महाकुंभ का आरंभ 13 जनवरी, दिन सोमवार से हो रहा है। इस दिन पौष माह की पूर्णिमा भी पड़ रही है। ऐसे में इस तिथि का महत्व और भी बढ़ जाता है। वहीं, महाकुंभ का समापन 26 फरवरी, दिन बुधवार को महाशिवरात्रि के साथ होगा। महाकुंभ के दौरान लोग कल्पवास का नियम लेकर उसका पूरी श्रद्धा से पालन करते हैं।
माना जाता है कि जिस व्यक्ति ने महा कुंभ के दौरान कल्पवास का निवाहन कर लिया उसे साक्षात भगवान की कृपा प्राप्त होती है और उसके जीवन में सुख-समृधि, सौभाग्य, संपन्नता औ सकारात्मकता का वास स्थापित होता है। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि क्या होता है कल्पवास, क्या है इसका महत्व और इससे जुड़े नियम।
क्या होता है कल्पवास?
कल्पवास का अर्थ है कि एक महीने तक संगम के तट पर रहकर वेदाध्ययन, ध्यान और पूजा में संलग्न रहना। इस साल महाकुंभ के दौरान पौष मास के 11वें दिन से कल्पवास का आरंभ होगा और माघ मास के 12वें दिन तक इसका पालन किया जाएगा। ऐसी मान्यता है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ प्रारंभ होने वाले एक माह के कल्पवास से उतना पुण्य मिलता है, जितना एक कल्प में, जो ब्रह्म देव के एक दिवस के बराबर है।
यह भी पढ़ें:महाकुंभ में महिला नागा साधु का आना क्यों माना जाता है खास?
क्या है कल्पवास का महत्व?
कल्पवास के दौरान प्रयाग में संगम के तट पर भक्त कुछ विशेष धार्मिक नियमों का पालन करते हुए एक माह तक रहते हैं। कुछ लोग मकर संक्रांति से भी कल्पवास की शुरुआत करते हैं। मान्यता है कि कल्पवास मनुष्य के आध्यात्मिक विकास का एक महत्वपूर्ण साधन है। संगम पर माघ मास के पूरे महीने निवास कर पुण्य फल प्राप्त करने की इस साधना को कल्पवास कहा जाता है।
कहा जाता है कि कल्पवास करने से इच्छित फल प्राप्त होने के साथ-साथ जन्म-जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति मिलती है। महाभारत के अनुसार, माघ माह में कल्पवास करने से उतना पुण्य प्राप्त होता है, जितना सौ वर्षों तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करने से मिलता है। इस अवधि में श्वेत या पीले रंग के शुद्ध वस्त्र पहनना उचित होता है। कल्पवास का सबसे कम समय एक रात होता है। इससे ज्यादा की संख्या तीन रात, तीन महीने, छह महीने, छह साल, बारह साल या जीवनभर की भी होती है।
यह भी पढ़ें:Maha Kumbh 2025: महाकुंभ से लौटते समय घर ले आएं ये चीजें, सौभाग्य में होगी वृद्धि
क्या हैं कल्पवास के नियम?
पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय द्वारा बताये गए कल्पवास के नियमों के अनुसार, जो लोग 45 दिन तक कल्पवास में रहते हैं उनके लिए 21 नियमों का पालन करना आवश्यक है। ये 21 नियम हैं: सत्यवचन का पालन, अहिंसा का अभ्यास, इन्द्रियों पर नियंत्रण, सभी प्राणियों पर दयाभाव, ब्रह्मचर्य का पालन, व्यसनों का त्याग, ब्रह्म मुहूर्त में जागना, नित्य तीन बार पवित्र नदी में स्नान करना, त्रिकाल संध्या का ध्यान, पितरों का पिण्डदान, दान।
अन्तर्मुखी जप, सत्संग का आयोजन, संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना, किसी की निंदा न करना, साधु-सन्यासियों की सेवा करना, जप और संकीर्तन में संलग्न रहना, एक समय भोजन करना, भूमि शयन करना, अग्नि सेवन न कराना, देव पूजन करना। इन नियमों में से सबसे अधिक महत्वपूर्ण ब्रह्मचर्य, व्रत, उपवास, देव पूजन, सत्संग और दान माने गए हैं। पद्म पुराण में ये भी व्रणित है कि कल्पवास सिर्फ साधु-संत ही नहीं बल्कि गृहस्थी भी कर सकते हैं।
अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं और अपना फीडबैक भी शेयर कर सकते हैं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
image credit: herzindagi
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों