ऐसा माना जाता है कि सावन का महीना भगवान शिव के लिए होता है। इसलिए बहुत सारे शिव भक्त इस महीने में हर सोमवार भगवान शिव का व्रत रखते हैं। मगर यह व्रत तब ही सफल होता है जब इस दौरान किसी ज्योतिर्लिंग की पूजा की जाए। वैसे तो देश भर में 12 ज्योतिर्लिंगों को हिंदू धर्म में मान्यता मिली है। इन सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में सब की अपनी अलग मान्यता है। मगर, आज हम आपको इनमें से एक ऐसे जयोतिर्लिंग के बारे में बताएंगे जो मध्य प्रदेश के फेमस शहर इंदौर से करीब 77 किमी दूर ओंकारेश्वर में स्थापित है।
जी हां, इस जगह का नाम ओंकारेश्वर है। ऊँ शब्द का हिंदू धर्म के शास्त्रा और वेदों में हर जगह जिक्र मिलता है। मगर देश में एक ऐसी जगह भी है जो इस शब्द के आकार में नर्मादा नदी के ऊपर तैरती हुई प्रतीत होती है। यह जगह है ओंकारेश्वर। यहां दो रूपों में ज्योतिर्लिंग की पूजा की जाती है पहली ओंकारेश्वर और दूसरी ममलेश्वर।
कैसे बना ऊँ का आकार
शिव महापुराण में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को परमेश्वर लिंग कहा गया है। यह ज्योतिर्लिंग शास्त्रों में पवित्र मानी गई नदी नमर्दा के टापू पर स्थापित है। यह टापू नर्मदा की दो धाराओं में विभाजित होने की वजह से बना है। इस टापू को शिवपुरी भी कहा जाता है। नदी की धाराओं से पहाड़ों में आए कटाव के कारण इस टापू का आकार ऊँ के शेप में बना हुआ है।
कई हैं मान्यताएं
इस मंदिर से जड़ी शास्त्रों में कई कहानियां हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में शिव भक्त कुबेर ने तपस्या की थी। शिवलिंग की स्थापना भी कुबेर ने ही की थी। कुबेर की तपस्या से खुश हो कर भगवान शिव ने कुबेर को देवताओं का धनपति बनाया था। दीवाली में लक्ष्मी गणेश पूजन के वक्त भगवान कुबेर जी की भी पूजा इसी लिए की जाती है। यहां पर एक कुबेर जी का मंदिर भी बना हुआ है। इस मंदिर के बाजू से कावेरी नदी बह रही है। ऐसी मान्यता है कि यहां पर कावेरी और नर्मदा नदी का संगम होता है। अगर आप यहां जा रही हैं तो ओमकार पर्वत का चक्कर लगाते हुए इस संगम की एक परिक्रमा जरूर करें।
नमर्दा जी करती है जलाभिषेक
यहां पर बने ज्योतिर्लिंग के आसपास हमेशा पानी भरा रहता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां पर नर्मदा नदी का पानी जमीन से निकलता रहता है, जो ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक करता है। ओंकारेश्वर लिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा, तराशा या बनाया हुआ नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है। इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है। प्राय: किसी मन्दिर में लिंग की स्थापना गर्भ गृह के मध्य में की जाती है और उसके ठीक ऊपर शिखर होता है, किन्तु यह ओंकारेश्वर लिंग मन्दिर के गुम्बद के नीचे नहीं है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि मन्दिर के ऊपरी शिखर पर भगवान महाकालेश्वर की मूर्ति लगी है। कुछ लोगों की मान्यता है कि यह पर्वत ही ओंकार रूप है।
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