हमारा देश भारत न जाने कितनी विविधताओं से भरपूर है। कई तरह के खूबसूरत और मनोरम दृश्यों को खुद में समेटे हुए भारत देश अन्य जगहों के लिए न जाने कितने खूबसूरत नज़रों को प्रस्तुत करता है। भारत न सिर्फ पहाड़ियों और समुद्रों के लिए एक अद्भुत जगह है बल्कि ये कई नदियों का संगम भी है। गंगा और यमुना नदी के उद्गम स्थान के साथ हमारा देश सरस्वती जैसी पौराणिक नदी को भी अपने नक़्शे में शामिल करने का गवाह है। हमारे देश में सदियों से न जाने कितनी संस्कृतियों का जन्म हुआ और विलुप्त हो गयीं। लेकिन नदियां अपना पवित्र जल सभी के कल्याण के लिए देती गयीं और अभी भी अपने जल से सभी को सराबोर करने में लगी हुई हैं।
ऐसी ही नदियों में से एक सरस्वती, जो शायद अब कहीं विलुप्त हो गयी है या फिर शायद किसी और नदी की गोद में सिमट गयी है। आइए जानें सरस्वती नदी से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में और क्या सच में इस नदी ने हमसे विदा ले ली है?
सरस्वती नदी को पुराणों में एक विशेष स्थान प्राप्त है। इस नदी को देवी की तरह पूजा जाता है। पुराणों में बताया गया है कि यह नदी आज भी बह रही है। लेकिन आज ये नदी किसी को दिखाई नहीं देती है और विज्ञान के अनुसार वो सैकड़ों साल पहले धरती पर थी लेकिन आज यह नदी विलुप्त हो चुकी है। इसलिए ये नदी अब दिखाई नहीं देती है। शास्त्रों की मानें तो सरस्वती नदी एक श्राप के कारण विलुप्त हो गयी और अब दिखाई नहीं देती है। वहीं एक और कथा के अनुसार इस नदी को प्राप्त एक वरदान के कारण यह विलुप्त होकर भी अस्तित्व में हैं। उसी वरदान की वजह से प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन माना जाता है, जबकि सरस्वती नदी कभी किसी को दिखाई नहीं देती है। फिर भी यह अस्तित्व में बनी है।
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महाभारत में मिले एक वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा नीचे आदि बद्री नामक स्थान से निकलती थी। आज भी लोग इस स्थान को तीर्थ स्थल के रूप में मानते हैं और वहां जाते हैं। किन्तु आज आदि बद्री नामक स्थान से बहने वाली नदी बहुत दूर तक नहीं जाती एक पतली धारा की तरह जगह-जगह दिखाई देने वाली इस नदी को ही लोग सरस्वती नदी मानते हैं और उसे पूजते हैं। वैदिक और महाभारत कालीन वर्णन के अनुसार इसी नदी के किनारे ब्रह्मावर्त था लेकिन आज वहां कुछ जलाशय हैं। आज भी कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर या पेहवा में इस प्रकार के अर्द्धचन्द्राकार सरोवर देखने को मिलते हैं, लेकिन ये भी सूख गए हैं। भारतीय पुरातत्व परिषद् के अनुसार सरस्वती का उद्गम उत्तरांचल में रूपण नाम के हिमनद से होता था। रूपण ग्लेशियर को अब सरस्वती ग्लेशियर भी कहा जाने लगा है। (भारत की 10 सबसे बड़ी नदियां)
कई वैज्ञानिक खोजों से पता चला है कि एक समय ऐसा था जब सरस्वती नदी के आसपास के स्थानों में भूकंप आए और जमीन के नीचे के पहाड़ ऊपर उठ गए और सरस्वती नदी का जल पीछे की ओर चला गया। वैदिक काल में एक और नदी दृषद्वती का वर्णन भी आता है। यह सरस्वती नदी की सहायक नदी थी। यह भी हरियाणा से हो कर बहती थी। जब भीषण भूकम्प आए और हरियाणा तथा राजस्थान की धरती के नीचे पहाड़ ऊपर उठे, तो नदियों के बहाव की दिशा ही बदल गई। उस समय दृषद्वती नदी, जो सरस्वती नदी की सहायक नदी थी, उत्तर और पूर्व की ओर बहने लगी। इसी दृषद्वती को अब यमुना नदी कहा जाता है, इसका इतिहास 4,000 वर्ष पूर्व माना जाता है। यमुना नदी पहले चम्बल की सहायक नदी थी। भूकंप के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया और सरस्वती नदी यमुना में जा मिली। प्रयाग को इसी वजह से तीन नदियों का संगम माना गया है क्योंकि वहां अभी भी सरस्वती नदी गुप्त रूप से बहती है। जबकि वैज्ञानिकों की मानें तो ये नदी विलुप्त हो गई है और यह नदी कभी भी प्रयागराज तक नहीं पहुंची।
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प्राचीन काल में सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर जिले की काठगढ़ ग्राम पंचायत में आदिबद्री स्थान पर पहाड़ों से मैदानों में प्रवेश करती थी, जबकि ऋग्वेद, स्कंद पुराण, गरुड़ पुराण, वामन पुराण, पद्म पुराण जैसे शास्त्रों को मानें तो सरस्वती नदी का उद्गम हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले की नाहन तहसील से हुआ। एक कथा के अनुसार जोगी वन में मार्कंडेय मुनि ने तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर सरस्वती नदी गूलर में प्रकट हुईं। पौराणिक कथाओं के अनुसार मार्कंडेय मुनि ने सरस्वती का पूजन किया जिसके बाद मां सरस्वती ने वन के तालाब को अपने जल से भरा और फिर पश्चिम दिशा की ओर चली गईं।
सरस्वती नदी के अस्तित्व की बात की जाए तो अलग-अलग शोध बताते हैं कि इसके अस्तित्व को शास्त्र, पुराण और विज्ञान सभी ने माना है। एक रिसर्च में ये बात कही गयी है कि लगभग 5,500 साल पहले सरस्वती नदी भारत के हिमालय से निकलकर हरियाणा, राजस्थान व गुजरात में लगभग 1,600 किलोमीटर तक बहती थी और अंत में अरब सागर में विलीन हो जाती थी।
अन्य पवित्र नदियों की ही तरह आज भी सरस्वती नदी की मौजूदगी को नकारा नहीं जा सकता है और पवित्र नदियों की बात की जाए तो गंगा और यमुना के साथ सरस्वती की पूजा भी की जाती है।
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