9 तरह के ऐसे साग, जिनको खाया जाता है, जानें आप भी इनके बारे में

अगर आपको साग खाना पसंद है और आप कुछ नए तरह के साग की तलाश में हैं, तो चलिए हम आपको बताते हैं औषधीय गुणों  से भरे कुछ साग के बारे में।

 know about their different types of saag main

हरे पत्तों यानी साग में सबसे ज्‍यादा पोषक तत्व पाए जाते हैं। साग में आयरन, विटामिन्स, कैल्शियम, एंटीऑक्सीडेंट्स और फाइबर प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, इसलिए साग खाना फायदेमंद होता है। सर्दियों के मौसम में घरों में अकसर सरसों का साग, मेथी का साग, पालक, चौलाई का साग बनाया जाता है, लेकिन इसके अलावा भी कई ऐेसे साग हैं जिनको खाया जाता है। इसमें से कुछ सागों में औषधीय गुण भी होते हैं, जो स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने और बीमारी से निपटने में मदद करते हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह के साग पाए जाते हैं। इन साग को अलग-अलग जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। दुनिया में बहुत सारे लोग ऐसे हैं, जिन्‍हें यह नहीं पता कि इन साग के किस्‍मों को पकाकर खाया भी जा सकता है, इसलिए इनका इस्तेमाल भी काफी कम होता है।

 know about their different types of saag inside

इसे जरूर पढ़ें: सरसों का साग घर पर कैसे बनाएं कि सब उंगलियां चाटते रह जाएं

अगर आपको साग पसंद है और नए तरह के साग की तलाश में हैं, तो हम आपको बता रहे हैं कुछ ऐसे साग के बारे में जिन्‍हें आपने पहले कभी ट्राई नहीं किया होगा। तो चलिए अब इन साग को भी अपनी खाने की वेराइटी में शामिल कर लीजिए। आपको इन सागों का स्‍वाद बेहद पसंद आएगा। तो आइए जानें इन 10 तरह के साग के किस्‍मों बारे में।

सुशनी साग

इसे सुशनी साग या सुसुनिया साग के नाम से जाना जाता है। इस साग को पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में खाया जाता है। यह साग खासतौर पर पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखंड में काफी पसंद किया जाता है। इसमें कई तरह के विटामिन्स, मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं।

पुई साग

पुई साग के पत्ते काफी हद तक दिखने में पालक जैसे होते हैं पर इनके पत्‍ते पालक साग से थोड़े मोटे होते हैं। यह साग पूरे साल पाया जाता है। यह प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाली जंगली बेल है। मनी प्लांट की तरह उगने वाले इस साग को घर पर गमले में भी उगाया जा सकता है। बंगाली में इसे पुई साग, यूपी में पोई और कन्नड़ में बेसल सोप्पू कहते हैं। वहीं, अंग्रेजी में इसे मालाबार स्पिनेच कहते हैं। बंगाल में इस साग को कद्दू के साथ बनाया जाता है। वहीं, यूपी में इसकी पकौड़ियां भी बनाई जाती हैं।

 know about their different types of saag inside

सहजन का साग

सहजन पौधों में सुपरहीरो है, इसका वानस्पतिक नाम मोरिंगा ओलिफेरा है। इसके पौधे के हर भाग को खाया जाता है। पत्ते, फूल और फल को खाया जाता है और इसके जड़ों का औषधि के रूप में इस्‍तेमाल किया जाता है। सहजन के पत्ते पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। काटने और सूखाने के बावजूद भी इनमें एंटीऑक्सीडेंट्स, विटामिन, प्रोटीन और सभी आवश्यक अमीनो एसिड प्रचुर मात्रा में विद्यमान रहते हैं। इसका इस्तेमाल एनीमिया, गठिया, मधुमेह, हृदय रोग, यकृत की बीमारी और श्वसन, त्वचा और पाचन विकार जैसी कई बीमारियों से निजात पाने के लिए किया जाता है।

 know about their different types of saag inside

कुलफा का साग

पर्सलेन को कुलफा, लुनी या घोल साग भी कहते हैं। इसमें विटामिन ए, बी, सी, ओमेगा- 3 फैटी एसिड और प्रोटीन पाया जाता है। पहले इसका इस्तेमाल बुखार और यूरिनरी इनफेक्शन को ठीक करने के लिए किया जाता था। कुलफा के साग पर दुनियाभर के कई वनस्पति अध्ययन किए गए हैं।

अरबी का पत्ता

अरबी या घुइंया तो लगभग सभी घरों में बनाई और खाई जाती है। इसके पकौड़े भी काफी फेमस हैं। इसमें कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखंड, यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश सहित कई प्रदेशों में अरबी के पत्तों को अलग-अलग तरीके से खाने का चलन है।

इमली की पत्ती

ज्‍यादातर लोगों को लगता है कि इमली की पत्ती नहीं खाई जाती है, लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इमली के पत्तों में प्रचुर मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। इसके अलावा इनमें पोटेशियम, फाइबर, आयरन और कैल्शियम भी पाया जाता है। दक्षिणी भारत के कई गांवों में इसे चटनी, करी और रसम बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। आंध्र प्रदेश में इमली के पत्तों से एक खास तरह की चटनी बनाई जाती है, जिसे चिंटाचिगुरु पच्चड़ी कहते हैं।

हाक साग

जम्मू कश्मीर में हाक साग (कश्मीरी साग की रेसिपी) का इस्तेमाल किया जाता है। यह साग दिखने में काफी हद तक पालक की तरह होता है। हालांकि यह बंद गोभी से भी मिलता-जुलता है और स्वाद में थोड़ा तीखा होता है। कश्मीर में इसे उबालकर, फ्राई करके या पीसकर खाया जाता है।

बिछु बूटी

बिछु बूटी या सिसुनक साग बारह महीने उगने वाला साग (इन 5 साग के हैं ये 5 फायदे) है, जो भारत के हिमालय क्षेत्र के जंगलो में पाया जाता है। इसके पत्तों को अगर खाली हाथों से छुआ जाए तो खुजली हो सकती है, लेकिन पकाने के बाद यह ठीक हो जाती है।

 know about their different types of saag inside

इसे जरूर पढ़ें: घर पर ऐसे बनाएं पालक का परांठा, जानिए ये आसान रेसिपी

गोंगुरा

देश के ज्‍यादातर हिस्सों में यह साग खाया जाता है। बंगाली में इसे मेस्तापत, हिंदी में पितवा, उड़िया में खाता पलंगा, तेलुगू में गोंगुरा, तमिल में पुलिचा किराइ, कन्नड़ में पुंडी, असमिया में टेंगा मोरा नाम से जाना जाता है। इसकी पत्तियां खट्टी होती हैं, लेकिन इनका खट्टापन अलग-अलग राज्‍यों में अलग-अलग होता है। इसकी ताजी पत्तियों का साग बनाया जाता है। अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी तो जुड़ी रहिए हमारे साथ। इस तरह की और जानकारी पाने के लिए पढ़ती रहिए हरजिंदगी।

HzLogo

HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!

GET APP