महाभारत में वर्णित 5 पांडवों को पांडु की संतान के रूप में जाना जाता है। बता दें कि पांडवों के जन्म से जुड़ी बहुत रोचक कथा है। ये पांचों पांडव का जन्म कुंती को मिले एक वरदान के कारण हुआ था। बता दें कि ये कुंती के पुत्र तो हैं ही साथ ही, इन्हें देवताओं के पुत्र भी कहा गया है। आज के इस लेख में चलिए जानते हैं इनके बारे में कि कौन से पांडव कौन से देव के संतान हैं।
कुंती को मिला था ये वरदान
एक बार ऋषि दुर्वासा, माता कुंती की सेवा से बहुत प्रसन्न हुए। तब ऋषि दुर्वासा कुंती को वरदान के रूप में एक मंत्र देते हैं और बताते हैं कि आप इस मंत्र का जाप कर जिस भी देवता का आवाहन करोगी आपको उसी देव के पुत्र की प्राप्ति होगी। जब ऋषि ने यह वरदान दिया तो कुंती कुंवारी थी, लेकिन बाद में ऋषि दुर्वासा का यह वरदान कुंती का बहुत काम आया। बता दें कि पांडु को यह श्राप मिला था कि जब तुम अपनी पत्नी को छुओगे, उसी वक्त तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। ऐसे में कुंती को जब पांडु के इस श्राप के बारे में पता चला तो उन्होंने ऋषि दुर्वासा के वरदान का इस्तेमाल किया।
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ऐसे हुआ पांचों पांडवों का जन्म
ऋषि दुर्वासा द्वारा मिले वरदान से कुंती ने सबसे पहले यम यानी धर्म के देवता का आह्वान किया, उनकी आह्वान करने से धर्मराज युधिष्ठिर का जन्म हुआ। इसी प्रकार दूसरी बार कुंती ने मंत्र जप कर पवन देव का आह्वान किया, जिससे भीमसेन का जन्म हुआ और इन्हें पवन देव का अंश माना गया है। वहीं इंद्र देव का आह्वाहन कर कुंती के तीसरे पुत्र अर्जुन का जन्म हुआ। संतान प्राप्ति का मंत्र कुंती ने महाराज पांडु की दूसरी पत्नी माद्री को भी दिया था। जिसके बाद माद्री ने 2 अश्विनी कुमार, नासत्य और दस्त्र का आवाहन किया था, जिससे माद्री को नकुल और सहदेव की प्राप्ति हुई। इस तरह से पांचों पांडवों का जन्म हुआ।
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कर्ण का जन्म कैसे हुआ था
कर्ण पांचों पांडवों में शामिल नहीं हैं, लेकिन ये कुंती के सबसे बड़े पुत्र हैं। बता दें कि कुंती को जब ऋषि दुर्वासा ने मंत्र दिया था, तब उसका परीक्षण कर उस मंत्र का जप कर सूर्य देव का आवाहन किया। मंत्र के फलस्वरूप भगवान सूर्य प्रकट हुए और उनसे कवच और कुंडल धारी कर्ण का जन्म हुआ। कर्ण का जन्म कुंती के कुंवारी स्वरूप में हुआ था इसलिए कुंती ने लोक लाज के डर कर्ण को संदूक में रखकर नदी में बहा दिया। आगे चलकर वही पुत्र कर्ण के रूप में जाना गया।
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Image Credit: Hotstar
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