनाएं हुईं। वर्तमान में यह एक बहुत ही सरल और छोटा मठ है। इस मठ को लेकर लोगों की धारणा है कि यहां पर दलाई लामा द्वारा लगाए गए पेड़ के पत्ते गर्म पानी में रखे जाने पर बीमारी को ठीक कर सकते हैं।

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