सहस्त्रधारा या देव स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ की तबीयत खराब हो जाती है। जिसके बाद 14 दिनों तक मंदिर के पट बंद हो जाते हैं। इन 14 दिनों में जगन्नाथ जी के दर्शन नहीं होते हैं और इस दौरान भगवान पर वो सभी नियम लागू होते हैं, जो मनुष्यों पर लागू होते हैं। इन चौदह दिनों में सभी भगवान जगन्नाथ का खूब ध्यान रखते हैं और उनके शरीर का ताप या ज्वर कम करने के लिए उन्हें दवाई भी दी जाती है। ज्वर के कारण उनके शरीर की पीड़ा को कम करने के लिए खास जड़ी-बूटी से तैयार तेल से मालिश भी की जाती है। 14 दिनों के बाद जब मंदिर का कपाट खुलता है, उस दिन नेत्र उत्सव मनाया जाता है, आज के इस लेख में हम इस नेत्र उत्सव के बारे में जानेंगे।
नेत्र उत्सव के पहले होता है नवकलेवर
नवकलेवर में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र के मूर्तियों को फिर से स्थापित की जाती है। इन मूर्तियों में चंदन का लेप लगाया जाता है और विशेष औषधियों एवं जड़ी-बूटी से भगवान का उपचार किया जाता है। इस नवकलेवर को लेकर भक्तों का मानना है कि यह नवकलेवर भगवान के नए जीवन प्राप्त करने का समय है।
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क्या है नेत्रोत्सव?
14 दिनों के बाद 15वें दिन यानी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं। इस कपाट खुलने और भगवान के दर्शन के अवसर पर विशेष रूप से नेत्रोत्सव मनाया जाता है। इस नेत्र उत्सव अनुष्ठान में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र को नए नेत्र प्रदान किए जाते हैं, जिसके बाद सभी श्रद्धालु और भक्त भगवान के पहली बार दर्शन करते हैं। नेत्र उत्सव के बाद से ही पूरे विश्व में जगन्नाथ रथ यात्रा का पर्व शुरू होता है। इस रथ यात्रा के भव्य उत्सव में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलदाऊ के लिए विशाल और भव्य रथ बनाया जाता है। इस रथ को मंदिर से निकाला जाता है और तीनों देवों को भ्रमण कराया जाता है। भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलदाऊ के इस विशाल रथ को सभी श्रद्धालुओं की भीड़ खींचता है
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कब से शुरू होगा जगन्नाथ रथ यात्रा 2024
इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा 7 जुलाई से शुरू होकर 16 जुलाई को समाप्त होगी। बता दें कि हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू होती है। इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बल भद्र, रथ में सवार होकर अपनी मौसी के घरगुंडिचा मंदिर जाते हैं।
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Image Credit: Herzindagi
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