ऐसा माना जाता है कि बारिश के मौसम में ग्वालियर घूमने का अपना ही एक अलग मजा है क्योंकि इस मौसम में प्रकृति की सुंदरता का एक अलग ही रूप दिखाई देता है। ग्वालियर में कई ऐसी बड़ी शख्सियतों ने जन्म लिया जिनके चर्चे विश्वभर में होते हैं जैसे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी।
तो चलिए आपको बताते हैं ग्वालियर की फेमस जगहों के बारे में।
ग्वालियर फोर्ट
ग्वालियर फोर्ट मध्य प्रदेश में ग्वालियर के पास स्थित है। ये फोर्ट एक सुरक्षित बनावट के के साथ 2 भागों में बंटा हुआ है, एक भाग गुजरी महल और दूसरा मन मंदिर। इसे 8 वी शताब्दी में राजा मान सिंग तोमर ने बनवाया था। इतिहास में बहुत से राजाओं ने इस किले पर अलग-अलग समय पर नियंत्रण रखा है। गुजरी महल को रानी मृगनयनी के लिए बनवाया गाया था। ये अब एक ऐतेहासिक संग्रहालय के रूप में जाना जाता है। ‘शुन्य’ से जुड़े हुए सबसे पुराने दस्तावेज इसी किले के ऊपर की और जाने वाले रास्ते पर एक मंदिर में मिले थे।
जय विलास पैलेस
सिंधिया घराने का महल जय विलास पैलेस अपनी नक्काशियों के लिए देश-विदेश में जाना जाता है। जय विलास पैलेस का निर्माण महाराजा जयाजी राव सिंधिया ने आजादी से पहले साल 1874 में कराया था।
इस पैलेस की खास बात यह है कि यहां के दरबार हॉल में सात-सात टन वजनी बेल्जियम के दो झुमर लगे हैं जो दुनिया का सबसे वजनी झुमरों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि इतना वजनी झुमर लगवाने से पहले यूरोपियन आर्किटेक्ट माइकल फिलोसे ने महल के छत पर हाथियों को चढ़ाकर देखा था कि छत इन हाथियों का वजन सह सकता है या नहीं।
मान मंदिर पैलेस
मान मंदिर पैलेस से कई कहानियां जुडी हुई हैं, ये पैलेस हिंदू वास्तुकला के साथ मिश्रित मध्ययुगीन वास्तुकला का अच्छा उदाहरण है। इस संरचना में चार मंजिलें हैं जिसमें से दो मंजिलें भूमिगत हैं। इसका आकार गोलाकार है। इसका निर्माण तोमर राजवंश के राजा मान सिंह तोमर ने 15 वीं शताब्दी में करवाया था।
ये पैलेस अनेक राजवंशों के हाथ से होकर गुज़रा जैसे राजपूत, दिल्ली सल्तनत, मुग़ल, मराठा, ब्रिटिश और सिंधिया। इसे पेंटेड हाउस भी कहा जाता है जिसमें फूलों, पत्तियों, जानवरों, मनुष्यों के रंगबिरंगे चित्र बने हुए हैं।
तेली का मंदिर
तेली का मंदिर ग्वालियर किले में स्थित है। इसे तेल के आदमी का मंदिर कहा जाता है। यह एक बहुत बड़ी संरचना है जिसकी ऊंचाई 100 फुट है। इसकी छत की वास्तुकला द्राविड़ीयन शैली की है जबकि नक्काशियां और मूर्तियां उत्तर भारतीय शैली की हैं। इसका निर्माण 11 वीं या 8 वीं शताब्दी में हुआ था।
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