इस धरती पर करोड़ों पेड़ हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो हजारों सालों से जीवित हैं और जिनके बारे में अद्भुत कहानियां प्रचलित हैं। हिंदू धर्म में पांच वटवृक्षों को विशेष महत्व दिया जाता है जैसे कि अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट। इनकी उम्र के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है, लेकिन माना जाता है कि ये बहुत प्राचीन हैं।
अक्षयवट, जो उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संगम के तट पर स्थित है, हिंदू धर्म में सबसे पवित्र पेड़ों में से एक है। इसे अक्षय इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अमर है और इसका अस्तित्व सृष्टि के आरंभ से ही रहा है। मान्यता है कि यह वृक्ष कभी नष्ट नहीं होगा और यह मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य अरविंद त्रिपाठी द्वारा बताए जानकारी के आधार पर अक्षय वट के धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार से जानते हैं।
अक्षय वट का धार्मिक महत्व क्या है?
अक्षय वट को अक्सर मोक्ष का द्वार माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस वृक्ष के दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। त्रिवेणी संगम के तट पर स्थित होने के कारण, यह तीर्थयात्रियों और श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। माघ मेले और कुंभ मेले के दौरान लाखों भक्त इस पवित्र वृक्ष के दर्शन करने और इसकी परिक्रमा करने आते हैं।
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, अक्षय वट की पूजा करने से मनुष्य को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। महाभारत और पुराणों में इस वृक्ष को ब्रह्मा, विष्णु और महेश - इन तीनों देवताओं द्वारा संरक्षित बताया गया है। इसलिए, इसे त्रिदेवों की कृपा का स्थान माना जाता है।
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अक्षय वट की पौराणिक कथा पढ़ें
सृष्टि के आरंभ में हुए महाप्रलय के दौरान, जब पूरी दुनिया पानी में डूबी हुई थी, तब भी अक्षय वट नामक एक वृक्ष अडिग रहा। यह वृक्ष न केवल अपने अस्तित्व को बचाए रखने में सफल रहा, बल्कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस वृक्ष के एक पत्ते पर भगवान विष्णु बालक के रूप में विराजमान थे। वे इस संपूर्ण ब्रह्मांड का अवलोकन कर रहे थे। इस अद्भुत घटना के कारण, अक्षय वट को भगवान विष्णु की कृपा का प्रतीक माना जाता है। यह वृक्ष न केवल अपनी अमरता के लिए, बल्कि भगवान के साथ इसके जुड़ाव के कारण भी पूजनीय है।
इस पेड़ को उन संतों और ऋषियों का तप करने का स्थान माना जाता है जो मोक्ष पाना चाहते थे। कहा जाता है कि ऋषि मार्कंडेय ने भी इस पेड़ के नीचे तपस्या की थी। जैन धर्म के लोग मानते हैं कि उनके पहले तीर्थंकर ऋषभदेव ने भी इसी पेड़ के नीचे तपस्या की थी। प्रयाग में इस जगह को ऋषभदेव तपस्थली या तपोवन के नाम से जाना जाता है।
जब भगवान राम अपने वनवास के दौरान प्रयागराज आए, तब उन्होंने इस अक्षयवट के नीचे विश्राम किया था। इस पवित्र वृक्ष के नीचे बैठकर उन्होंने अनेक तपस्याएं की थीं। यही कारण है कि यह स्थान रामभक्तों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहां आकर भक्तों को भगवान राम के चरणों में शीश झुकाने का अद्भुत अवसर मिलता है।
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Image Credit- HerZindagi
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