लखनवी कुजीन का स्वाद हर किसी के दिल को भा जाता है। स्वाद के साथ-साथ यहां की तहजीब से भी प्यार हो जाता है। यही वजह है कि यहां का खाना लोग दूर-दूर खाने आते हैं। मुर्ग मलाई कबाब, बादाम का शोरबा, पाया यखनी शोरबा, मुर्ग लखनवी कोरमा जैसे फूड आइटम्स का नाम सुनते ही लखनऊ के फेमस फूड आउटलेट्स का रुख करने का मन करने लगता है।
कुछ भी कहें यहां के कबाब की बात की अलग है, टुंडे कबाब, सीक कबाब या काकोरी कबाब आदि काफी पसंद किए जाते हैं। खासकर काकोरी कबाबा, काकोरी कबाब की नर्म और लजीज बनावट के बारे में तो हर कोई जानता है, लेकिन इसके इतिहास में छिपा है एक अनोखा किस्सा, जो इसे और भी खास बनाता है।
यह कबाब न केवल लखनऊ के नवाबी खानपान का हिस्सा है, बल्कि इसका इतिहास एक खास मैंगो पार्टी से जुड़ा हुआ है। आइए जानते हैं इस कबाब के पीछे छिपी दिलचस्प कहानी।
नवाबी दौर और मैंगो पार्टी का किस्सा
यह किस्सा उस समय का है जब लखनऊ में नवाबों का शासन था। नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में खाने-पीने की चीजों पर खास ध्यान दिया जाता था। गर्मियों के मौसम में आमों की बहार के बीच मैंगो पार्टी का आयोजन एक परंपरा थी। इस पार्टी में आमों की मिठास के साथ नवाबी व्यंजनों का संगम होता था।
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इसी दौरान, नवाब के मेहमानों में कुछ अंग्रेज अधिकारी भी शामिल हुए। अंग्रेजों ने नवाबी खाने के बारे में तो खूब सुना था, लेकिन जब उन्होंने कबाब चखा, तो उन्होंने कबाब का स्वाद चखा लेकिन उन्हें कबाब काफी सख्त लगे। यह बात नवाब तक गई जो उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। इसलिए उन्होंने काकोरी कबाब बनाए जिसका स्वाद बहुत ही मुलायम था।
यूं की थी अंग्रेज की टिप्पणी
मैंगो पार्टी के दौरान, नवाब के मेहमानों में से एक अंग्रेज अधिकारी ने शामी कबाब की बनावट पर टिप्पणी की। उसने कहा कि यह कबाब स्वाद में तो बेहतरीन है, लेकिन खाने के दौरान इसमें कुछ मोटे टुकड़े महसूस होते हैं। यह बात नवाब को थोड़ी असहज लगी, और उन्होंनेअपने शाही रसोइयों को हुक्म दिया कि कबाब की बनावट इतनी नर्म होनी चाहिए कि वह मुंह में घुल जाए।
काकोरी कबाब की पारंपरिक रेसिपी
रसोइयों ने नवाब की इस मांग को पूरा करने के लिए नई रेसिपी पर काम करना शुरू किया। उन्होंने मांस को महीन पीसने और उसमें खास मसाले और चिकनाई मिलाने का तरीका अपनाया। इसके साथ ही कबाब को तंदूर में धीमी आंच पर पकाया गया, जिससे यह न केवल नर्म बना, बल्कि स्वाद में भी अच्छा हो गया।
इस नए कबाब को काकोरी कबाब का नाम दिया गया, क्योंकि इसे नवाब ने काकोरी में आयोजित एक खास पार्टी के दौरान परोसा था।
अंग्रेजों का बन गया पसंदीदा व्यंजन
काकोरी कबाब मुलायम होने की वजह से अंग्रेजों का बन गया पसंदीदा व्यंजन बन गया। कहा जाता है कि इस कबाब को अंग्रेज अधिकारियों ने अपने खास आयोजनों में भी शामिल किया।
आज भी काकोरी कबाब लखनऊ के शाही खानपान का प्रतीक है। यह व्यंजन न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर में अपनी पहचान बना चुका है। इसके पीछे की यह मैंगो पार्टी की कहानी इसे और भी अनमोल बनाती है।
रेस्टोरेंट्स में काकोरी कबाब की लोकप्रियता
काकोरी कबाब न केवल भारत में, बल्कि पाकिस्तान में भी बहुत लोकप्रिय है। यह कबाब खासतौर पर उत्तर भारत और पाकिस्तान के पंजाबी और अवधी रेस्टोरेंट्स में पसंद किया जाता है। भारतीय खाने के शौकीनों के बीच यह एक अहम और ऐतिहासिक व्यंजन बन चुका है और इसे अक्सर शाही अवसरों पर सर्व किया जाता है।
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काकोरी कबाब की तैयारी का वक्त
काकोरी कबाब की तैयारी में वक्त लगता है, क्योंकि यह कबाब धीरे-धीरे और बहुत ध्यान से तैयार होते हैं। इसके गोश्त को पहले पतला किया जाता है, ताकि मसाले अच्छी तरह से मिल जाएं। साथ ही, ऐसा करने से कबाब का स्वाद और बनावट बढ़िया होती है।
तो यह थे काकोरी कबाब से जुड़े किस्से, अगर आपको कुछ और पता है तो हमारे साथ जरूर साझा करें। वहीं, अगर हमारी स्टोरी से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें आर्टिकल के ऊपर दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
Image Credit- (@Freepik and shutterstock)
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