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Rumali Roti History: क्या वाकई हाथ पोंछने के लिए इस्तेमाल होती थी रुमाली रोटी? जानें आखिर कैसे बनी यह भारतीय कुजीन का हिस्सा

चिकन चंगेजी हो या फिर चिकन लबाबदार...इनका साथ बढ़िया तरीके से निभाती है रुमाली रोटी। मगर क्या आपने कभी सोचा है कि यह नाम इस रोटी को कैसे दिया गया? इसकी दिलचस्प कहानी जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे।
Editorial
Updated:- 2025-05-19, 18:10 IST

भारतीय रसोई का जायका तो दुनिया भर में मशहूर है फिर चाहे वह फ्लेवर से भरे मसाले हों या हमारी संस्कृति समेटे हुए कोई खास डिश। हमारी थालियों में सिर्फ स्वाद ही नहीं होता, बल्कि उसमें बसी होती हैं सदियों पुरानी कहानियां, परंपराएं और संस्कृति की झलक। कितने ऐसे किस्से हैं जो हमने समय-समय पर सुने। ऐसे ही तमाम कहानियों में एक लजीज किस्सा रुमाली रोटी का भी है।

इसका नाम सुनते ही एक बेहद पतली, बड़ी, गोल और नर्म रोटी की तस्वीर आंखों के सामने आ जाती है, जिसे स्किल्ड खानसामे हवा में उछालकर बनाते हैं। इसे बनाया भी उल्टे तवे पर जाता है। इसे इतनी सफाई से पकाया जाता है कि वह रोटी कम, कला का नमूना ज्यादा लगती है। पर क्या कभी आपने यह सोचा है कि रुमाली रोटी को 'रुमाली' क्यों कहा जाता है?

यह सवाल जितना मजेदार है, इसका जवाब उतना ही रोचक। इस रोटी का इतिहास किसी शाही दस्तरख्वान से जुड़ा हुआ है, जहां भोजन केवल पेट भरने का जरिया नहीं, बल्कि एक अनुभव होता था। ऐसा माना जाता है कि शुरू में रुमाली रोटी को बस प्रेजेंटेशन के लिए दावत का हिस्सा बनाया जाता है, लेकिन फिर धीरे-धीरे इसने अपनी अहम जगह बना ली।

इस लेख में चलिए आपको विस्तार से बताएं कि रुमाली रोटी कैसे हमारे कुजीन का अहम हिस्सा बन गई।

रुमाली रोटी के नाम की विचित्र कहानी

history of rumali roti

'रुमाल' यानी रूमाल, जो एक पतला कपड़ा होता है। इसे हाथ पोंछने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसी कपड़े के कारण इस रोटी का नाम रुमाली पड़ा। यह रोटी इतनी पतली होती है कि बिल्कुल रुमाल जैसी लगती है।

दिलचस्प बात यह है कि इतिहासकारों के मुताबिक, इस रोटी का इस्तेमाल सच में कभी-कभी हाथ पोंछने के लिए भी किया जाता था। खासतौर पर राजसी भोजों में, जहां अतिथियों को हाथ पोंछने के लिए खाने के बाद यह पतली रोटी दी जाती थी। इसे ‘खाने के बाद खाने वाली रोटी’ भी कहा जाता था।

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रुमाली रोटी कैसे बनी मुगलकाल का हिस्सा

माना जाता है कि इस रोटी की शुरुआत मुगल काल में हुई थी, जब खाना केवल स्वाद के लिए नहीं, बल्कि एक कला और संस्कृति की अभिव्यक्ति हुआ करता था।

शाही बावर्चीखाने में रोज नए व्यंजन बनते थे। इसी तरह नई-नई रोटियों और पकवानों के साथ प्रयोग होते रहते थे। उसी दौर में इस रोटी को बनाया गया। मैदे के आटे से रोटी को जब उछालकर हवा में फेंका गया, तो इसका आकार बड़ा हो गया। रोटी एकदम पतली और मखमली बनी। जब उसे तंदूर या उल्टे तवे पर पकाया गया, तो वह झट से तैयार भी गई।

मुगल दरबार में इसे पहली बार एक अलग उद्देशय से पेश किया गया था। कहते हैं कि मुगलई खाने में तेल ज्यादा पड़ता था। ऐसे में हाथ को पोंछने के लिए इस रोटी को पेश किया जाता था। इसकी पतली और मुलायम बनावट के कारण बावर्चियों ने इसे रुमाली रोटी नाम दिया।

मुगलिया दस्तरख्वानो पर जब बिरयानी, कबाब, निहारी और गोश्त जैसे भारी व्यंजन परोसे जाते थे, तो उन्हें संतुलित करने के लिए हल्की, पतली रुमाली रोटी दी जाती थी, जिसे हाथ पोंछने के बाद मेन कोर्स के साथ खाया जाता।

क्या सच में इसे हाथ पोंछने के लिए इस्तेमाल किया गया?

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इस पर इतिहासकारों की राय थोड़ी बंटी हुई है। कुछ लोग मानते हैं कि शाही भोज में जब मेहमान बहुत अधिक चिकनाई वाले मांसाहारी व्यंजन खाते थे, तो उनके हाथ साफ करने के लिए रुमाली रोटी दी जाती थी। यह न सिर्फ हाथ साफ करती थी, बल्कि खाने का हिस्सा भी बन जाती थी। वहीं, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक मिथक है और असल में यह सिर्फ खाने के लिए ही बनाई जाती थी, रोटी की रुमाल जैसी बनावट मात्र संयोग है।

कैसे बदला रुमाली रोटी का इस्तेमाल

मुगल दावतों में इसका इस्तेमाल कैसे भी किया जाता रहा हो, लेकिनआज रुमाली रोटी भारतीय रेस्टोरेंट्स में खासतौर पर नॉर्थ इंडियन या मुगलई भोजन के साथ परोसी जाती है। खासकर जब आप बटर चिकन, कोरमा या कबाब का ऑर्डर देते हैं, तो रुमाली रोटी उसे कंप्लीट करती है। धीरे-धीरे होटल्स और ढाबों ने इसे अपनी मेन्यू में प्रमुखता से शामिल किया है। इतना ही नहीं, इसे अब शाही रोटी के नाम से जाना जाता है।

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कई नामों से जानी जाती है रुमाली रोटी

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क्या आपको पता है कि रुमाली रोटी के कितने सारे नाम है। अलग-अलग क्षेत्रों में इसे अलग नाम दिया गया है। केरल और दक्षिण भारत में कभी-कभी इसी तरह की पतली रोटियों बनाई जाती हैं, जिनकी बनावट में थोड़ा-सा फर्क होता है, लेकिन उन्हें मलाबार रोटी कहा जाता है।
कुछ दक्षिण भारतीय हिस्सों में इसे वीर रोटी के नाम से जाना जाता है, खासतौर पर त्योहारों और शादी समारोहों में इस रोटी को सर्व किया जाता है। मंडका नाम खासकर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में सुना जाता है, जहां इसे विशेष अवसरों पर बनाया जाता है।
विदेशों में भी इसे खूब खाया जाता है और वहां कुछ लोग इसे रुमाली बोलते हैं तो कुछ अंग्रेजी ट्रांसलेशन कर इसे हैंकरचीफ रोटी कहते हैं।

इसे नाम कोई भी दिया जाए, लेकिन इसका सॉफ्ट टेक्सचर इसे खास बनाता है। इसकी मुलायम बनावट इसे खाने में आसान बनाती हैं। रुमाली रोटी के बारे में यह जानकारी आपको कैसी लगी, हमें कमेंट करके जरूर बताएं। यदि आपको यह लेख अच्छा लगा, तो इसे लाइक और शेयर करें। ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।

Image Credit: Freepik

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