बात अगर होली के त्योहार की हो और गुजिया का नाम न आए ऐसा कैसे हो सकता है। मीठे के शौक़ीन लोग तो मानो पूरे साल गुजिया खाने के लिए इस ख़ास त्योहार का इंतजार करते हैं और रंगों में सराबोर होने के साथ गुजिया का लुत्फ़ उठाते हैं। खोए और मैदे से बनी ये ख़ास मिठाई वास्तव में जब प्लेट में सर्व की जाती है तब मुंह में पानी आ जाता है और इसका स्वाद लाजवाब लगता है। गुजिया खाते समय आपमें से न जाने कितनों के मन में ये ख्याल कभी न कभी तो जरूर आया होगा कि ये स्वादिष्ट मिठाई आखिर पहली बार कहां बनी होगी? आखिर इसकी रेसिपी सबसे पहले किसके मन में आयी होगी? किसने इस मिठाई का नाम गुजिया रखा होगा और कब ये होली की विशेषता बन गयी होगी?
ऐसे न जाने कितने सवाल मेरे मन में तो हर बार गुजिया को हाथ में उठाते ही आने लगते हैं। अगर आपके जेहन में भी इस तरह के कई सवाल आते हैं और आप इन सवालों का जवाब ढूढ़ रहे हैं तो चलिए यहां जानें इस लजीज व्यंजन की दिलचस्प कहानी और इसके इतिहास से जुड़े कुछ ख़ास फैक्ट्स के बारे में।
क्या है गुजिया का इतिहास
गुजिया की शुरुआत काफी पुरानी है। यह एक मध्यकालीन व्यंजन है जो मुगल काल से पनपा और कालांतर में त्योहारों की स्पेशल मिठाई बन गई। इसका सबसे पहला जिक्र तेरहवीं शताब्दी में एक ऐसे व्यंजन के रूप में सामने आता है जिसे गुड़ और आटे से तैयार किया गया था। ऐसा माना जाता है कि पहली बार गुजिया को गुड़ और शहद को आटे के पतले खोल में भरकर धूप में सुखाकर बनाया गया था और यह प्राचीन काल की एक स्वादिष्ट मिठाई थी। लेकिन जब आधुनिक गुजिया की बात आती है तब इसे सत्रहवीं सदी में पहली बार बनाया गया। गुजिया के इतिहास में ये बात सामने आती है कि इसे सबसे पहली बार उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बनाया गया था और वहीं से ये राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार और अन्य प्रदेशों में प्रचलित हो गई। कई जगह इस बात का जिक्र भी मिलता है कि भारत में समोसे की शुरुआत के साथ ही गुजिया भी भारत आयी और यहां के ख़ास व्यंजनों में से एक बन गयी।
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गुजिया और गुझिया में है अंतर
अक्सर आपने लोगों को इस मिठाई के दो नाम लेते हुए सुना होगा गुजिया और गुझिया, आपमें से ज्यादातर लोग शायद नहीं जानते होंगे कि ये दोनों ही मिठाइयां अलग तरह से बनाई जाती हैं। वैसे तो दोनों ही मिठाइयों में मैदे के अंदर खोए या सूजी और ड्राई फ्रूट्स की फिलिंग होती है लेकिन इनका स्वाद थोड़ा अलग होता है। दरअसल जब आप गुजिया की बात करते हैं तब इसे मैदे के अंदर खोया भरकर बनाया जाता है, लेकिन जब आप गुझिया के बारे में बताते हैं तब इसमें मैदे की कोटिंग के ऊपर चीनी की चाशनी भी डाली जाती है। दोनों ही मिठाइयां अपने -अपने स्वाद के अनुसार पसंद की जाती हैं।
गुजिया के हैं अलग-अलग नाम
इस स्वादिष्ट मिठाई गुजिया (सूजी की गुजिया रेसिपी) को देशभर में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जहां महाराष्ट्र में इसे करंजी कहा जाता है वहीं गुजरात में इसे घुघरा कहा जाता है, बिहार में इस मिठाई को पेड़किया नाम दिया गया है वहीं उत्तर भारत में से गुजिया और गुझिया नाम से जानी जाती है।
अलग जगहों में गुजिया के रूप हैं अलग
वैसे तो मुख्य रूप से गुजिया को बनाने के लिए मैदे को मोइन डालकर डो तैयार किया जाता है और इसकी लोई को पूड़ी की तरह से बेलकर उसमें खोया या भुनी हुई सूजी को उसमें चीनी मिलाकर भरा जाता है। फिर इस पूड़ी को मोड़कर किनारों को दबाकर गुजिया वाला आकार दिया जाता है। लेकिन कुछ और जगहों पर इसे अलग ढंग से भी बनाया जाता है। इसके ऊपर चाशनी की परत भी चढ़ाई जाती है और कुछ जगह गुजिया में ऊपर से रबड़ी मिलाकर भी खाई जाती है।
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जब गुजिया बनाने के लिए महिलाएं बढ़ाती थीं नाखून
गुजिया के इतिहास में एक दिलचस्प बात ये सामने आती है कि एक समय ऐसा था जब औरतें गुजिया बनाने के लिए काफी दिनों पहले से ही अपने नाखून बढ़ाया करती थीं। तब औरतों का मानना था कि बढ़े हुए नाखूनों से गुजिया को आसानी से गोंठकर सही आकार दिया जा सकता है। पारंपरिक रूप से इसे हाथों से गोठ कर ही बनाया जाता था लेकिन अब इसे बनाने के कई अन्य तरीके भी हैं जैसे इसे सांचे से भी बनाया जाता है।
होली में क्यों बनाई जाती है गुजिया
दरअसल होली में गुजिया (होली पर इंटरनेशनल फ्लेवर वाली ये खास गुजिया बनाना सीखें) बनाने का चलन सदियों पुराना है। ऐसा माना जाता है कि होली में सबसे पहले ब्रज में ठाकुर जी यानी कृष्ण भगवान को इस मिठाई का भोग लगाया जाता है। होली के त्योहार में इसे विशेष रूप से तैयार किया जाता है क्योंकि इसका चलन ब्रज से ही आया और ब्रज में ही होली के दिन पहली बार गुजिया का भोग लगाया गया था। तभी से ये होली की मुख्य मिठाई के रूप में सामने आयी। हालांकि अब ये मिठाई होली के अलावा भी कई त्योहारों जैसे दिवाली और बिहार में छठ पूजा में भी बनाई जाती है।
इस प्रकार गुजिया का इतिहास काफी पुराना है और अपनी खूबियों और बेहतरीन स्वाद की वजह से ये हमारे त्योहारों का मुख्य हिस्सा बन गयी। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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