चिलिका लेक भारत की सबसे बड़ी तटीय खाड़ी के रूप में जानी जाती है और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी खाड़ी है। इसे दुनिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झील के रूप में जाना जाता है। यह भारत के पूर्वी तट पर ओडिशा राज्य के पुरी, खुर्दा और गंजम जिलों में दया नदी के मुहाने पर फैली हुई है। यह खूबसूरत लेक बंगाल की खाड़ी में बहती है, जो 1,100 किमी 2 से अधिक के क्षेत्र को कवर करती है।
यह भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवासी पक्षियों के लिए सबसे बड़ा शीतकालीन मैदान है। यह झील पौधों और जानवरों की कई प्रजातियों का घर है। झील एक पारिस्थितिकी तंत्र है जिसमें बड़े मत्स्य संसाधन हैं। यहां हर साल बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं और इस जगह का आनंद उठाते हैं। आइये चिलिका लेक से जुड़े कुछ ऐसे रोचक तथ्यों के बारे में जो आपने पहले नहीं सुने होंगे।
चिलिका झील मुख्य रूप से अप्रवासी पक्षियों के लिए एक अच्छी जगह है। इस झील में हर साल लाखों की संख्या में पूरे विश्व की कई जगहों जैसे साइबेरिया, आस्ट्रेलिया, रूस, कनाडा, फ्रांस, ईरान, इराक और अफगानिस्तान आदि स्थानों से पक्षी आते हैं। पक्षियों का आगमन अक्टूबर से आरंभ होता है और वे फरवरी तक चिलिका झील में रहते हैं। यहां पक्षियों की अनगिनत प्रजातियों को इस दौरान देखा जा सकता है। यहां पक्षियों के झुंडों को देखना अपने आप में बेहद रोमांचक अनुभव होता है।
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चिलिका का पानी इतना ज्यादा खारा है कि ये खारे पानी की (जानें नमक की 5 झीलों के बारे में ) सबसे बड़ी झील के रूप में जानी जाती है। चिलिकाझील 70 किमी. लम्बी तथा 30 किमी. चौड़ी और 3 मीटर गहरी है, इसकी अधिकत्तम गहराई लगभग 4 मीटर है। यह समुद्र का ही भाग है जो महानदी द्वारा लायी गई मिट्टी के जमा हो जाने से समुद्र से अलग होकर एक छिछली झील के रूप में दिखाई देती है। सबसे ज्यादा आश्चर्य में डालने वाली बात ये है कि दिसम्बर से जून तक इस झील का पानी खारा रहता है और बरसात में इस झील का पानी मीठा हो जाता हैं।
लगभग सैकड़ो गांव में रह रहे, लाखों मछुआरों को आजीविका का साधन यह झील उपलब्ध कराती हैं। इसमें मौजूद मछलियों की विभिन्न प्रजातियां मछुआरों की आजीविका मुख्य स्रोत हैं। चिल्का झील भारत की पहली ऐसी भारतीय झील है, जिसे सन् 1981 ई. में, रामसर घोषणापत्र के मुताबिक ‘अंतरराष्ट्रीय महत्व की आद्र भूमि‘ के रूप में चुना गया था। यह मत्स्य संसाधनों में बहुत समृद्ध है, जो 132 तटीय गांवों में 1.5 लाख से अधिक मछुआरों को प्रदान करती है।
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प्रवासी पंछी लगभग 12 हजार किमी. से भी ज्यादा की दूरी तय करके चिलिका झील आते हैं। चिल्का झील को 32 किमी. लंबी, संकरी, बाहरी नहर इसे बंगाल की खाड़ी से जोड़ती है। इस झील में डॉलफिन की दुर्लभ प्रजाति भी पायी जाती है। इस झील में लगभग 45% पंछी (भूमि), 32% जलपंछी और 23% बगुले हैं. यहाँ पर लगभग 37 प्रकार के सरीसृप और उभयचर निवास करते हैं।
भारत में, चिलिका झील इरावदी डॉल्फ़िन का एकमात्र निवास स्थान है, जिसे प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) द्वारा लुप्तप्राय प्रजातियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। वास्तव में चिलिका झील में डॉलफिन का पाया जाना बेहद आश्चर्य भरा है।
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