क्या आपके मन में कभी यह सवाल आया है कि आखिर भगवान गणेश को एक हाथी का सिर ही क्यों लगाया गया। इसके सिवा उन्हें शेर , गाय, या किसी अन्य जीव जंतु का सिर भी तो लगाया जा सकता था। पुराणों में गणेशजी के हाथी का सिर लगाए जाने को लेकर दो कथाओं का वर्णन मिलता है।
आज के इस आर्टिकल में हम ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानेंगे कि आखिर क्यों उन्हें एक हाथी का सिर ही लगाया गया।
पंडित अरविंद त्रिपाठी कहते हैं कि एक बार माता पार्वती स्नान करने गई थी और उन्होंने अपने शरीर पर लगी हल्दी से एक पुतले का निर्माण किया था, उस पुतले को देखकर माता पार्वती को इतना ज्यादा स्नेह आया कि उन्होंने पुतले में प्राण डाल दिए। जिससे इस पुतले से विनायक पैदा हुए।
इसके बाद माता पार्वती ने उन्हें अपना पुत्र मान लिया और आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं यहां हूं तब तक तुम द्वार पर बैठ जाओ और किसी को अंदर प्रवेश मत करने देना, लेकिन कुछ समय बाद ही भगवान शिव वहां पहुंच गए।
भोलेनाथ तो वहां अपनी अर्धांगिनी माता पार्वती से मिलने आए थे। उन्हें यह नहीं ज्ञात था की विनायक उनके ही पुत्र है। (भगवान शिव के मंत्र)
जैसे ही भोलेनाथ गुफा में प्रवेश करने लगे तो विनायक ने उन्हें वहीं रोक दिया और माता पार्वती से मिलने नहीं दिया।
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भोलेनाथ को ये बात स्वीकार नहीं थी कि कोई उन्हें उनकी पत्नी से मिलने से रोके, और इसी वजह से दोनों के बीच विवाद हो गया और यही विवाद युद्ध में बदल गया। जिसके बाद विवाद इतना ज्यादा बढ़ गया कि क्रोध में शिवजी ने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर काट डाला।
जब माता पार्वती ने गुफा के बाहर शोर सुना तो वो फ़ौरन गुफा के बाहर आई। वह अपने पुत्र विनायक को मूर्छित हालत में देखा क्रोध में विलाप करने लगीं। उन्होंने सबसे पूछा कि आखिर किसने मेरे पुत्र के साथ ऐसा दुस्साहस किया।
जब भोलेनाथ को इस बात का ज्ञात हुआ कि विनायक उनके ही पुत्र थे, तो उन्होंने माता पार्वती को शांत करवाते हुए, उन्हे उन्हें वचन दिया कि वो उनके पुत्र को पुनः जीवित कर देंगे।
इसके लिए उन्होंने अपने गणों को उत्तर दिशा में भेजा और आदेश दिया कि आपको रास्ते में जो भी जीव पहले मिले उसका सिर काट कर मेरे पास ले आओ। (शिव जी को क्यों नहीं चढ़ाई जाती है हल्दी)
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भगवान विष्णु भी अपनी बहन को दुखी नहीं देख पा रहे थे, इसलिए वह भी इसके लिए निकल गए। भगवान विष्णु को सबसे पहले इंद्रदेव के हाथी ऐरावत ही नजर आ गए।
अब उन्हें आदेश दिया गया था कि जो भी पहले मिले उसका सिर लेकर आओ, इसलिए वह हाथी का सिर काटकर ही भोलेनाथ के पास ले आए। इसके बाद गणेश जी ने हाथी का सिर ही भगवान गणेश पर लगा दिया , और वह फिर से जीवित हो गए।
कहते हैं कि भगवान गणेश जी का मस्तक या सिर कटने के पूर्व उनका नाम विनायक था। परंतु जब उनका मस्तक काटा गया और फिर उन पर हाथी का मस्तक लगाया गया तो सभी उन्हें गजानन कहने लगे। फिर जब उन्हें गणों का प्रमुख बनाया गया तो उन्हें गणपति और गणेश के नाम से बुलाया जाने लगा।
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