हिंदू धर्म में कई ऐसी बातें हैं जिनका पालन जरूरी माना जाता है। ऐसे ही जीवन के साथ मृत्यु से जुड़े भी कुछ ऐसे नियम बनाए गए हैं जिनका पालन जरूरी माना जाता है। इन्हीं नियमों में से एक है सुहागिन स्त्री के अंतिम संस्कार का नियम। ऐसा कहा जाता है कि जब किसी सुहागिन महिला की मृत्यु होती है यानी किसी ऐसी महिला की मृत्यु होती है जिसके पति जीवित हों तो उस महिला के अंतिम संस्कार के विशेष नियम होते हैं। ऐसी महिलाओं को मृत्योपरांत सोलह श्रृंगार कराया जाता है और नए वस्त्रों से सजाया जाता है। सुहागिन स्त्री के अंतिम संस्कार से जुड़ा नियम वास्तव में बहुत खास माना जाता है। ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी जी बताते हैं कि इस परंपरा के अनुसार, मृत्यु के उपरांत सुहागिन स्त्री को अंतिम संस्कार से पहले सोलह श्रृंगार से सजाया जाता है और उसे नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। सोलह श्रृंगार में सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां, मंगलसूत्र, पायल आदि सभी वैवाहिक सौंदर्य के प्रतीक शामिल होते हैं। आइए जानें इस सवाल के जवाब के बारे में।
भारतीय संस्कृति में सुहागिन स्त्री के सौंदर्य और अस्तित्व को उसके श्रृंगार से जोड़ा जाता है। सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां, बिछुए, मंगलसूत्र जैसे आभूषण और श्रृंगार की वस्तुएं केवल उसके सौंदर्य का हिस्सा नहीं होती हैं, बल्कि वे उसके वैवाहिक जीवन और पति की लंबी उम्र का प्रतीक भी मानी जाती हैं।
श्रृंगार केवल बाहरी सजावट नहीं होता है बल्कि एक स्त्री की आस्था, प्रेम और समर्पण का प्रतीक होता है। यह उसके जीवन का वो हिस्सा है जो विवाह के साथ शुरू होता है और सामान्यतः उसकी अंतिम सांस तक चलता है।
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ऐसा कहा जाता है जब किसी सुहागिन स्त्री का निधन होता है, तो शास्त्रों और परंपराओं के अनुसार उसे अंतिम विदाई से पहले पूरे वैवाहिक श्रृंगार में सजाया जाता है। इस परंपरा के पीछे कई भावनात्मक और आध्यात्मिक कारण हैं। आइए जानें उनके बारे में-
हिंदू धर्म में मृत्यु को अंत नहीं माना जाता, बल्कि यह आत्मा की एक यात्रा मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि आत्मा एक शरीर से दूसरे शरीर की ओर बढ़ती है। ऐसी मान्यता है कि जिस प्रकार हम किसी नई यात्रा पर जाने से पहले खुद को सजाते-संवारते हैं, ठीक उसी प्रकार आत्मा जब एक लोक से दूसरे लोक की ओर जाती है, तो उसे भी पूर्ण सम्मान और गरिमा के साथ विदा किया जाता है।
सुहागिन स्त्री का मृत्यु के बाद किया गया श्रृंगार, इस सम्मान का प्रतीक होता है। यह इस बात को दिखाता है कि वह जीवन भर अपने रिश्ते और धर्म में अडिग रही और उसे उसी गरिमा के साथ अंतिम विदाई दी जा रही है।
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एक सुहागिन स्त्री अपने जीवन भर पति की लंबी उम्र के लिए व्रत, पूजा और उपवास करती है। उसकी हर प्रार्थना, हर मांग में केवल पति की रक्षा और दीर्घायु की कामना होती है। ऐसे में जब वह इस संसार से विदा होती है तब उस समय उसे विशेष रूप से सुहागिन का दर्जा प्राप्त होता है और उसे सम्मान देने के लिए यह रस्म निभाई जाती है।
किसी भी सुहागिन स्त्री की मृत्यु के बाद उसे सम्मान के रूप में सोलह श्रृंगार में विदा करना एक ऐसी रस्म है जो सदियों से चली आ रही है। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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