कार्तिक पूर्णिमा पर इन जगहों पर स्नान करने से पूरी होती है मन्नत

कार्तिक पूर्णिमा वाले दिन गंगा स्नान को खास महत्व दिया गया है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से सभी पाप धूल जाते हैं।

ganga ghat snan

कार्तिक पूर्णिमा वाले दिन गंगा स्नान को खास महत्व दिया गया है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से सभी पाप धूल जाते हैं और मन्नतें भी पूरी होती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार साल का आठवां महीना कार्तिक महीना होता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा कहलाती है। इस दिन इंडिया के तमाम गंगा घाटों पर हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, साथ ही इस दिन गंगा घाटों की रौनक ही अलग होती है।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही देव दीपावली मनाई जाती है। इस बार यह पर्व 4 नवंबर को मनाया जाएगा। दिवाली के 15 दिन बाद देव दीपावली मनाई जाती है। पूरे भारत में ही कार्तिक पूर्णिमा और देव दीपावली की रौनक होती है लेकिन खासतौर पर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में इसकी रौनक नजर आती है। ऐसा माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवी-देवता दिवाली मनाते हैं और इस दिन सभी देवता काशी में आते हैं। देव दीपावली से कुछ दिन पहले वाराणसी में मेले लगने भी शुरू हो जाते हैं।

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इन सब घाटों पर होती है अलग ही रौनक

ganga ghat

उत्तर प्रदेश के तमाम गंगा घाटों पर हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ गंगा स्नान के लिए उमड़ती है। ऐसे में वाराणसी की बात की जाए तो भारत के सबसे पुराने शहरों में से एक वाराणसी हिंदू धर्म की राजधानी भी कही जा सकती है। यहां के गंगा घाटों को बेहद पुण्य माना जाता है। वाराणसी में कई ऐसे घाट हैं जहां देश भर से लोग गंगा में डुबकी लगाने के लिए आते हैं। विदेशियों के लिए भी वाराणसी के गंगा घाट बेहतरीन टूरिस्ट प्लेस है। वाराणसी के लगभग सौ घाटों में से कुछ प्रमुख घाट हैं जहां देशी-विदेशी दोनों ही देव दीपावली पर इन घाटों की रौनक देखने के लिए पहुंचते हैं। उन घाटों के नाम हैं केदार घाट, प्रयाग घाट, अस्सी घाट, ललिता घाट, सिंधिया घाट, तुलसी घाट, हरिश्चन्द्र घाट, मुंशी घाट, अहिल्याबाई घाट, नारद घाट, चेतसिंह घाट, दशाश्वमेध घाट।

ganga ghat inside

पंचगंगा घाट है खास

वैसे तो इस दिन सभी गंगा घाटों पर हजारों दीए जलाए जाते हैं लेकिन पंचगंगा घाट की रौनक ही अलग होती है। ऐसा कहा जाता है कि देव दीपावली की परम्परा सबसे पहले पंचगंगा घाट पर 1915 में हजारों दीए जलाकर शुरू की गई थी।

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