आज हम आपको भारत के एक धार्मिक स्थल के बारे में बताने जा रहें है, जिसके बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं,जो अपने आप में ख़ास है और इससे जुडी गाथाएं बेहद दिलचस्प हैं। आज हम आपको उत्तराखण्ड के गढवाल के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित तुंगनाथ मंदिर बारे में बताने जा रहे हैं। तुंगनाथ मंदिर 3460 मीटर की ऊंचाई पर तुंगनाथ पर्वत पर बना है और पंच केदारों में सबसे ऊंचाई पर स्थित है। हिमालय की ख़ूबसूरत प्राकृतिक सुन्दरता के बीच बना तुंगनाथ का मन्दिर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। पंचकेदारों में द्वितीय केदार के नाम प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर भगवान शिव का सबसे अधिक ऊंचाई वाला धाम है। समुद्र तल से तेरह से चौदह हजार फुट की ऊंचाई पर बसा ये क्षेत्र, गढवाल हिमालय के सबसे सुंदर स्थानों में से एक है।
तुंगनाथ मंदिर के पीछे का रहस्य, क्यों पांडवों से खफा थे शिव चलिए जानते है देवों के देव महादेव के इस तुंगनाथ मंदिर की स्थापना कैसे हुई, यह बात किसी शिवभक्त से छिपी नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पाण्डवों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया गया था, जो कि कुरूक्षेत्र में हुए नरसंहार के कारएा पाण्डवों से रूष्ट थे। कहा जाता है, कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपनों को मारने के बाद व्याकुल थे। इस व्याकुलता को दूर करने के लिए वे महर्षि व्यास के पास गए और व्यास ने उन्हें बताया कि अपने भाईयों और गुरुओं को मारने के बाद वे ब्रह्म हत्या के कोप में आ चुके हैं, उन्हें सिर्फ महादेव शिव ही बचा सकते हैं।
जिसके बाद व्यास की सलाह पर पाण्डव शिव से मिलने हिमालय पहुंचे लेकिन शिव महाभारत के युद्ध के चलते नाराज थे। इसलिए उन सभी को भ्रमित करके भैंसों के झुंड के बीच भैंसा का रुप धारण कर वहां से निकल गए। लेकिन पांडव नहीं माने और शिव का पीछा किया। इस तरह शिव ने अपने शरीर के हिस्से पांच जगहों पर छोड़े। ये स्थान केदारधाम यानि पंच केदार कहलाए। शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने ही इस मंदिर की स्थापना की थी। पंचकेदारों में यह मंदिर सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान है। तुंगनाथ की चोटी तीन धाराओं का स्रोत है, जिनसे अक्षकामिनी नदी बनती है।
भगवान राम से भी जुडा है तुंगनाथ
प्राचीन शिव मंदिर तुंगनाथ से डेढ किलोमीटर की ऊंचाई चढने के बाद चंद्रशिला चोटी है जो भगवान राम को बहुत पंसद था। जहां से ठीक सामने छू लेने जैसे विराट हिमालय की सुदंर छटा का आनंद लिया जा सकता हैं। कहते हैं कि यहां रामचंद्र ने अपने जीवन के कुछ क्षण एकांत में बिताए थे। पुराणों में कहा गया है कि रामचंद्र शिव को अपना भगवान मानकर पूजते थे। लंकापति रावण का वध करने के बाद राम ने तुंगनाथ से डेढ़ किलोमीटर दूर चंद्रशिला पर आकर ध्यान किया था।
जिसने चोपता तुंगनाथ नहीं देखा, उसका जीवन व्यर्थ है
चोपता-तुंगनाथ की ओर बढते हुए रास्ते में बांस और बुरांश का घना जंगल और कस्तूरी मृग प्रजनन फार्म भी ऐसे दृश्य पर्यटकों को लुभाते हैं। यहां पर कस्तूरी मृगों की सुंदरता को नजदीकी से देखा जा सकता है। मार्च-अप्रैल के महीने में इस पूरे रास्ते में बुरांश के फूल अपनी अनोखी छटा बिखेरते हैं। जनवरी-फरवरी के महीने में ये पूरा इलाका बर्फ की चादर से ढका रहता है। सर्दियों के वक्त बर्फ पड़ने की वजह से शिवलिंग को यहां से चोपता लाया जाता है। इस दौरान ग्रामीण पूरे ढोल के साथ शिव को ले जाते हैं और गर्मियों में वापस रखते हैं।
ब्रिटिश शासनकाल में कमिश्नर एटकिन्सन ने कहा था कि जिसने अपने जीवन में चोपता नहीं देखा, उसका जीवन व्यर्थ है। एटकिन्सन की बात भले ही कुछ लोगों को गलत लगे लेकिन यहां का सौन्दर्य अद्भुत है, इसमें किसी को संदेह नहीं है। किसी पर्यटक के लिए यह यात्रा किसी रोमांच से कम नहीं है।तुंगनाथ मंदिर चोपता से तुंगनाथ तक तीन किलोमीटर का पैदल मार्ग बुग्यालों की सुंदर दुनिया से साक्षात्कार कराता है। चारों ओर पसरे सन्नाटे में ऐसा लगता है मानो आप और प्रकृति दोनों यहां आकर एकाकार हो उठे हों।
तुंगनाथ से नीचे जंगल की खूबसूरत रेंज और घाटी का जो नजारा उभरता है, वो बहुत ही अनूठा है। चोपता से करीब आठ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद देवहरयिा ताल पहुँचा जा सकता है जो कि तुंगनाथ मंदिर के दक्षिण दिशा में है। इस पारदर्शी सरोवर में चौखंभा, नीलकंठ आदि हिमाच्छादित चोटियों के प्रतिबिंब स्पष्ट नजर आने लगते हैं।
कब जाएं और कैसे जाएं
यहां आने के लिए पहले ऋषिकेश आएं। ऋषिकेश के लिए नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून है। देहरादून के लिए सभी बड़ी सिटीज से फ्लाइट्स मिलती हैं। यहां से चोपता के लिए टैक्सी या बस से जा सकते हैं। चोपता से नजदीकी स्टेशन ऋषिकेश 209 किमी है। यहां लगभग सभी सिटीज से ट्रेन्स आती हैं। यहां दो रास्तों में से किसी भी एक से यहाँ पहुँचा जा सकता है, पहला ऋषिकेष से गोपेश्वर होकर और दूसरा ऋषिकेष से ऊखीमठ होकर।
जनवरी-फरवरी के महीनों में आमतौर पर बर्फ की चादर ओढ़े इस स्थान की यात्रा मई से नवंबर तक की जा सकती है। इन महीनों में यहां मीलों तक फैले मखमली घास के मैदान और उनमें खिले फूलों की सुंदरता देखने योग्य होती है। हालांकि यात्रा बाकी समय में भी की जा सकती है लेकिन बर्फ गिरी होने की वजह से मोटर या गाडी का सफर कम और ट्रैक ज्यादा होता है। जाने वाले लोग जनवरी व फरवरी के महीने में भी यहां की बर्फ का मजा लेने जाते हैं। सबसे विशेष बात ये है, कि पूरे गढ़वाल क्षेत्र में ये अकेला क्षेत्र है जहां बस द्वारा ‘बुग्यालों’ की दुनिया में सीधे प्रवेश किया जा सकता है। यानि यह श्रद्धालुओं और पर्यटकों पहुंच में है। यह पूरा पंचकेदार का क्षेत्र कहलाता है।कहते हैं कि तुंगनाथ में 'बाहु' यानि शिव के हाथ का हिस्सा स्थापित है। यह मंदिर करीब एक हजार साल पुराना माना जाता है। इस महाशिवरात्रि हिमालय की वादियों में बसे, लॉर्ड शिवा टैम्पल तुंगनाथ जरूर जाएं।
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