देशभर में कोरोना संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है। इस वायरस से रोजाना संक्रमित होने वालों का आंकड़ा साढ़े तीन लाख से ज्यादा पहुंच गया है। इसके चलते देश के कई राज्यों में नाइट कर्फ्यू या लॉकडाउन लगाया गया है। कोरोना संक्रमण की वजह से ऐसी सभी गतिविधियों पर रोक लगाई है, जिसमें ज्यादा लोगों के जुटने की संभावना हो।
इसी कड़ी में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने गुरूवार को अगले महीने होने वाली चार धाम की यात्रा रद्द करने की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि ‘कोरोना महामारी के बीच चार धाम यात्रा का संचालन संभव नहीं है। हालांकि, हिमालयी धामों के कपाट अपने समय पर ही खोले जाएंगे, लेकिन वहां केवल पुजारी ही पूजा करेंगे और बाकी लोगों के लिए यात्रा बंद रहेगी।।’
Uttarakhand government has suspended Char Dham Yatra this year in view of #COVID19 situation in the state. Only priests of the four temples will perform rituals and puja: Chief Minister Tirath Singh Rawat
— ANI (@ANI) April 29, 2021
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14 मई को अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री और यमनोत्री के कपाट खुलेंगे। जबकि रूद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ के कपाट 17 मई और बद्रीनाथ के कपाट 18 मई को खोले जाएंगे। उत्तराखंड राज्य में यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को छोटा धाम के रूप में जाना जाता है।
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पुराणों के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु बेर के बगीचे में ध्यान लगाने आते थे। तभी वहां ऋषि नारद अवतरित होते हैं और भगवान विष्णु को सांसारिक सुखों से मिलने वाले पापों से अवगत करवाते हैं। भगवान विष्णु से माता लक्ष्मी दूरी सहन नहीं कर पाती हैं और खुद को बेर के पेड़ में बदल लेती हैं। माता लक्ष्मी बेर के पेड़ में बदलकर भगवान विष्णु को छाया देती हैं और उन्हें सूरज की किरणों से बचाती हैं। जब भगवान विष्णु को यह बात पता चलती है तो वह बहुत प्रसन्न होते हैं और माता लक्ष्मी को वचन देते हैं कि आज से यह स्थान उनके नाम बैरीनाथ के नाम से जाना जाएगा। बाद में इस जगह का नाम बद्रीनाथ पड़ गया।
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केदारनाथ मंदिर का निर्माण महाभारत काल में किया गया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांचों पांडव भगवान श्रीकृष्ण से चर्चा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हे प्रभु हमने युद्ध में अपने भाईयों और गुरू का वध किया है क्या हमें पाप लगेगा? भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम सब निश्चित तौर पर पाप के भागीदार हो और इससे केवल भगवान शिव ही मुक्ति दिलवा सकते हैं। प्रभु के बात सुनकर पांचों पांडव द्रौपदी के साथ भगवान शिव की खोज में निकल गए। लेकिन उन्हें कहीं पर भी भोलेनाथ नहीं मिले। पांडव भी शिव जी के दर्शन की ठान चुके थे।
उसके बाद पांडव शिव जी की खोज में हिमालय पर जा पहुंचे। शिव जी पांडवों को देखकर छिप गए और बैल का रूप धारण कर पांडवों पर आक्रमण करते हैं। वहीं, मौजूद भीम क्रोधित बैल से युद्ध करते हैं। तभी बैल का सिर चट्टान में फंस जाता है। गदाधारी भीम जैसे ही बैल की पूंछ खीचते हैं उसका धड़ सिर से अलग हो जाता है। जहां पर बैल का धड़ गिरता है उसी जगह शिवलिंग से शिव जी प्रकट होते हैं और पांडवों को पापों से मुक्त करते हैं। केदारनाथ में आज भी इसी शिवलिंग की पूजा की जाती है।
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Image Credit- tourmyindia.com
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