जानिए ग्‍ल‍िशियर से होकर गुजरने वाली दुनिया की पहली सड़क कैसी होगी

लद्दाख में ग्लेशियर से होकर गुजरने वाली दुनिया की पहली सड़क तैयार  की जा रही है। क्‍या है इसकी खासियत आइए जानते हैं। 

World first road on glacier built in ladakh
ग्‍लेश्यिर्स के बारे में आपने कई बार सुना होगा। टीवी पर आपने कई बार ग्‍लेश्यिर्स की तस्‍वीरे और वीडियो देखे भी होंगे। यहां तक पहुंचना सबके बस की बात नहीं होती क्‍योंकि यहां का मौसम हमेशा सही नहीं रहता। इसलिए ग्‍लेश्यिर्स को वास्‍तविकता में देखाना सबको नसीब नहीं होता और बहुत लोगों का यह केवल सपना बन कर रह जाता है। मगर अब इस सपने को साकर करने की कोशिश की जा रही है और लद्दाख से उपर मौजूद ग्‍लेश्यिर्स तक पहुंचने के लिए पक्‍की सड़क बनाई जा रही है। ऐसा कहा जा रहा है कि यह दुनिया की पहली ऐसी सड़क होगी जो ग्‍लेशियर्स पर होगी।

World first road on glacier built in ladakh

कैसे बनाई जा रही है सड़क

सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के बहादुर कर्मी खराब मौसम में भी दिन रात एक करके इस सड़को तैयार करने में जुटे हुए हैं। बेहद ठंड और बफीर्ले तूफान के बाद भी लद्दाख में ग्लेशियर से होकर गुजरने वाली दुनिया की पहली सड़क तैयार की जा रही है। इस सड़की की खासियत है कि इस सड़क पर मोटर वाहन भी चल सकेंगे, जो कि सड़क बनने से पहले मुमकिन नहीं था। यह सड़क ‘हिमांक’ परियोजना के तहत बनाई जा रही है। बीआरओ के एक अधिकारी से एक प्रमुख मीडिया हाउस ने इंटरव्‍यू में इस सड़क से जुड़े कई सवाल किए हैं। अधिकारी ने बताया, ‘बीआरओ दुनिया की सबसे ऊंची ग्लेशियर को काटकर सड़क तैयार कर रहा है जिस पर मोटर वाहन भी चल सकेंगे। यह क्षेत्र जम्मू कश्मीर में पूर्वी लद्दाख में है।

World first road on glacier built in ladakh

क्‍या है सड़क की खासियत

इस सड़की सबसे बड़ी खासियत है कि इसे 17,800 फुट की ऊंचाई पर बनाया जा रहा है। इतनी उंची यह विश्‍व की पहली सड़क होगी। इस‍के साथ ही इस सड़क के बनने के बाद सासोमा से सासेर ला के बीच संपर्क का एक अहम माध्यम तैयार हो जाएगा, अभी तक सासोमा और सासेर के बीच संपर्क स्‍थापिक करने के लिए कोई भी सड़क मार्ग नहीं था। खासतौर पर सर्दियों के महीने में इन दोनों जगहों के बीच संपर्क बाकी हिस्सों से कट जाता है। सासेर ला को सासेर दर्रा के नाम से भी जाना जाता है। काराकोरम पर्वतीय श्रृंखला में पडऩे वाला यह सबसे ऊंचा दर्रा है। लद्दाख में लेह से तारिम नदीघाटी के यारकंद को जोडऩे वाला यह सबसे पुराना काफिला मार्ग है। अधिकारी ने बताया, ‘चूंकि सर्दियों में यहां तापमान शून्य से 50 डिग्री सेल्सियस नीचे तक चला जाता है और गर्मियों में यह 12 डिग्री सेल्सियस तक बना रहता है तो ऐसी स्थिति में काम करना बेहद चुनौतीपूर्ण है।’

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किस तरह के मौसम का करना पड़ रहा है सामना

अधिकारी बताते हैं, ‘हाड़ मास को कंपा देने वाली बर्फीली हवाओं के अलावा अनदेखे हिम दरारों और हिमस्खलन का भी खतरा यहां हमेशा मंडराता रहता है। जरा सी भूल जिंदगी को खतरे में डाल सकती है।

बर्फ जब पिघलती है तब ग्लेशियर धीरे-धीरे दूर हटने लगते हैं, जो निर्माण में परेशानी को और बढ़ा सकते हैं। इन सबका सामना यहां पर सड़क बनाने में जुटे कर्मी कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि हमारे पास ऐसे चंद ही महीने ही हैं जिनमें निर्माण कार्य शुरू किया जा सकता है। इसीलिए लक्ष्य को पाने के लिए अधिकारियों ने योजनाओं और रणनीतियों के साथ पूरी तैयारी की है।

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