नवम्बर को गुरुपुरब है, कार्तिक पूर्णिमा को सिख घर्म के पहले गुरु श्री गुरु नानक देव का प्रकाश उत्सव मनाया जाता है। इस दिन गुरुद्वारों की रौनक देखने लायक होती है। सिख धर्म के प्रवर्तक श्री गुरु नानक देव का जन्म 15 अप्रैल, 1469 को तलवंडी नामक जगह पर हुआ था। वर्तमान में यह जगह पाकिस्तान में है। उनके जन्म के बाद ही तलवंडी का नाम ननकाना पड़ा।
गुरुपुरब वाले दिन गुरुद्वारों की रौनक देखने के लिए अच्छी-खासी भीड़ गुरुद्वारे पहुंचती है, लेकिन क्या आप जानते हैं वर्ल्ड फेमस गुरुद्वारे कौन से हैं ? हो सकता है आप जानते हों। ऐसे में आपके दिमाग में केवल इंडिया का नाम आ रहा होगा, पर ऐसा नहीं है। इंडिया में बेहद ही सुन्दर गुरुद्वारे हैं पर दुबई और लंदन भी कुछ कम नहीं है। चलिए हम आपको बताते हैं कि इंडिया के साथ-साथ दुबई और लंदन का कौन सा गुरुद्वारा वर्ल्ड फेमस है।
गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा (लंदन)
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यह गुरुद्वारा लंदन के पार्क एवेन्यू के पास साउथ हॉल में बना हुआ है। 50वें दशक में लंदन पहुंचे सिखों ने इस गुरुद्वारे को शुरू किया था। इस गुरुद्वारे को ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है और इसके संगमरमर का गुंबद सोने के पानी से ढका गया है। इस गुरुद्वारे में एक साथ 3000 भक्त रह सकते हैं। नमस्ते लंदन और पटियाला हाउस जैसी कई सुपरहिट फिल्मों की शूटिंग भी यहां की गई थी।
गुरुद्वारा ननकाना साहिब (पाकिस्तान)
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गुरुपुरब वाले दिन बड़ी सख्या में लोग इस गुरुद्वारे में आते हैं। इस दिन भारत ही नहीं यूरोप से लेकर दुबई तक लोग ननकाना साहिब गुरुद्वारे पहुंचते हैं। गुरुद्वारा ननकाना साहिब सिख धर्म का एक प्रमुख गुरुद्वारा है। इसका निर्माण महाराजा रणजीत सिंह द्वारा श्री गुरु नानक देव के जन्म स्थान को चिह्नित करने के लिए बनावाया गया था इस कारण से ये गुरुद्वारा वर्ल्ड फेमस है।
गुरुद्वारा हरिमन्दिर साहिब (इंडिया)
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हरिमन्दिर साहिब गुरुद्वारा भारत के सबसे फेमस गुरुद्वारों में से एक है। पंजाब के अमृतसर में स्थित इस गुरुद्वारे को दरबार साहिब, स्वर्ण मंदिर और गोल्डन टेंपल भी कहा जाता है। सिख इतिहास के अनुसार ऐसा माना जाता है कि सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव जी ने इसकी नींव रखवाई थी। इस गुरुद्वारे के चार दरवाजे इस बात का प्रतीक हैं कि यह गुरुद्वारा सभी धर्म और आस्था के लोगों के लिए खुला है।
गुरुद्वारा बंगला साहिब (इंडिया)
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गुरुद्वारा बंगला साहिब दिल्ली में कनॉट प्लेस के पास स्थित है। छठे गुरु श्री गुरु हरकृष्ण देव 1664 में वे यहां आकर रुके थे। तभी से इसे बंगला साहिब गुरुद्वारे के नाम से जाना जाता है। इस गुरुद्वारे में स्थित तालाब के पानी को अमृत के समान पवित्र माना जाता है। इस गुरुद्वारे का गुंबद सोने का है।
गुरुद्वारा नानक दरबार (दुबई)
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गुरुद्वारा नानक दरबार दुबई में स्थित है। गल्फ देशों में यह सबसे बड़ा गुरुद्वारा है। इसे 17 जनवरी 2012 को शुरू किया गया था। इसे इटैलियन मार्बल से बनाया गया है और इसमें एक 5 स्टार किचन भी है।
गुरुद्वारा श्री हेमकुंट साहिब (इंडिया)
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हेमकुंट साहिब गुरुद्वारा उत्तराखंड के चमोली जिला में स्थित है, जो कि भारत में स्थित सिखों का एक तीर्थ स्थान है। हेमकुंट एक बर्फ की खूबसूरत झील है जो सात विशाल पर्वतों से घिरी हुई है। यह गुरुद्वारा दसवें सिख गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह को समर्पित है।
हजूर साहिब गुरुद्वारा (इंडिया)
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गुरुद्वारा हजूर साहिब सिखों के 5 तख्तों में से एक है। यह गुरुद्वारा गोदावरी नदी के किनारे स्थित है। इस गुरुद्वारे के अंदर के कमरे को अन्गिथा साहिब कहा जाता है। सिख घर्म के इतिहास के अनुसार इसी स्थान पर 1708 में गुरु गोबिंद सिंह का अंतिम संस्कार किया गया था। महाराजा रणजीत सिंह के आदेश के बाद इस गुरूद्वारे का निर्माण सन 1832-1837 के बीच हुआ था।
तख़्त श्री दमदमा साहिब (इंडिया)
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गुरुद्वारा श्री दमदमा साहिब सिखों के पांच तख्तों में से एक है। ये गुरुद्वारा बठिंडा से 28 किमी दूर तलवंडी सबो गांव में स्थित है। मुगल अत्याचारों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के बाद श्री गुरु गोबिंद सिंह यहां आकर रुके थे। इस कारण से इसे ‘गुरु की काशी’ के रूप में भी जाना जाता है।
गुरुद्वारा पंजा साहिब (हसन अब्दाल, पाकिस्तान)
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गुरुद्वारा पंजा साहिब सिखों का तीसरा सबसे पवित्र धार्मिक स्थल माना जाता है। यहां तीन दिन चलने वाले बैसाखी मेले के लिए पाकिस्तान के अलावा इंडिया और यूरोप से भी सिख पहुंचते हैं। श्री गुरु नानक देव जब भाई मरदाना के साथ हसन अब्दाल शहर पहुंचे थे तो वहां अच्छा मौसम और वातावरण देख दोनों कीर्तन करने लगे। पास ही एक पहाड़ी पर मीठे पानी के झरने के किनारे वली कंधारी नामक फकीर का डेरा था। भाई मरदाना को प्यास लगी तो श्री गुरु नानक देव ने उसे कंधारी के पास भेजा, लेकिन कंधारी ने उसे पानी पिलाने से इनकार कर दिया। भाई मरदाना की प्यास बुझाने के लिए गुरु नानक देव जी ने पास ही पड़े एक बड़े पत्थर को हटाया तो उसके नीचे से मीठे पानी का झरना फूट पड़ा। श्री गुरु नानक देव ने पत्थर को हाथों से रोक दिया। पत्थर वहीं के वहीं थम गया और श्री गुरुनानक देव के पंजे के निशान उस पत्थर पर गड़ गए। इसी जगह पर बाद में पंजा साहिब गुरुद्वारे का निर्माण किया गया।
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