सावन का यह महीना भगवान शिव को समर्पित है। इस पूरे माह भर भगवान शिव की पूजा, जप, तप, ध्यान और साधना करते हैं। सावन का यह मास भगवान शिव को बहुत प्रिय है, तभी तो यह पूरा महीना भगवान शिव के भक्तों को बहुत प्रिय है। भगवान शिव के भक्त और साधक इस महीने में व्रत रखते हैं और अपने आराध्य देव शिव को प्रसन्न करते हैं। भगवान शिव के कई स्वरूप और इससे जुड़ी कई सारी कथाएं हैं। भगवान शिव को भोले भंडारी भी कहा जाता है, क्योंकि भगवान मात्र के एक लोटे जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं। इनका स्वभाव बहुत सरल है और यह अपने भक्तों पर बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और उन्हें कष्ट में नहीं देख सकते। ये तो रही भोलेनाथ के बारे में लेकिन क्या आपको पता है कि शिव जी अपने साथ डमरू क्यों रखते हैं? यदि नहीं तो आगे इस लेख में हम अपने एस्ट्रो एक्सपर्ट शिवम पाठक जी से जान लेते हैं।
डमरू के बारे में
डमरू एक वाद्य यंत्र है, जिसका उपयोग संगीत, भजन और कीर्तन में सुर के लिए किया जाता है। वर्तमान में आप इसे बहुत से सन्यासियों के हाथ में देख सकते हैं। इसके अलावा बहुत से लोग अपने पूजा स्थल में भी डमरू रखते हैं। बता दें कि भगवान शिव ने संसार के कल्याण के लिए डमरू धारण किया था, डमरू शंकु आकार में होता है और दोनों के विपरीत दिशा में एक रस्सी और लटकन बंधी हुई होती है। डमरू को बजाने से डुग-डुग या डम-डम की आवाज निकलती है। बता दें कि इसमें 14 तरह के लय होते हैं और इसे घर पर रखने से कई तरह की शुभता मिलती है।
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शिव जी ने कब किया डमरू धारण
धार्मिक ग्रंथों के कथा के अनुसार त्रिदेव ने संसार की रचना कि और उस समय सृष्टि में बहुत शांति थी। संसार में इतना मौन और शांति देख भगवान शिव बहुत निराश हुए, इसके बाद ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु और शिव से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल लेकर मंत्र उच्चारण किया और जल को धरती पर छिड़क दिया। जल छिड़कने के बाद धरती कांपने लगी, मानो ऐसा लगने लगा था कि भूकंप आ गया हो। तब एक स्थान पर लगे पेड़ से मां शारदा का प्रादुर्भाव होता है। मां शारदा के एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक, तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में होती हैं। इसी से जगत का कल्याण होता है और शारदा मां ने त्रिदेव को मधुर नाद से प्रणाम कर अभिवादन किया। इससे पूरे संसार में चंचलता व्याप्त हो गई, जिससे भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए। मां शारदा के मधुर नाद को लय देने के लिए शिव जी ने डमरू बजाया। डमरू और नाद के मिलन से सुर और संगीत को लय मिला। कथाओं में कहा जाता है कि सृष्टि में लय स्थापित करने के लिए शिव जी का अवतरण डमरू के साथ हुआ था, आसान भाषा में कहें तो शिव जी डमरू लेकर अवतरित हुए थे।
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डमरू किस चीज का प्रतीक है?
धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि महादेव जब प्रसन्न होते हैं, तो वह डमरू बजाकर नृत्य करते हैं। डमरू का धून भगवान शिव को बहुत प्रिय है। इसके अलावा जब शिव जी क्रोधित होते हैं, तब भी वे तीव्र और तेज गति में डमरू बजाते हैं, जो मानव जाति के लिए कल्याणकारी नहीं है और उसे शांत करना बहुत मुश्किल है।
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