
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित सबसे पवित्र व्रतों में से एक माना जाता है। पंचांग के अनुसार, साल में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं।इन्हीं में से एक है पौष माह में पड़ने वाली पुत्रदा और वैकुंठ एकादशी। ये दोनों एकादशियां एक ही दिन पड़ती हैं। इसी कारण से अक्सर लोग इन्हें एक ही समझ बैठते हैं जबकि दोनों में बहुत अंतर है। वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
'पुत्रदा' का अर्थ है पुत्र या संतान देने वाली। यह एकादशी उन दंपत्तियों के लिए महत्वपूर्ण है जिन्हें संतान प्राप्ति में बाधा आ रही हो। इसका मुख्य उद्देश्य परिवार में संतान सुख और बच्चों की लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त करना है।

इस एकादशी का मुख्य उद्देश्य 'मोक्ष' है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को सीधे भगवान विष्णु के परम धाम 'वैकुण्ठ' में स्थान मिलता है। इसे पापों से मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए सबसे श्रेष्ठ माना गया है।
पौष पुत्रदा एकादशी हर साल पौष मास के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को मनाई जाती है। यह आमतौर पर दिसंबर या जनवरी के महीने में आती है जबकि दक्षिण भारत में वैकुंठ एकादशी को 'मुक्कोटी एकादशी' भी कहा जाता है।
यह धनु मास यानी कि पौष शुक्ल पक्ष में ही पड़ती है लेकिन इसका आरंभ दशमी तिथि से हो जाता है। कभी-कभी ये दोनों एकादशियां एक ही समय के आसपास पड़ती हैं, लेकिन वैकुण्ठ एकादशी का निर्धारण सूर्य के धनु राशि में प्रवेश के आधार पर होता है।
वैकुंठ एकादशी के दिन दक्षिण भारत के मंदिरों में और वृंदावन के रंग जी मंदिर में में 'वैकुण्ठ द्वार' खोला जाता है। माना जाता है कि जो भक्त इस दिन इस विशेष द्वार से गुजरकर भगवान के दर्शन करता है उसके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं।
वहीं, पुत्रदा एकादशी के दिन विशेष रूप से भगवान के 'बाल गोपाल' या 'लड्डू गोपाल' रूप की पूजा की जाती है। इस व्रत में पति-पत्नी दोनों साथ मिलकर पूजा करते हैं और संतान प्राप्ति के लिए विशेष कथा का श्रवण करते हैं।
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पुत्रदा एकादशी की कथा राजा सुकेतुमान से जुड़ी है जिन्हें संतान न होने के कारण दुखी होकर वन जाना पड़ा था जहां उन्हें ऋषियों ने इस व्रत की महिमा बताई थी।

वैकुण्ठ एकादशी की कथा मुर नामक असुर के वध और भगवान विष्णु की शक्ति 'एकादशी' के प्रकट होने से जुड़ी है जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने इस तिथि को मोक्षदायिनी होने का वरदान दिया था।
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