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हर धर्म और समुदाय में जब भी कोई शुभ काम किया जाता है, तो अलग-अलग रीति-रिवाज और परंपराएं अपनाई जाती हैं। यही रीति-रिवाज और परंपराएं हमारे देश को विविधताओं से भरा बनाती हैं। शादी में भी हर धर्म और समुदाय के लोग अलग-अलग रस्में करते हैं लेकिन, जब भी फेरों की बात आती है तो सात फेरे ही सबसे पहले जुबां पर आते हैं। हिंदू धर्म में सात फेरों का अहम महत्व होता है। ऐसा मान्यता है कि हर फेरे के साथ पति-पत्नी एक-दूसरे को वचन देते हैं। लेकिन, आज हम यहां हिंदू धर्म के बारे में नहीं, बल्कि सिख धर्म के बारे में बात करने जा रहे हैं। सिख धर्म की शादी में सिर्फ चार फेरे लिए जाते हैं।
हिंदू धर्म में अग्नि के चारों तरफ घूमकर फेरे लिए जाते हैं तो वहीं सिख धर्म में गुरुग्रंथ साहिब जी के चारों तरफ घूमकर फेरे लिए जाते हैं। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि सिख धर्म में चार फेरे क्यों लिए जाते हैं और हर फेरे का क्या मतलब होता है? अगर आपके मन में यह सवाल आता है तो इसका जवाब हम आपके लिए लेकर आए हैं। सिख धर्म में चार फेरे क्यों होते हैं और उनका क्या मतलब होता है इस बारे में हमें विमलजीत कौर ने बताया है। विमलजीत कौर की बताई बातों को पंडित श्री राधे श्याम मिश्रा ने भी सही माना है।

सिख धर्म में शादी को आध्यात्मिक साझेदारी के रूप में देखा जाता है, जिसे आनंद कारज की रस्म कहा जाता है। आनंद कारज की रस्म दिन के समय होती है और दंपत्ति गुरु ग्रंथ साहिब की परिक्रमा करते हैं।
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आनंद कारज की रस्म में दूल्हा-दुल्हन चार फेरे लेते हैं, जिसमें से पहले तीन में लड़की आगे रहती है और आखिरी फेरे में दूल्हा आगे रहता है। सिख धर्म में चार फेरों के होने की वजह के लिए ऐसा माना जाता है कि वर और वधू 4 फेरों में वैवाहिक जीवन से जुड़े पहलुओं के बारे में जान लेते हैं।
पहला फेरा: पहला फेरा धार्मिक जीवन के लिए प्रतिबद्धता और पा की अस्वीकृति का प्रतिनिधित्व करता है।
दूसरा फेरा: आध्यात्मिक शुद्धता और गुरु के प्रति समर्पण के जीवन का प्रतीक है।
तीसरा फेरा: वासना पर विजय और दिव्य प्रेम का प्रतीक होता है।
चौथा फेरा: चौथे और आखिरी फेरे में वर-वधु को मोक्ष के बारे में बताया जाता है।

सिख धर्म में आनंद कारज से पहले दूल्हा और दुल्हन दोनों अपने घरों में तैयार होते हैं। दूल्हा पारंपरिक शेरवानी या कुर्ता जैकेट सेट पहनता है। वहीं, दूल्हन लहंगा या सूट पहनती है। इसके बाद दूल्हा बारात लेकर गुरुद्वारा आता है जहां दुल्हन का परिवार स्वागत करता है। इसके बाद वरमाला बदली जाती है और फिर गुरुद्वारे में दूल्हा-दुल्हन गुरुग्रंथ साहिब जी के सामने बैठते हैं और रागी लावां फेरे के गीत गाते हैं। इसी समय दूल्हा-दुल्हन चार फेरे लेते हैं।
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फेरों के बाद आनंद साहिब गाया जाता है और दूल्हा-दुल्हन को गुरु की नजरों के सामने शादीशुदा मान लिया जाता है। दूल्हा-दुल्हन इसके बाद परिवार के बड़े और बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते हैं।
शादी के बाद दुल्हन की विदाई होती है। लेकिन, विदाई से पहले दुल्हन अपने हाथों में मुरमुरे लेकर पीछे की तरफ फेंकती है। इस रस्म का मतलब होता है कि उसके घर से जाने के बाद भी घर में अन्न-धन की कमी न हो।
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Image Credit: Instagram/angadbedi, Jagran and Freepik
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